09 नवंबर : गर्भ कल्याणक उन तीर्थंकर का, जिनकी मोक्षस्थली को बचाने में जूझ रहा जैन समाज

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 09 नवंबर 2021
नये वीर संवत 2548 को शुरू होने के छठे दिन आ जाता है उन तीर्थंकर का गर्भकल्याणक, जिनकी मोक्षस्थली के साथ 72 करोड़ 700 मुनिराजों के सिद्ध जाने वाले पावन तीर्थ को बचाने में आज जैन समाज जूझ रहा है। आज से 70 साल पहले वो गिरनार, जैन समाज के सिद्ध स्थली के नाम से जाना जाता है। पर आज हमारी तीर्थ संरक्षण – संवर्धन सहित अनेक कमेटियों व शीर्ष नेतृत्व में लापरवाही के चलते, धीरे-धीरे सबकी आंखों के सामने, उन्हीं की नाक के नीचे कैसे बदला गया, यह किसी से छिपा नहीं है।

70 साल पहले ही तो मोक्ष धरा का नाम बाकायदा दत्तात्रेय टोंक के नाम से सरकारी कागजों में दर्ज हो गया और हमारी बड़ी संस्थायें, श्रेष्ठी वर्ग उसका विरोध करने की बजाय, आंखे मूंदे बैठा रहा। इतनी बड़ी लापरवाही के बाद पिछले 18 सालों में उस टोंक के चरणों को, चट्टान पर उकेरी तीर्थंकर नेमिनाथ मूर्ति को भी सबके सामने बदला जाता रहा और जैन समाज की कमेटियां केवल अदालतों के चक्कर लगाकर इतिश्री करती रही।

72 करोड़ 700 महामुनिराजों की मोक्ष स्थली आज पुकार-पुकार कर मानो कह रही है कि तुम इस सिद्ध धरा को सुरक्षित करने में इतने नकारा-असक्षम हो, तो जैन धर्म के संवर्धन, संरक्षण, विकास की क्या उम्मीद की जा सकती है।

शंख चिह्न से जाने पहचाने हमारे 22वें तीर्थंकर का जीव 10 पर्याय पूर्व भील की पर्याय में था, वहां से श्री वृषभदत्त की पत्नी के हभ्यकेतु नामक पुत्र होकर धर्ममय जीवन से 8 भव पूर्व सौधर्म स्वर्ग में देव बना, जहां से पुष्करार्ध द्वीप में श्री सूरिप्रभ राजा के चिंतागति नामक पुत्र हुआ। धर्मपारायण होने से चौथे स्वर्ग में देव आयु के बाद पांच भव पूर्व सिंहपुर राजा के अपराजित नामक पुत्र हुआ और पिछले भवों की तरह एक भव मनुष्य, एक भव देव गति में चलते अच्युत स्वर्ग में इन्द्र बना, जहां आयु पूर्ण कर कुरुजांगल देश के राजा श्री चंद्र के सुप्रतिष्ठ नाम का पुत्र हुआ। धार्मिक भावनाओं से परिपूर्ण जीवन के चलते तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया, फिर अनुत्तर स्वर्ग में अहिमिन्द्र बना। और वहां आयु पूर्ण कर 21वें तीर्थंकर श्री नमिनाथ जी के मोक्ष जाने के एक हजार कम 5 लाख वर्ष बाद यादव वंश में शौरीपुर के महाराज समुद्रविजयजी की महारानी शिवादेवी जी के गर्भ से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को आये। उनके गर्भ में आने से 6 माह पूर्व ही तीर्थंकर बालक के संकेत देते हुये राजमहल पर दिन के तीनों पहर, सौधर्म की आज्ञा से कुबेर ने हर पहर में साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा शुरू कर दी। जो श्रावण शुक्ल षष्ठी को उनके जन्म कल्याणक तक निर्बाध चलती रही।

आपकी आयु एक हजार वर्ष थी और कद 60 फुट ऊंचा। आपके शरीर का रंग नीला था। राजकुमार होते हुये भी आपने राज्य नहीं किया। विवाह के लिये करोड़ों बारातियों के साथ जब आप जूनागढ़ में प्रवेश कर रहे थे तब रास्ते में दोनों ओर पशु-पक्षियों को बंद पिंजरों में बंधन मुक्त होने की आशा में छटपटाते देखा। स्वतंत्रता के लिये, बंधन मुक्त होने के लिये जब ये पशु-पक्षी छटपटा सकते हैं, तो मैं क्यों इस संसार की बेड़ियों में और बंधने जा रहा हूं। बस तत्काल वैराग्य के जो अंकुर फूटे, वे तप की ओर बढ़ाने को आतुर हो गये। देव कुरु नाम की पालकी से सहकार वन में पहुंचे। दिन था वही षष्ठी, पर महीना था श्रावण कृष्ण का। एक हजार और राजाओं में आपको देख वैराग्य की भावना बलवती हो गई। पहुंच गये गिरनार पर्वत पर अपराह्न काल था। पंचमुष्टि केशलोंच कर बांस वृक्ष के नीचे तप में लीन हो गये।

तीन उपवास के बाद द्वारकापुरी के राजा वरदत्त द्वारा दूध की खीर के रूप में आपको प्रथम आहार देने का सौभाग्य प्राप्त किया। देवों ने पंचाश्चर्य प्रकट किये। आपने चार वर्ष आठ माह कठोर तप किया और फिर आश्विन शुक्ल एकम को, चित्रा नक्षत्र में, पूर्वाह्न काल में ऊर्जयन्त पर्वत (जिसे रेवतक पर्वत या गिरनार भी कहा जाता है) पर मेघश्रृंग वृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

बस फिर क्या था, स्वर्ग में सौधर्म इन्द्र को अवधि ज्ञान से पता चला, सिंहासन से उतर, चार कदम आगे बढ़ साष्टांग प्रणाम किया और कुबेर को आज्ञा दी, जाओ श्री नेमिप्रभु के समोशरण की रचना करो, दिव्यध्वनि खिरने का समय आ गया है। 18 किमी विस्तार के रत्नमयी समोशरण की रचना तुरंत हो गई। आपके समोशरण में प्रथम आहार देने वाले वरदत्त जी प्रमुख गणधर बने तथा 10 और गणधर थे। यक्षिणी (शासन देवी) अम्बिका, जिन्हें कुष्मांडनी देवी के नाम से भी जाना जाता है, शासन देव सर्वाणहदेव यम थे।

आपके समोशरण में 18 हजार ऋषि, 400 पूर्वधर मुनि, 11,800 शिक्षक मुनि, 1500 अवधिज्ञानी मुनि, 1500 केवली, 1100 विक्रयाधारी मुनि, 900 विपुलमति ज्ञानधारक मुनि, 800 वादी मुनि, 40 हजार आर्यिकायें (गृहस्थ जीवन में होने वाली पत्नी राजुलमति प्रमुख आर्यिका), एक लाख श्रावक, उनमें उग्रेसन प्रमुख श्रोता, 3 लाख श्राविकायें, उनकी ओकार दिव्य ध्वनि को सुनते थे। आपका केवली काल 699 वर्ष 10 माह 4 दिन रहा और फिर आषाढ़ शुक्ल सप्तमी को प्रदोष काल के चित्रा नक्षत्र में गिरनार पर्वत की ऊर्जयन्त टोंक से, एक माह की भोग निवृति के बाद, 536 मुनियों के साथ सिद्धशिला पर चले गये। आपका तीर्थ प्रवर्तन काल 84,380 वर्ष का रहा। बोलिये 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी की जय-जय-जय।