कुण्डलपुर के बड़े बाबा की प्राचीन मूर्ति को तोड़ने आई औरंगज़ेब की सेना को उलटे पर भगा दिया, किसने, शायद आप नहीं जानते

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कुंण्डलपुर महोत्सव पंचकल्याणक का ऐलान
ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती का यह आर्यावर्त जिसका नाम भारत है..अनादिकाल से जैन धर्म के जीवंत होने का साक्षी है. भारत के मध्य में स्थित हैं मध्यप्रदेश.जिसे प्रकृति ने अपनी हर जलवायु का आशीर्वाद दिया है..यहीं दमोह जिला ,पटेरा तहसील में स्थित हैं कुण्डलपुर जी सिद्ध क्षेत्र यह क्षेत्र अंतिम श्रुत केवली श्रीधर केवली की मोक्ष स्थली है और यहाँ अर्धचन्द्राकार पर्वत पर विराजमान हैं अतिशयकारी लगभग 1500 वर्ष पुराने पंद्रह फीट ऊँचे पद्मासन लगाये श्री 1008 आदिनाथ भगवान, जिन्हें हम बड़े बाबा कह कर बुलाते हैं.

कुण्डलपुर में 63 जैन मंदिर है। उनमें से 22वाँ मंदिर काफ़ी प्रसिद्ध है। इसी मंदिर में बड़े बाबा (भगवान आदिनाथ) की विशाल प्रतिमा है। यह प्रतिमा जी बड़े बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है और 15 फुट ऊँची हैं। यह मंदिर कुण्डलपुर का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। एक शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत् 1757 में यह मंदिर फिर से भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति द्वारा खोजा गया था। तब यह मंदिर जीर्ण शीर्ण हालत में था। तब बुंदेलखंड के शासक छत्रसाल. की मदद से मंदिर का पुनः निर्माण कराया गया था। यह जगह कुंडलगिरी कुण्डलपुर दमोह जिले के पटेरा ब्लाक, मध्य प्रदेश. में है।

दमोह के हर क्षेत्र से आये हज़ारों लोगो ने आचार्य श्री से पूरे संघ के साथ पंचकल्याणक का अनुरोध किया तथा त्रिकाल चौबीसी की भांति 72 दीक्षाये वहां देने की प्रार्थना भी की,

संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागरजी ने कहा हमारा संपर्क सूत्र बड़े बाबा से पहले ही हो चुका है और 1008 मुनियों के सानिध्य में होंगा कुण्डलपुर का महापंचकल्याणक ।

भी तक आपने कुंडलपुर में इकट्ठा किया लेकिन अब बड़े बाबा ने कहा है अब हमारे दरबार से बटेगा कितना बटेगा..

कुंडलपुर मेंबड़े बाबा की पद्मासन प्रतिमा है, जो 12 फीट ऊंची है। इस प्राचीन स्था न को सिद्धक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यहां अति अलौकिक 63 मंदिर हैं, जो आठवीं-नौवीं शताब्दी के बताए जाते हैं। आचार्य श्री विद्या सागरजी इस क्षेत्र के जीर्णोद्धार के मुख्य प्रेरणा स्रोत माने जाते है।

कुण्डलपुर भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित एक जैनों का एक सिद्ध क्षेत्र है जहाँ से श्रीधर केवली मोक्ष गये है जो दमोह से ३५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक प्रमुख जैन तीर्थ स्थल है। यहाँ तीर्थंकर ऋषभदेव की एक विशाल प्रतिमा विराजमान है कुण्डलपुर जी का अतिशय बहुत निराला और प्राचीन है, श्रीधर केवली की निर्वाण भूमि होना, यह अवगत कराती है कि ईसा से छह शताब्दियों पूर्व भगवान महावीर स्वामी का समवसरण यहाँ पर आया था.

यह क्षेत्र 2500 साल पुराना बताया जाता है। , ये कथा है प्रचलित बताते हैं कि एक बार पटेरा गांव में एक व्यापारी बंजी करता था। वहीं प्रतिदिन सामान बेचनेके लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था। जहां रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर से ठोकर लगती थी। एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा। लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थकर करानेके लिए कहा गया। लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। उसने दूसरे दिन वैसा ही किया। बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता सेआ गई। जैसे ही आगे बढ़ा उसे संगीत और वाद्य ध्वनियां सुनाई दीं। जिस पर उत्साहित होकर उसने पीछे मुडकर देख लिया मूर्ति वहीं स्थापित हो गई।

उसके बाद प्रतिमा झाड़ियों में छिप गई, बरसों के लिए, तथा पहिली बार प्रतिमा जी के दर्शन भट्टारक सुरेन्द्र कीर्ति जी को पहाड़ पर हुए, उन्होंने प्रतिमा जी को खुदाई कर निकलवाया और प्रभु के सर पर छत की व्यवस्था करवाई.

परन्तु कुछ वर्षों पश्चात राजा छत्रसाल जब मुगलों के हाथों राज्य हार कर वन वन भटक रहा था और भटकते भटकते शांति की खोज में कुण्डलपुर जी पहुंचा, यहां मौजूद मुख्य मंदिर को राजा छत्रसाल ने बनवाया था।

कहा जा ता है कि मूर्ति को तोडऩे के लिए एक बार औरंगजेब ने अपनी सेना को भेजा, जैसे ही मूर्ति पर सेना ने पहला प्रहार किया, बड़े बाबा की मूर्ति की अंगुली से एक छोटा सा टुकड़ा उछलकर दूर जा गिरा। और दूध की धारा बहने लगी। इस पर सेना पीछे हट गई। लेकिन दोबारा वेआगेमूर्ति तोडऩेके लिए बढ़े तो मधुमक्खियों ने उन पर हमला कर दिया । जिससे उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा। बड़े बाबा की मूर्ति का टूटा हुआ यह हिस्सा अब भी यहां देखा जा सकता है।

विश्व का सबसे ऊंचा जैन मंदिर मध्य प्रदेश के दमोह जिले के कुंडलपुर निर्माणाधीन है। जिला मुख्यालय से 36 किमी दूर जैन तीर्थकुंडलपुर में पद्मासन बड़े बाबा भगवान आदिनाथ का मंदिर देश के सबसे ऊंचे शिखर वाले मंदिर में शुमार होनेजा रहा है। इसका निर्माण तेजी सेचल रहा है। अभी देश में अक्षरधाम मंदिर की ऊंचाई 110 फीट है। कुंडलपुर के इस मंदिर की ऊंचाई 189 फीट होगी। मंदिर की विशेषता यह हैकि इसमें लोहा, सरिया और सीमेंट का उपयोग नहीं किया जा रहा है। इसके पीछे तर्क है कि सीमेंट की आयु 100 साल होती है। उसके बाद वह खराब होने लगती है, जबकि मंदिर की आयु लंबी रखनेके लिए उसे पत्थरों से ही तराशा जा रहा है। एक पत्थर को दूसरे पत्थर से जोड़ने के लिए खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।