क्या जैनत्व स्वयं से हारा हैं, यानि जैन कहलाने वालो ने ही इसे हराया है- वह समय दूर नहीं जब जैन समाज पूरी तरह विलीन हो जायेंगा

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जैन धर्म और जैन समाज का कोई भविष्य नही है ।इसके कई कारण है ।
सबसे बड़ा कारण यह है कि जैन धर्म अब धर्म नहीं रहा, यह तो अब एक जाति बन गया है । जैन अब उसे माना जाता हैं जो एक जैन घर में पैदा हुआ हो, चाहे वह जैन धर्म का पालन करें या ना करें।

जैन एक जाति बन जाने से यह भी सिद्ध होता है कि इनके दरवाजे दूसरो के लिए बंद हो चुके हैं।
जैन धर्म और जैन समाज का कोई भविष्य नहीं है ।इसका दूसरा कारण यह है कि इस समाज के तथाकथित अखिल भारतीय और स्थानीय नेताओं के पास कोई विजन नहीं है, एक वर्ग तो यह तक कहता है कि जैन मुनियों के पास कोई विजन है । अधिकतर मुनि संप्रदायवादी बन चुके है और अपने-अपने संप्रदाय को पंथवाद को बढावा दे रहे हैं । वैसे भी मुनि हो या नेता या फिर आम जनता, उन्हें जैन धर्म से कोई लेना देना नही है, सबको अपना-अपना संप्रदाय और पंथ ही प्यारा है ।

तीसरा कारण यह है कि अधिकांश मुनियों को अपने मठ तैयार कराने उनकी साज सज्जा कराने से ही फुरसत नहीं है, साथ ही अपना गुरुप बनाने मे पंचकल्याणको की टीम तैयार करने में पूरे पंचकल्याणको के ठेका लेने से फुरसत कहा है ।

चौथा कारण यह है कि ज्यादातर जैन लोग अपने आपको गर्व से हिन्दू कहलवाने लगें है, उनका मन हिंदुत्ववादी बन चुका है । जैनियों का अपना कोई ऐजेंडा नहीं है, वह तो हिंदुत्ववादियों के ऐजेंडे पर चल रहे है । इसके पीछे एक बडा कारण यह है कि पूरे जैन समाज को असुरक्षितता की भावना ने घेर लिया है ।ऐसी अवस्था में किसी बडे समुदाय के सहारे जीना, उनके अधीन होना उनके लिए आवश्यक हो गया है ।

एक सच्चा जैन उदारवादी विचारों का होता हैं, उसके मन में कोई भेद भाव नहीं होता, वह किसी से द्वेष नहीं रखता, उसका मन करुणामय होता है । वह युद्ध, दंगे फसाद आदि का समर्थन नहीं करता है, ना ही उसे युद्धज्वर चढता है । लेकिन वास्तव में आम जनता क्या, कई मुनि और आचार्यों को भी युद्धज्वर चढते देखा है।

ब्रह्मचारी भैया जी एवं ब्रह्मचारणी बहिनों द्वारा भी आचार्यों, मुनियों को भ्रमित कर नित नये मंदिरों के निर्माण की योजना उनके चंदा-चिट्ठा तैयार करवाने में, प्रतिष्ठाचार्य कौन ठीक हैं, संगीतकार फला होना, पुजारी एवं वेदी मूर्ति से लेकर टेंट तक की जिम्मेदारी मे समय जाता हैं, चिठ्ठी पत्रिका कैसी हो आफसेट किसका फला जगह की पत्रिका से बडी होना चाहिए ,भगवान की फोटोज भले ही छोटी हो मेरी फोटो बडी होना चाहिए आदि में समय जाया हो रहा है,ज्ञान ध्यान की चिंता नहीं है दुकान चलना चाहिए ।

हम देख रहे हैं ज्यादातर जैन लोग करुणाभाव से दूर चले गए हैं, जानवरों के प्रति भले ही उनके मन में करुणा हो पर इंसानों के प्रति कई जैन नफरत ही पाले रहते है ।और अधिकतर जैन लोग ऐसे भी है जो जैन धर्म में ही एक दूसरे संप्रदायों से नफरत पालते हैं।

इस पढें-लिखे समाज मे देखा जा रहा है कि लडकियों की निरंतर संख्या काफी कम हो गई है, इसका राज किसी से भी छुपा नहीं है ।इस कारण मजे की बात यह है कि लडकियों की कमी के कारण इस समाज के कई लडकों की शादी नहीं हो पाती, तो वह दूसरे समाज की लडकी खरीद कर लाते है और उससे शादी करते हैं।

वैसे तो आप जानते ही है कि जैन मुनियों के पास धर्म और समाज के भविष्य के बारे मे सोचने के लिए बिल्कुल भी समय नहीं है, क्योंकि उनका समय तो शासन देवता की पूजा करें या ना करें जलाभिषेक करें या दुग्धाभिषेक,स्त्रियों को अभिषेक करना चाहिए या ना करना चाहिए, पूजा ऐसी करें या वैसी करें आदि बातों की चर्चा करने मे जा रहा है
समाज की घटती संख्या की चिंता ना जैन नेताओं को है ना ही जैन मुनियों को है ।

अब जैनी केवल एक फीसदी का तीसरा हिस्सा यानि 0.3 प्रतिशत रह गये हैं । 135 करोड़ मे 45 लाख। वह समय दूर नहीं जब धीरे-धीरे हिंदू समाज मे जैन समाज पूरी तरह विलीन हो जायेंगा ।
वह दिन दूर नहीं जब यह जय जिनेन्द्र की जगह जय श्री राम बोलने लगेंगे, इनके मंदिरों में हिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ लगने लगेंगी और णमोकार मंत्र के साथ-साथ गायत्री मंत्र का जाप भी किया जाने लगेगा ।

तो यह एक डूबने वाला जहाज है, क्या इसे पूरी तरह से डूबने से कोई नहीं रोका नहीं जा सकता ?
जो समाज अपने धर्म से, धर्म के विचारों से प्रमाणिक नहीं है, उसके साथ ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है ।
जिस प्रकार व्यक्ति के कर्म का फल होता हैं,, उसी प्रकार समाज के सामूहिक कर्म का भी फल होता है ।

चहुँ ओर घना अंधियारा हैं, जैनत्व स्वयं से हार है ।

सोशल मीडिया पर आई एक पोस्ट से चिंतन हेतु