दिलों में जो सूनापन – टूटापन हैं, तेरापंथी, श्वेतांबरी, मंदिरमार्गी, ये सब हटाकर जब हम एकता का शंखनाद बजाएंगे तो जो रूखापन है, वह बदल जाएगा

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आत्मा में रमण करना ही उत्तम ब्रह्मचर्य

सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 20 सितंबर 2021

मंगलमय और मंगलकारी पर्यूषण पर्व है आता
अनेकांतमय वास्तु व्यवस्था का यह बोध कराता
स्याद्वाद शैली से संशय तिमिर मिटाता
उत्तम क्षमा मार्दव आजर्व धर्म भाव प्रकटाता
शौच सत्य संयम तप त्याग धर्म उपाय बताता
उत्तम आकिंचन्य धर्म यह परिग्रह त्याग मिटाता
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म अपना बह्म स्वरूप दिखाता
चहुं गति दुख नशाता, जन गण मन हर्षाता
जिन शासन सुख दाता।
सम्यक् दर्शन ज्ञान चरणमय मुक्तिमार्ग बतलाता
जय हे…. जय है…. जय है….
शासन ध्वज लहराता, मुक्ति मार्ग बतलाता
मोह तिमित मिटाता

संयोजक डॉ. अमित राय जैन : भ. महावीर देशना फाउंडेशन के तत्वावधान में एक विशेष परिकल्पना जैन एकता और समन्वय की दृष्टि से संचालित है। पिछले वर्ष से यह कार्यक्रम हुआ 18 दिवसीय, जैन पर्यूषण पर्व के आज 17वें दिवस की धर्मसभा में स्वागत करते हुए कहा कि उद्देश्य केवल यही है कि जैन समाज, जैन दर्शन, जैन धर्म, जैन संस्कृति का विकास हो और वैश्विक स्तर पर इसकी स्थापना हो, इसके लिये अपने-अपने स्तर पर विभिन्न विषयों पर शोध-अनुसंधान करने वाले और जैन धर्म की गरिमा को आगे बढ़ाने वाले सभी व्यक्तियों को भगवान महावीर देशना मंच एक स्थान, एक स्थल, एक मंच पर इकट्ठा करने का प्रयास कर रहा है।

पूज्य मुनि श्री सुविज्ञ सागरजी : सभा के शुभारंभ में मंगलाचरण करते हुए मुनिश्री ने कहा कि जिस तरह यह जैन एकता का प्रयास है, इससे हम लोगों का और उत्साह बढ़ा। आचार्य भगवंत ने दिगंबर, श्वेतांबर, समस्त पंथों की एकता के लिये सन् 2013 में हल्दी घाटी में चातुर्मास किया था, जिसे श्वेतांबर भक्तों ने कराया था। आचार्य कनकनंदी जी की एक रचना मंगलाचरण के रूप में प्रस्तुत की।
जैन धर्म की एकता को मानो, एकता योग्य सूत्र पहचानो
एकता से प्राप्त लाभ को पाओ, विघटन हानि को कभी न पाओ
जैन धर्म की एकता को मानो।
अनेकांत व स्याद्वाद मानो, बहु तत्व व पदार्थ जानो
मोक्ष मार्ग व मोक्ष पहचानो, तीर्थंकर महामंत्र मानो
अनेकांत है जैन सिद्धांत, एकांत दुराग्रह पर सिद्धांत
एकांत दुराग्रह होता मिथ्यात्व, अनेकांत बिना नहीं सम्यक्तव
भाव अहिंसा है अनेकांतवाद, वाचनिक अहिंसा होता स्याद्वाद
समस्त जैन पंथों में मान्य अनेकांत व स्याद्वाद मान्य।
अनेकांत बताता अनंत गुण धर्म, भाव अहिंसा समता कर्म
विरोध में अविरोध सिखाता, वैश्विक उदारता वो बताता
वचन पद्धति होता स्याद्वाद, वचन अनेकांत होता स्याद्वाद
हित मित प्रिय समन्वय प्रथम, अर्पित अनंत होता कफन
षट् द्रव्य सप्त तत्व समाना, नौ पदार्थ भी होते समाना
समस्त जैन पंथों में मान्य, इसी दृष्टि से एक समाना
मोक्ष का मार्ग है रत्नत्रयमय, द्रव्यता आत्म व पदार्थ माया
रत्नत्रय की गुणता है मोक्ष, जैन मतों में यह प्रमुख
तीर्थंकर भी होते 24, सभी को मान्य होते विशेष
णमोकार मंत्र भी सभी को मान्य, महिमा फल भी सभी को मान्य
आचार-विचार में थोड़ा विभिन्न, आलव कर्म वाणी कारण
पंचम पालम विचित्र कर्म, जिससे बने पंथ विभिन्न
कदापि विद्वेष नहीं करना, समता एकता सदा पालनीय
राग-द्वेष सर्व तजनीय, मैत्री प्रमोद समभजनीय
अन्यथा विद्वेष विरोध बढ़ते, पाप ताप व पतन होते
उभय लोक दुख माया होता, मोक्ष के बिना संसार बढ़ता
मत पंथों में भले रहे भिन्नता, मन से विद्वेष त्यागो सर्वथा
एकता प्रेम से करो विकास, कनकनंजी का मिले आशीष
जैन धर्म की एकता मानो, एकता योग्य सूत्र पहचानो।

