गुरु को रागी, मोही मत बनाना, आज चौथे काल के गुरु दिखते हैं, तो आज यहां चौथे काल के श्रावक भी हैं- मुनि पुंगव सुधा सागरजी

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चान्दखेड़ी। मुनि श्री सुधा सागरजी ने चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी में अपने प्रवचन में कहा कि शिष्य गुरु को याद करता है और गुरु शिष्य को याद नहीं करता, पर दया करता है। गुरु को कभी शिष्य याद नहीं आना चाहिये, वो हमारा ध्यान नहीं करे, हम उनका ध्यान करें।

गुरु वही, जो किसी पर मोह नहीं करता, उनकी वीतरागता का सुख श्रेष्ठ है। आपके यहां आहार के लिये गुरु न आये, तो कोई गुरुवर को न कहे कि उसके यहां आहार नहीं किया आपने, क्योंकि उन्हें रागी न बनाओ, आकर्षित मत करो। पर, स्वयं अपनी भक्ति से चौका लगाना ना छोड़े।

बहला कर, बहलवा के, गुरु को आकर्षित मत करना, जब वो आयेंगे तब भाग्यवान कहलाओगे। गुरु को गुरु रहने दो, उनकी करुणा, दया श्रेष्ठ है। रागी, मोही मत बनाओ। पंचम काल में भी सच्चे गुरु, सच्चे भक्त हैं। आज चौथे काल के गुरु दिखते हैं, तो आज यहां चौथे काल के श्रावक भी हैं।

अपनी शक्तियों से गुरु को आकर्षित नहीं करे, वे हमें याद न करें, वे सिर्फ दया-करुणा दिखायें।

भक्त को यह सोचना है कि मैं भगवान को कितना चाहता हूं, यह जरूरी है। तुम्हारे-हमारे पास भगवान के लिये कितना समय है, कितनी मैं उनकी सुनता हूं। छोड़ दो यह सोचना-विचार करना कि भगवान, गुरु, मेरी सुनते नहीं है। दुर्योधन मत बनो, सच्चे भक्त बनो, तभी तुम्हारा उद्धार होगा।

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