निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
स्वं को खोने का एहसास कभी हुआ,ध्यान में बैठ कर स्वयं की अर्थी देखो
1.कभी भगवान और मुनि को देखकर यह भाव आया कि मैं भी कभी भगवान,मुनि होंगा,णमोकार की माला फेरते हुए कभी भाव आया कि मैं भी कभी पंच परमेष्ठी में स्वयं आ सकता हूं यह भावना की कोशिश करें।
2.सारा संसार अपना कृत्य स्वं के लिए गलत करता है दूसरी के लिए की गई गलती तो मान लेता है, स्वयं को अपनी गलती का कभी अनुभव नहीं होता,स्वं को कभी अनुभव हुआ कि मैं परिग्रह से लद रहा हुं, स्वं से अरीति भाव नहीं आया, पर से अरीति आई है।
3.हम अस्ति की अनुभूति तो होती है लेकिन नास्ति की अनुभूति नहीं होती है ,हम सब मे अपने अस्तित्व को देख लेते हैं ,लेकिन नित्य क्या है, यह मत समझो, अनित्य क्या है यह समझो।
4.12 भावना आती है. नित्य भावना .एकाकी भावना से चलेंगे. तो वैरागी नहीं हो पाओगे. हम अंहकारी हो जायेंगे. दुनिया को कुचल देंगे,अनित्य भावना से चलोगे तो दुनिया को हमसे ऐतराज़ नहीं होगा हमको भी दुनिया से एतराज नहीं होगा
5.जितना जितना दूध सुखता जाता है उतना मावा बनता है यदि हम जिंदगी भर दूध को रख लें तो मावा नहीं बन पाएगा,पहुंचना अस्ति की तरफ है शुरुआती नास्ति की तरफ से,पहुंचना नित्य की तरह है शुरुआत अनित्य से करना है,पहुंचना मोक्ष में है शुरुआत संसार से करनी हैं।
शिक्षा-कभी मैं खुद खो गया हूं आपको अनुभव हुआ हैं।
संकलन ब्र महावीर