डायरेक्टर श्री मनोज जैन दरियागंज : स्वागत संबोधन में सभी गुरुओं के चरणों में नमन वंदन और विशिष्ट अतिथि गण का स्वागत करते हुए कहा कि आज का दिन है उत्तम ब्रह्मचर्य – उत्तम ब्रह्मचर्य मन लावे, नरसुर सहित मुक्ति फल पावें।

बड़ा हर्ष का विषय है कि तिलवारा में विराजे आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के कल आशीर्वाद एवं दर्शन हेतु हमारे देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह साहब गये थे। किसी भी सरकार को, सत्ता को चलाने के लिये गुरुजनों का आशीर्वाद और उनके उपदेश जब तक सत्ता के लोग न लें, तब तक सरकार नहीं चल सकती है। यह जैन समाज के लिये गर्व का विषय है कि भारत सरकार के गृहमंत्री श्री अमित शाह साबह आचार्य श्री के समुख प्रस्तुत हुए, उनसे आशीर्वाद और मार्गदर्शन लिया। भगवान महावीर के संदेशों का पालन करने के लिये वे प्रतिबद्ध रहे।

महासाध्वी श्री हिमानी जी रिद्धिमा जी महाराज, बंग्लौर चातुर्मास : जो भीतर में आप लोगों के एक उत्कंठा, उत्साह है कि हम एकता का शंखनाद चल पड़े हैं। देखने में प्रतिदिन आ रहा है बड़े-बड़े महासाध्वी जी महाराज, उपाध्याय भगवन की तो अंदर की ही एक पीड़ा और उनका परा समर्पण कि जितना हो सके, हम एक होकर ले चलें। उन्हीं के लक्ष्य को लेकर इस मंच के डायरेक्टर और संयोजक लेकर चल रहे हैं, एक होकर आगे बढ़ रहे हैं। सभी पंथों के अंदर एकता का ही भाव है।

एकता क्या है? एकता क्यों हम करना चाह रहे हैं? यह बहुत गहरा प्रश्न है। एकता सबको चाहिए लेकिन क्या हम सचमुच एकता के भाव में आ रहे हैं? क्या हम साधु-साध्वी समाज मिलकर एक हो सकते हैं। कुछ चंद साधु-साध्वियों के चाहने से संभव नहीं है, लेकिन मैं कहना चाहूंगी कि हम सबको एक होना है। क्यों हम राख के ढेर बनते जा रहे हैं। कभी हम स्वर्णिम थे, सिर्फ एक ही वजह है हम बिखरते जा रहे हैं। उसी को एक करने के लिए भ. महावीर देशना फाउंडेशन ने यह बहुत सुंदर अभियान चलाया है। हम बड़े-बड़े कार्यक्रम करते हैं लेकिन ये कार्यक्रम सबसे हटकर है और सबसे पसंदीदा बन जाएगा कुछ सालों में क्योंकि आज युवा जनरेशन हमारे पास नहीं आ रहा है क्योंकि जो भी युवा आएगा हम उन्हें बोल देते हैं कि तू स्थाकवासी है या कौन से पंथ है? यदि उन्हें प्रेक्टिकली धर्म से जोड़ना है, तो हमें स्वयं पहले जुड़ना होगा, तभी युवा जुड़ेंगे। उपाध्याय गुरुवर युवाओं के साथ अपने को बदल लेते हैं, उन्हें प्रेक्टिकली समझाइये कि कोई बिखरा हुआ नहीं है, सब एक है।

