यम सल्लेखना का 7वा दिन, 92 वर्षीया आर्यिका दुर्लभ मति माताजी जीवन के श्रेष्ठतम लक्ष्य की ओर

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कोथली । आज 27 सितम्बर 2021 को 92 वर्षीय क्षपकोत्तमा आर्यिका श्री दुर्लभ मति जी का 7 वा उपवास है
वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी निर्यापकाचार्य हैं

आज 7 वा उपवास
सात 7 का अंक हमे संदेश दे रहा है कि 7 नरक में नही जाना है
तो 7 व्यसन छोड़ो
7 तत्व
7 ऋषियों का चिंतन करो
7 दाता के गुण श्रद्धा संतोष
भक्ति विज्ञान लोभ का अभाव
क्षमा सत्य का पालन करो

92 वर्षीय क्षपकोत्तमा पूज्य आर्यिका श्री दुर्लभ मति माताजी
जिन्होंने दुर्लभ मानव पर्याय का सदुपयोग कर नारी पर्याय को सर्वोच्च साधिका पद को धारण कर चारो प्रकार के आहार का त्याग कर दिनांक 21 सितम्बर 2021 को वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टा धीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी निर्यापकाचार्य
के निर्देशन में संस्ता रोहण 21 सितम्बर को कोथली में किया

शास्त्रों में वर्णन है कि श्रेष्ठ आचार्य निर्यापकाचार्य के सानिध्य में उत्कृष्ट सल्लेखना समाधि होने पर क्षपक साधु या क्षपकोत्तमा माताजी का जीव अगले 2 भव से 8 भव में सिद्धालय में आरूढ़ होता है

आचार्य श्री देशभूषण जी जी जन्म भूमि कर्म भूमि में यह चरितार्थ हो रहा है। कि पंचम पट्टा धीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का संघ सहित बेलगांव से श्री महावीर जी राजस्थान का विहार प्रारम्भ हो गया था किंतु कोथली के भक्तों की भक्ति रंग लाई 3 वर्षो से चातुर्मास का निवेदन कोरोना के निमित भलीभूत हुआ

और 2021 का चातुर्मास कोथली को मिला विकल्प बहुत थे किंतु कोथली की भक्ति पूण्य तेज रहा
जीवन है पानी की बूंद कब मिट जावे . इस शास्वत सत्य को जीवन मे अंगीकार किया 92 वर्षीय सुशीला जी ने ऒर आर्यिका दीक्षा लेकर उत्कृष्ट समाधि की याचना कामना आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी से की श्राविका की उच्च भावना का सम्मान कर आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने स्वीकृति दी

2 माह पूर्व माह जुलाई में कोथली में दीक्षा संस्कार आर्यिका श्री सरस्वती मति माताजी ने तथा मंत्रोचार आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने किए

21 सितम्बर 2021 को आर्यिका श्री दुर्लभ मति जी ने संस्ता रोहण कर यम सल्लेखना आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी से ग्रहण कर चारों प्रकार के आहार का त्याग कर दिया

कोथली आचार्य श्री देश भूषण जी की जन्मभूमि तप भूमि कर्म भूमि तथा अनेक पूर्वाचार्यो की चातुर्मास स्थली है यहाँ का कण कण पवित्र है
जिन्हें क्षपक साधु की तन्मयता एकाग्रता गुरुभक्ति देखने को तथा आचार्य श्री मुनिराजों गणनी माताजी तथा अन्य साधुओ का सम्बोधन वात्सल्य भी सहज मिल रहा है
कहते है कि क्षपक साधु के दर्शन करना अंतिम समय की सजगता
इन्द्रिय संयम देखना हजारों तीर्थ यात्राओं से बढ़ कर है

पूज्य आर्यिका माताजी की सजगता तन्मयता एकाग्रता , सरलता विनय दर्शनीय पूजनीय है, ऐसे दृश्य मन को आनंदित करते हैं और ऐसे दृश्य देख कर ही कर्मों की निर्जरा होती है

णमोकार मंत्र की माला फेर कर क्षपकोत्तमा आर्यिका माताजी के अद्युत साहस की अनुमोदना कर सकते है
राजेश पंचोलिया इंदौर