जैन दर्शन की सबसे अधिक अनदेखी क्या जैन और जैनविद्या को डुबो देगी

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जैनों की उदासीनता क्या जैन और जैनविद्या को डुबो देगी

राष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालयों में जैन दर्शन और प्राकृत विभाग की स्थापना कराना बहुत ही कठिन कार्य है। लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारी अनदेखी और अरुचि के कारण पहले से ही स्थापित जैन विद्या और प्राकृत के विभाग बंद होते जा रहे हैं। ऐसा ही एक मामला गुजरात विश्वविद्यालय में घटित होने की संभावना है।

गुजरात विश्वविद्यालय में प्राकृत एवं अपभ्रंश विभाग कार्यरत है। पाठ्यक्रम में जैन धर्म के मूल आगम ग्रंथ श्वेतांबर दिगंबर संप्रदाय के प्रवचनसार, द्रव्यसंग्रह, आदि शामिल हैं। प्राकृत विभाग में professor सलोनी जोशी जी और professor दीनानाथ शर्मा जी विगत अनेकों वर्षों से भारतीय प्राच्य विद्या के अध्ययन अध्यापन में योगदान दे रहे हैं। हाल ही में प्रोफेसर सलोनी जोशी सेवानिवृत्त हुई हैं और अगले वर्ष दीनानाथ शर्मा जी भी सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

मुझे ऐसा लगता है कि भविष्य में शायद ही इन पदों को भरा जाएगा। इसका कारण विश्वविद्यालय प्रशासन नहीं है अपितु संपूर्ण जैन समाज है क्योंकि इन विभागों को पर्याप्त विद्यार्थी ही नहीं मिलते हैं। कोई भी जैन अपने दर्शन और अपनी भाषाओं को पढ़ने में रुचि नहीं रखता है, मुझे तो ऐसा लगता है कि हम जैन लोग ही जैन दर्शन की सबसे अधिक अनदेखी कर रहे हैं।

मात्र पैसा कमाने को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना रखा है, जैन विद्या को पढ़ने पढ़ाने में हमारी कोई रुचि नहीं है और धीरे-धीरे जैन विद्या और Jain समाप्त हो जाएंगे। इतिहास इस बात का साक्षी है की ईंट पत्थरों के भवन जैन धर्म को सुरक्षित नहीं रख पाए, पूरे भारत में लाखों जैन मंदिर खंडहर पड़े हुए हैं करोड़ों प्रतिमाएं म्यूजियम में और इधर उधर लावारिस पड़ी हुई हैं। फिर भी हमारा पूरा श्रम ईंट पत्थरों के भवनों को खड़ा करने में लगा हुआ है, जैन विद्या को स्थायित्व देने में हमारा कोई योगदान नहीं है जबकि इसमें कोई पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ता।

मेरा संपूर्ण जैन समाज से विनम्र अनुरोध है कि उनके क्षेत्र में जहां भी प्राकृत जैन दर्शन विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाया जाता है वहां एडमिशन लें। जैन समाज की महिलाएं और पुरुष जिन्होंने अपना अध्ययन पूरा कर लिया है और अपना व्यवसाय करते हैं या फिर ग्रहणियां हैं वे उनके निकट चल रहे शिक्षा संस्थानों में जैन दर्शन में और प्राकृत में एडमिशन लें और दूसरे लोगों को भी इन शिक्षा संस्थानों से जोड़े तो सरकारी स्तर पर जैन विद्या और भाषा को संरक्षण दे पाना संभव हो पाएगा।

-Sonu Jain शास्त्री अहमदाबाद