अगर मां अन्नपूर्णा राजकीय सम्मान के साथ मंदिर में विराजित, तो तीर्थंकर म्यूजियम में शोपीस क्यों?

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 17 नवंबर 2021
दिल्ली। सोमवार 15 नवंबर को, 1913 में चोरी की गई मां अन्नपूर्ण की प्रतिमा को उ.प्र. के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी की अगुवाई में, काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित किया गया। यह प्रतिमा कुछ समय पहले कनाडा के म्यूजियम में दिखाई दी थी। आपसी ट्रीटी के चलते अभी हाल में भारत वापस लाई गई और 18वीं सदी की इस प्रतिमा को गुरुवार 11 नवंबर 2021 को केन्द्र ने उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप दिया गया। यानि केन्द्रीय सांस्कृतिक पर्यटन मंत्री सुरेश राना जी ने यूपी सरकार के मंत्री को सौंपा। फिर चली यात्रा दिल्ली से काशी तक जिसमें केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और मीनाक्षी ने भी भी भाग लिया। गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, कासगंज, एटा, मैनपुरी, कन्नौज, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी, अयोध्या के मंदिरों में रुकते हुए काशी मंदिर पहुंच गई।

प्राचीन प्रतिमा को मंदिर में ही स्थापित करना बहुत ही सराहनीय कदम है और केन्द्र और राज्य सरकार की पूरी भागीदारी इसे सोने पर सुहागा बना देती है, पर एक सवाल सरकारी आंकड़े के हिसाब से 44,51,753 के जैन समाज में जरूर कौंधता है। अगर मां अन्नपूर्णा को बाहर से लाकर तुंरत उसे पूरे राजकीय सम्मान के साथ मंदिर में पहुंचा दिया जाता है, तो आज सैकड़ों तीर्थंकर प्रतिमायें, जो राष्ट्रीय-राजकीय संग्रहालयों में शोपीस बनकर रखी गई है, दर्शक जहां आस्था, श्रद्धा नहीं, उनकी वास्तुकला देखकर मंत्रमुग्ध होते हैं, उन्हें क्यों उचित सम्मान के साथ मंदिरों में नहीं पहुंचाया जाता।

अभी हाल में 27 सितंबर 2021 को अमरीका से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वापसी में ऐसी 157 मूर्तियां व अन्य वापस भारत लाई गई। ऐसे ही पहले भी आस्ट्रेलिया, यूके, कनाडा आदि से भी मूर्तियां वापस आई हैं, इनमें तीर्थंकरों की अनेत मूर्तियां हैं, पर आज तक एक को भी मंदिर मेें स्थापित नहीं किया गया। केवल म्यूजिमों में शो पीस बनकर रह जाती हैं। यहीं नहीं, जब मंदिरों से चोरी की गई तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की बरामदगी होती है, वो भी 75 फीसदी से ज्यादा प्रतिमायें पुलिस के मालखाने में अन्य सामान के बीच यू हीं पड़ी रहती हैं।

इस बारे में जैन समाज की समीतियों की ओर से, न राज्य की, न राष्ट्रीय स्तर पर कोई अभियान चलाया जाता है। अफसोस तो यह है कि ऐसा कोई आंकड़ा या रिकॉर्ड किसी जैन समिति या कमेटी के पास भी नहीं है। चैनल महालक्ष्मी ने कुछ समय पहले विभिन्न जगह आरटीआई से जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो कई जगह प्रतिमायें होने की जानकारी मिली, कई जगह रिकॉर्ड में यह दर्ज नहीं किया गया कि यह जैन प्रतिमा है, और आशंका तो यह लगती है कि कई जगह तो उन्हें बुद्ध या अन्य प्रतिमाओं के रूप में दर्ज किया हुआ है।

गलती क्या भारत सरकार या राज्य सरकारों की है? बिल्कुल नहीं, सबसे बड़ी गलती हमारी है, हमारी समितियों की, हमारी संस्थाओं की, हमारे मंदिरों की कार्यकारिणी की। हमारे पास अपने मंदिरों का कोई स्पष्ट रिकॉर्ड ही नहीं है। कितनी प्रतिमायें, किस आकार की हैं, क्या विशेष चिह्न है, रंग, लक्षण आदि सबके फोटो, डिजीटल रिकॉर्ड रखना, हर मंदिर की जिम्मेदारी है।

कई बड़े तीर्थों को तो यह तक पता नहीं कि हमारे यहां कुल कितनी प्रतिमायें हैं। हैरान हो जाएंगे – शिखरजी में 13 पंथी या 20 पंथी कोठी में कितनी प्रतिमायें है, किसी को नहीं मालूम? कई बड़े मंदिरों की कमेटियों तक को नहीं मालूम। जब तक अपनी प्रतिमाओं को डिजीटल रिकॉर्ड नहीं रखेंगे, तब तक उनकी वापसी के दावे कैसे करेंगे, मालखाने में ही पड़ी रहेंगी। और ना ही कोई सामर्थ्य बचा है जैन समाज में, कोई उनमें से केन्द्र तक आवाज दे सके कि अगर मां अन्नपूर्णा मंदिर तक पहुंचाई जा सकती है, तो क्यों तीर्थंकर प्रतिमाये नहीं।