यदि तुम संयम में तर हो जाओगे, तो तुम भी तर जाओगे –
मुनिश्री विलोकसागर जी
वर्षा योग की साधना में निरत आचार्य श्री आर्जवसागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री108 विलोक सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि ज्ञान को ज्ञान में ही लीन करना संयम है l यही वास्तविक धर्म है l यही मोक्ष को देने वाला हैl और निश्चित रूप से पूर्ण सुख को प्राप्त करने का यही एकमात्र उपाय है lधर्म तीर्थ का प्रवर्तन करने वाले तीर्थंकर जगत कल्याण की ऐसी अनुपम महान भावना करते हैं कि उस महान पवित्र भावना के प्रताप से ही उन्हें तीर्थंकर जैसे सर्वोच्च पद की प्राप्ति होती है ।तीर्थंकर भगवान के शरीर का रक्त दूध के समान सफेद होता है जैसे माता के हृदय में अपनी संतान के प्रति निश्छल निस्वार्थ वात्सल्य कूट-कूट कर भरा रहता है l तीर्थंकर भी संसार के सभी प्राणियों के कल्याण की अनुपम पवित्र भावना भाते हैं उसी पवित्र भावना का ही प्रभाव होता है कि उनके शरीर का रक्त भी दूध के समान सफेद हुआ करता है ।
अच्छे विचार, पवित्र भावना सबके कल्याण की कामना, जीव को सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित कराती है। भगवान के समवशरण में बाहर जो मान स्तंभ होते हैं उनमें विराजमान जिन प्रतिमाओं के दर्शन से अहंकारी मानी व्यक्ति का अहंकार नष्ट हो जाता है। क्योंकि जब तक यह जीव अहंकार में डूबा हुआ है अपने आप को सबसे बड़ा मानता है तब तक उसे प्रभु के दर्शन नहीं हो सकते हैं ।अहंकार ईर्ष्या वह पर्दा है जो भगवान के दर्शन नहीं होने देता है ।बंधुओं अहंकार ईर्ष्या के पर्दे को हटा दो तुम्हें भगवान के दर्शन से कोई रोक नहीं सकता है ।अभिमानी व्यक्ति स्वयं को सबसे अच्छा एवं बड़ा मानता है, उसे गुरु में कमी दिखती है भगवान में कमी दिखती है शास्त्रों में कमी दिखती है माता पिता पड़ोसियों सभी में कमियां दिखाई देती हैं किंतु उसे अपनी कमियां तनिक भी दिखाई नहीं देती है। वह अपने आप को ही सबसे बड़ा मानता हैl
जो मानते स्वयं को सबसे बडे हैं
वो धर्म से बहुत दूर अभी खडे हैं।
जीवन के विकास के लिए अहं का विसर्जन आवश्यक है जिसका अहं चला गया वह अर्हम् अर्थात भगवान बन जाता है। बचपन में विनोबा भावे की मां दही जमाने के लिए दूध में जामण डालती हुई राम का नाम लेती थी विनोबा जी ने पूछा कि मां दही तो जामण से ही जमेगा परंतु इसमें राम का नाम लेने की क्या आवश्यकता है मां ने कहा दही तो जामण से ही जमता है इसमें भगवान कुछ नहीं कर सकता किंतु यदि दही ठीक से नहीं जमा तो मुझे किसी प्रकार की शिकायत नहीं होगी क्योंकि मैं इसमें अपनी कमी मानूंगी और यदि दही ठीक तरह से जम जाता है तो इसका श्रेय भगवान राम को दूंगी ।ईश्वर का सच्चा भक्त अपने कार्य की सफलता का श्रेय भगवान को ही देता है सच्चा शिष्य अपनी सफलता कर श्रेय गुरु को देता है। सच्चा पुत्र अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देता है ।मैंने कुछ नहीं किया यह तो मेरे भगवान गुरु माता पिता की ही कृपा है जब ऐसी भावना होती है यह भावना व्यक्ति को अहंकार से दूर रखती है एवं प्रभु के करीब ले जाती है। आज आदमी अपने अहं की पुष्टि में पागल है वह चाहता है कि मैं दुनिया का सबसे बड़ा आदमी बन जाऊं परंतु संत कहते हैं कि बड़ा आदमी बन कर क्या करोगे” भला” आदमी बन जाओ तो तुम्हारा उद्धार हो जाएगा । प्रभु के दर्शन करना है जीवन में सुख शांति सम्रद्धि लाना है तो अहंकार को छोडकर विनम्र बनो, कहा गया वह विणयो मोक्ख द्वारं अर्थात विनय मोक्ष का द्वार हैl और कहा भी है –