जब ग्रीष्म ऋतु चली जाती है, जैसे ही वर्षा ऋतु आती है तो ठंडी की फुहार से गर्मी की तपन चली जाती है, धरती पर हरियाली हो जाती है। इसी तरह एकता में भी वही बल है जो ग्रीष्म ऋतु के बाद बसंत ऋतु का है, यहां पर अगर एक हो गये तो दिलों में खुशहाली आ जाएगी। दिलों में जो सूनापन है, टूटापन हैं, मैं तेरापंथी, मैं श्वेतांबरी, मैं मंदिरमार्गी, ये सब हटाकर जब हम एकता का शंखनाद बजाएंगे तो वो जो रूखापन है, वह बदल जाएगा। सबसे पहले कोई भी आता है, हमें अपना व्यवहार बदलना होगा, दिल विशाल करना होगा। हम उनसे यह प्रश्न ही न करें कि तू किस पंथ से है? हमने महावीर को बांट दिया है, हमने संघों को, समाजों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जहां देखते हैं कि मेरा समाज है तो मेरे पास ही आए। इन बातों को समझना है।

संस्थापक डॉयरेक्टर श्री सुभाष जैन ओसवाल : आत्मशुद्धि का ये महानपर्व, 8 नहीं, 10 नहीं, 18, अनन्तचौदस के रूप में हम देश नहीं सारे विश्व में तप, त्याग, साधना, दान और प्रतिक्रमण के द्वारा मना रहे हैं। एक अद्भुत त्यौहार है, जब क्षमा का उद्घोष किया जाता है, क्षमा मांगी जाती है और क्षमा का उद्घोष करने वाले एकमात्र भगवान हुए हैं, वो भगवान महावीर स्वामी है, जिन्होंने क्षमा का बहुत बड़ा महत्व दिया, बहुत बड़ा वर्णन किया। ऐसे पावन और मंगलमय अवसर पर महावीर देशना फाउंडेशन ने दो वर्ष के कार्यकाल में ये अभूतपूर्व कार्यक्रम आरंभ किया है, जिस रूप से हमने कल्पनी की और मंच का एक संगठन बनाकर हमने कार्यक्रम किया, हमारे अनिलजी, राजीवजी, मनोज जी ये तीनों समाज के होनहार व्यक्तित्व हैं, जिनको जैन समाज से बहुत बड़ी आशायें और उपेक्षायें हैं कि जैन समाज का एक उज्ज्वल भविष्य है और बहुत बड़ी एकता और समन्वय की एक बहुत बड़ी क्षमता और दिशा है इनके मन में।

हमने महावीर देशना फाउंडेशन, पिछले वर्ष लगभग 30-40 आचार्योें ने इस मंगलमय आशीर्वाद दिया, कार्यक्रम में पधारे। ये कार्यक्रम तीन प्रमुख योजनाओं को लेकर चल रहे हैं। ये मंच अभूतपूर्ण इसलिये है क्योंकि यहां पर हर विद्वान को सम्मान मिलेगा, हर कार्यकर्ता को जोड़ा जाएगा, हर संत की वाणी को हम सुनेंगे, चाहे वह किसी परंपरा का हो, चाहे वो स्थानकवासी हो, तेरापंथी हो, श्वेतांबर हो, दिगंबर हो, इसीलिये हमनें नारा दिया है कि श्वेतांबर या दिगंबर, सभी परम्पराओं के जितने भी इनके गच्छ हैं, सम्प्रदाय हैं, सब मिलकर ऐसा मंच तैयार करें, जो जैन एकता का पक्षधर हो, जो समाज को जोड़ने का, फायरब्रिगेड का काम करें, न कि पेट्रोल का काम करें।

पं. श्री विनोद कुमार जैन रजवांस : यह 18 दिवसीय जैन पर्यूषण पर्व सम्पूर्ण जगत में एक नये सितारे की तरह है, अभी तक दसलक्षण पर्व या अन्य पर्व के नाम से जाने जाते थे, अब ये 18 दिवसीय पर्यूषण पर्व पूरे विश्व में मनाया जा रहा है, इसके लिये बहुत-बहुत बधाई।

