पूर्व पूर्व के अनंत भवो का जब पुण्य संग्रहीत हो जाता है तब तीर्थंकर परमेश्वर के समवसरण में वैठने के भाव आते है , उनके पास जाने के परिणाम होते है।
संसार के ऐसे भी कोटि कोटि जीव थे जो साक्षात भगवान तीर्थंकर के विराजमान होने पर भी वे जीव समवसरण में नही पहुँच सके । कितने अशुभ कर्म का उदय था उन जीवो का।
जैसे राजा श्रेणिक ने भगवान महावीर स्वामी से प्रश्न किया था कि प्रभु मैने 60 हजार प्रश्न किये , इतनी दिव्य देशना सुनी , हे नाथ! मेरे देखते देखते कितने श्रावक यहॉ जैनेश्वरी दीक्षा को प्राप्त कर लिए , दिगम्बर मुनि वन गए , पर मेरे ऐसे कौन से अशुभ कर्म का नियोग है कि मेरे परिणाम क्यो नही होते
है श्रेणिक ! आपने नरक आयु का बंध कर लिया।
ये दिव्य देशना में खिरा
जिसने नरक आयु का बंध कर लिया हो उसके संयम धारण करने के परिणाम हो नही सकते
संकलन कर्ता :- श्रमण सुब्रत सागर मुनि