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कु-संगत से बुरी नेको में,आदत आ ही जाती हैl
बदों के पास रहने से, शरारत आ ही जाती हैll
बिन दिए कुछ नहीं लेना,अदत्ता दान चोरी हैl
पराई देख कर दौलत,तो नीयत आ ही जाती है ll
अंजुलि जल-सम जवानी,क्षीण होती जा रही है l
प्रत्येक पल जर्जर जरा, नजदीक आती जा रही ll
काल की काली घटा,प्रत्येक पल मडरा आ रहे हैं l
किंतु पल-पल विषय तृष्णा, तरुण होती जा रही ll
भोर की स्वर्णिम छटा सम क्षणिक सब सहयोग हैं l
पद्म पत्रों पर पड़े, जलबिंदु सम सब लोग हैं l
सानिध्य दिनकर लालिमा,सब लालिमा है भालकी l
सब पर पड़ी मनहूस छाया,विकट कॉल कराल की ll
वणिक सभ्यता काम नहीं,परिणाम निरखती ll
जननायक तो उसको कहिए,जो न्याय तुला पर तोल सकेl
जनता के मन को ना देखें,बस न्याय नेत्र ही खोल सके ll
लोकापवाद से डरकर के है सत्य छुपाना कायरता l
किसकी जग निंदा नहीं करें,निंदा से डरना पामरता ll
बहुमत का कहना सच्चा है, बहुमत कह दे कि पाप करो l
क्या पाप न्याय कहलाएगा,तो दीन हींन असहाय मरो ll
देना नजीर न्यायालय में,तो है कोई अपराध नहीं l
अपने बचाव में कुछ कहना, क्या जन जन का अधिकार नहीं ll
जो न्याय नहीं कर सकता है कैसा अधिकारी शासन का l
परित्यक्ता भी फटकार सके वह राजा नहीं प्रजा जनका l
यदि न्याय पक्ष अपना सच है चाहे जनगण विद्रोह करें l
चाहे सुमेरू भी हिल जाए,पर नहीं न्याय से वीर डिगे ll
कबीर संगत साधु की,ज्यों गन्धी की बासl
जो गंदी कछु दे नहीं तो भी बास सुबास ll
गुरु दर्शन और हरि भजन तुलसी दुर्लभ दोय,
सुत दारा और लक्ष्मी पापी के भी होय ll
एक घड़ी आधी घड़ी आधी से भी आधी,
तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध ll
आपके सामने उत्कृष्ट व स्वादिष्ट पकवान रखे हों पर जैसे उनका रसास्वादन किये बगैर वे महत्वहीन हैं, वैसे ही आपके बहुत सी अच्छी बातें जानते हुये भी जब तक आप उन्हें अपने जीवन में लागू नहीं करते,उनका क्या महत्व?”
बिना संयम धारण के, बिना मुनि पद में स्थापित हुए, बिना चरित्र में स्थापित हुए ना मोक्ष का मार्ग मिलता है और ना मोक्ष मिल सकता है l
शब्द ही जीवन को अर्थ दे जाते है, और, शब्द ही जीवन में अनर्थ कर जाते है – मंजिलें मिले न मिले
ये तो मुकुद्दर की बात है
पर हम कोशिश भी ना करें
ये तो गलत बात है।
अपने को परिपूर्ण देखे बिना,अकेले रह पाना असंभव है।अपनी जिंदगी अपने हाथ मे है चाहे तो बिगाड़ो या बनाओ?जो सीखने में कंजूस है वो मूर्ख ही रहने वाला है।जिज्ञासा,समाधान बिना शांत नहीं होती है।
काटने के लिए तो सिर्फ एक ही चीज है और वो है कर्म।मोह में जीव करता पहले है और सोचता बाद में है।
जिन्हें संयम में शर्म आये,वो असंयम का समर्थक।
झूठ का सहारा हल्के लोग लेते हैं।
निराबलम्बन के बिना सुख असंभव है।
पाप दूर करने की चीज न कि भरपूर करने की l