ब्रह्मचर्य तो सब जानते हैं, लेकिन उत्तम ब्रह्मचर्य में दो चीज आगे-पीछे जुड़ी हैं, उसे भी जानना चाहिए। ब्रह्मचर्य तो अपनी आत्मा में रमण करना है। उत्तम से मतलब है जो सम्यकदर्शन से सहित हैं, जो साधना में संलग्न हैं, जिन्हें ब्रह्मचर्य को ही जीवन में धार लिया है, आत्मा के स्वभाव को पहचान लिया है, उस अनुरूप आचरण करना प्रारंभ किया है। जहां साधुजन, महाव्रती इसे सर्वदेश पालन में संलग्न है, वहीं हम श्रावक एकदेश पालन करते हैं।

हम अपने आत्मस्वभाव में ही स्थित होकर रहें, क्योंकि जो हमने अन्य धर्मों की आराधना की है, उसमें हमने आपको अन्य वस्तुओं से अपने आपको अलग स्वीकार किया और अब उसमें रमण करने की बात कह रहे हैं। गृहस्थ एकदेश कैसे पालन कर पायें? पंचेन्द्रियों के विषय में आसक्त हो जाना अब्रह्म है, स्पर्शन और रसना इंद्रिय का विषय वह काम है, जो घ्राण चक्षु के विषय भोग हैं। आज वर्तमान में हमारा उपयोग बाहर की तरफ जा रहा है, अंतर दृष्टि समाप्त होती जा रही है। अंतरंग कारण जहां हमारा चारित्र मोहनीय कर्म का उदय होता है और वहीं बाहर का वातावरण हमारा निमित्त बन जाता है। बाहर के वातावरण को देखकर हमारे पहनावे में बदलाव आ रहा है, फैशन से बचो। फैशन खूब करो, जिसमें काम की वासना जागृत न हो सके। भोजन की ओर ध्यान देना होगा। अगर हमारी आहार चर्या व्यवस्थित रखना चाहिये। हमें साधुओं के उपदेश सुनकर सात्विक भोजन लेना चाहिए। वास्तव में ब्रह्मचर्य बाह्य का नहीं, अंतरंग के भाव है। जब कोई व्रत लेता है, उसमें स्पष्ट कहा जाता है कि आपका बाह्य से, शरीर से तो ब्रह्मचर्य का पालन हो जाएगा, लेकिन परिणामों से, भावों से, अंतरंग से अगर ब्रह्मचर्य का पालन हो जाए तो वह श्रेष्ठ ब्रह्मचर्य धर्म का पालन होता है। हमें अपने भावों को संभालना है, अपने अंतर में उठने वाले विकारों को समाप्त करना है। इसे समझकर अनुकरण भी करें।

जैन सिद्धांत विश्व पटल पर आज सबके सामने है। कोरोना काल चला तो विदेशी विद्वानों ने कहा कि यदि कोरोना से बचना चाहते हों, तो जैन सिद्धांतों को मानना पड़ेगा। आज जैन थाली, जैन भोजन चलता है, उसे जैन ही नहीं, अन्य लोग भी मान्यता दे रहे हैं। हम बिखरे पड़े हैं, एकता की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं। अ.भा.दि. जैन शास्त्रि परिषद जो विद्वानों की शताब्दिक वर्ष पहले की संस्था है, मैं उसका संयुक्त सचिव हूं, मैं कह पा रहा हूं, कि आप आगे आ रहे हैं, सारे विद्वान मन वचन काय से आपके साथ हैं।

मुनि श्री सौरभ जी महाराज, चातुर्मास गुड़गांव : यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि जैन एकता का एक उपक्रम पर्यूषण और दसलक्षण की संयुक्त आराधना, ऐसी आराधना भ. महावीर देशना फाउंडेशन द्वारा आयोजित बहुत अनुकरणीय उपक्रम है। आज जैन धर्म का पर्यूषण और दसलक्षण का अंतिम दिवस अनंतचतुर्दशी का पावन दिन एवं उत्तम बह्मचर्य का धर्म है। जैन धर्म वीतरागता पर विश्वास करता है। राग-संसार का कारण है। वीतरागता संसार से पार होने का कारण है। वीतराग बनने के लिए आत्मा की उपासना करनी चाहिए। आत्म को ब्रह्म कहा गया है, उसमें रमण करना, उसकी शक्तियों और गुणों में तल्लीन हो जाना, उत्तम ब्रह्मचर्य है। उसमें अपने जीवन को नियोजित करना, इससे श्रेष्ठ संसार में रहते हुए और कुछ नहीं हो सकता। ऐसा करता हुआ व्यक्ति जन्मों-जन्म के कर्मों को समाप्त कर सकता है और आत्मभाव का अनुभव करता हुआ, आत्मा में विद्यमान अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत आनन्द का साक्षात्कार करता हुआ आत्मा में आनंद बनाने वाला बन जाता है। ऐसे उत्तम रूप से आराधना करना।

