वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री 108 वर्द्धमान सागर जी महाराज के निर्यापकत्व में कर्नाटक के कोथली में 92 वर्ष की आयु वाली आर्यिका श्री 105 दुर्लभ मति माताजी अपनी दुर्लभ मानव पर्याय को सार्थक करते हुए दुर्लभ मोक्ष पद की प्राप्ति हेतु यम के 20वें दिन समाधि शाम 4.55 बजे सम्पन्न हुई
समाधि अमृत है शान्त व समतामयी परिणामों से की गई साधना उपासना है, कृष्ट पीड़ा दुख दर्द बीमारी को सहते हुए निर्मोही होना व ममत्व का त्याग करके अपनी चेतना को जागृत व जीवन्त रखना महान दुर्लभ परीक्षा है , यही कठिन श्रमकारी परीक्षा देने के लिए हमारे ऋषि मुनि सन्त सारा जीवन कृष्टो को सहते हैं कभी उफ़ भी नहीं करते है ,समतामय परिणामों की साधना ही समाधि साधना है , अपनी स्मृति के अन्तिम समय तक स्वय को स्व स्वरूप में लीन रखना ही सम्यक आत्म समाधिस्थ होना है ।
आज दिनांक 10 अक्टूबर 2021 को माताजी के यम सल्लेखना का 20वां दिन था । वर्तमान काल मे किसी भी दिगम्बर साधु की यम सल्लेखना का ये सबसे अधिकतम समय है। इससे पहले वर्ष 1996 1997 में कोलकाता में गणिनी आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी के निर्यापकत्व में आर्यिका श्री अंतर मति माताजी की यम सल्लेखना के 19 वें दिन समाधि सम्पन्न हुई। अहो धन्य है ऐसे अतिशय धारी दिगम्बर संत जो ऐसी उत्कृष्ट यम सल्लेखना को धारण कर समाधि करते है।
संयोग देखिए कि गृहस्थ अवस्था मे 12 जून 2015 को 12 वर्ष की नियम सल्लेखना आर्यिका श्री सरस्वती मति जी से कोथली में ली तथा कोथली में 29 जुलाई 21 को दीक्षा ली
92 वर्ष की उम्र में 22 दिन का निर्जल उपवास संभवत पहली साधना रही