सान्ध्य महालक्ष्मी / 05 दिसंबर 2021
यह समाचार की कतरन है गुजराती के एक अखबार की। गुजराती पाठक पढ़ भी सकते हैं। इसमें लिखा है कि भावेश मुनि जी ने 6 माह पूर्व अपने रिश्तेदारों को दीक्षा दी थी। उन्हीं के रिश्तेदार 62 वर्षीय जितेन्द्र (दीक्षा के बाद जिनेन्द्र) उनकी 60 वर्षीय पत्नी प्रीति बहन (दीक्षा के बाद प्रतीक्षा) ने आरोप लगाया है कि हम पति-पत्नी को बहला-फुसलाकर स्थानकवासी श्री भावेश मुनि ने अंधेरी मुम्बई में 6 माह पहले दीक्षा (जबरन?) दी थी। उन्हें साधु-साध्वी की चर्या कठिन लग रही है, इसलिये पुन: गृहस्थ जीवन में लौटकर दाम्पत्य जीवन व्यतीत करना शुरू कर रहे हैं।
थोड़ा सा भावेश मुनि जी का परिचय दें, कि इन्होंने गुजरात के गौंडा समुदाय को छोड़ा या निकाला गया (दावे दोनों प्रकार के हैं) फिर उन्होंने मुम्बई स्थानकवासी सम्प्रदाय बना लिया।
अब यह संकेत करता है कि आज कुछ जगहों पर अपने नाम की, अपने संघों को बड़ा करने की होड़ चल निकली है। थोक में दीक्षायें दी जाती हैं, दीक्षा से पहले उचित परीक्षा-शिक्षा-अध्ययन पर बिल्कुल जोर नहीं दिया जाता और कड़वा सच यह भी है, कि कुछ तो दीक्षा जीवन व्यतीत करने को मानो मजबूर हैं, क्योंकि वापस संसार में लौटे तो संघ की ही नहीं, समाज में उनकी भी बदनामी होगी।
क्या इस विषय पर साधु संतों का वरिष्ठतम वर्ग मिल-बैठकर कोई चिंतन कर सकेगा? पूरे समाज के हित में कोई निर्णय लिया जा सकेगा? (अपनी राय 9910690825 पर व्हाट्सअप करें)
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