निर्यापक श्रमण मुनिपुंगवश्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
आत्म बोध नहीं, अपराध बोध करो
1.पर वस्तुएं को पाकर मान किया पर स्वं कभी मान नहीं किया मेरे पास कितना है इस पर तो मान आया मैं कुछ हु इस पर मान कभी नहीं आया।
2.मैं लूट रहा हूं, अपराध कर चुका हूं, अनर्थ हो रहा है,बर्बाद हो गया खोखला हो गया,यह कभी भाव आया आत्मा का ज्ञान नहीं, अपराध बोध कभी हुआ
3.मैं खुद खो गया हूं ऐसा इसका कभी शोक हुआ,आंखें ख़ुद ही आपनी खुद की आंखें ढूंढ रही हैं,दीपक पूरी दुनिया को उजाला करता है खुद दीपक खुद को खोज रहा है।
4.आत्मा दिखने मे आना नहीं हैं, कभी हम आंखों से स्वं कि आंख देखना चाहते हैं
5.व्यक्तियों उसे जानना चाहता है, जिससे जान नहीं सकता,उसे देखना चाहता है, जिसे देख नहीं सकता,उस रास्ते पर चलना चाहता है उस रास्ते पर चल नहीं सकता,उनसे बोलता है, जो बोलते नहीं,वह खाना चाहता है, जो उसकी थाली में नहीं है,उतना ही सोचो जितना समझ में आ जाए।
शिक्षा-जिस दिन तुझे अपने आप पर मान आ जाएगा, उस दिन अपने आप को पा लेगा ।
संकलन ब्र महावीर