जिनशासन यही कहता है कि ऐसे महान उपक्रम है कि समस्त जैन समाज एक मंच पर आए, आज वर्तमान में जैन एकता की जितनी बड़ी आवश्यकता है और जैन धर्म के कल्याणकारी कर्तव् के प्रचार-प्रसार की जितनी आवश्यकता है, जैन धर्म के उत्तम सिद्धांत का अनुसरण करने की आवश्यकता है, वह तभी हम कर सकते हैं जब हम सभी एक मंच के अंदर आए और भगवान महावीर स्वामी के उस उत्तम सिद्धांत जियो और जीने दो को पूरे संसार के अंदर यह संदेश देना का प्रयास करें। आज जितना आचरण का विषय है, और आज के समय में प्रचार का बहुत बड़ा महत्व बन जाता है। हम ऐसा प्रयास करें जैसे नमस्कार महामंत्र है, समग्र जैन समाज के अंदर मान्यता प्राप्त है, जियो और जीने दो, नौ तत्व अथवा सात तत्व हैं पूरे जैन समाज के द्वारा माना जाते हैं, ऐसी आराधना के माध्यम से हम प्रयास करें क्योंकि समग्र समाज के द्वारा जो श्रमण सूत्र का निश्चय किया गया है, ऐसे 18 दिवसीय पर्यूषण और दसलक्षण पर्व के अंदर उसको आधार बनाकर अगर प्रवचन का विषय रखा जाए और उसके माध्यम से पढ़ा जाए और श्रमण सूत्र को सिखाने के लिये, पढ़ाने के लिये और विशेष प्रकार के अध्यापक का आयोजन किया जाए, सभी जगह उसका प्रयास किया तो जैन समाज के माध्यम से देश और विदेश के अंदर श्रेष्ठतम संदेश जा सकता है।

डायेरक्टर श्री राजीव जैन सीए : आज 17वां दिवस है, यूं तो पर्यूषण पर्व आज अनंतचतुर्दशी के साथ। कल का दिन होगा क्षमा का, प्रायश्चित, प्रतिक्रमण और भाव आलोचना के रूप में मनाएंगे। कल का दिन विशिष्ट इसलिये रहेगा कि आज तक इस सभा में जितने भी मुनि महाराज और आचार्य भगवन् और साध्वी जी पधारें हैं, कल उन सभी के दर्शन आपको इस मंच पर होंगे। कल इस मंच से हम अपने अगले कार्यक्रम की घोषणा करने वाले हैं।

पिछले वर्ष हमने 18 दिवसीय पर्व का यह कार्यक्रम शुरू किया। ये पीड़ा प्रारंभ हुई हम लोगों के मन में, आप लोगों ने सोचा होगा कि हम समाज के ऐसे नेता नहीं, नेतृत्व प्रदान करने वाले नहीं है, हम सभी प्रोफेशनल्स हैं, तो हम प्रोफेशनल्स को ऐसी क्या आवश्यकता आन पड़ी की हमें जैन एकता के कार्य को हाथ में लेना पड़ा, शंखनाद करना पड़ा, क्योंकि राजनीति या धर्म की राजनीति हमारा क्षेत्र नहीं है। मैं आपको बेकग्राउंड में लेकर चलता हूं। वर्ष 2014 के आसपास की बात है, हमारे अनिलजी ने मुझसे सम्पर्क किया कि हमारे देश की एक संस्था है भगवान महावीर मैमोरियल समिति। इस संस्था के विषय में जानता था सन् 2002 से। लेकिन राजनीति के क्षेत्र के व्यक्ति नहीं हूं, हमने छोड़ दिया कि समाज के जो वर्धस्थ हैं, शीर्ष नेतृत्व का कार्य कर रहे हैं, अच्छा कर रहे होंगे। लेकिन जब संस्था का विशलेषण किया तो पाया कि वर्ष 1974 में इस संस्था का गठन किया गया, हमारे देश के प्रमुख कर्णधारों को एक जगह एकत्रित हुए तो देश में एक नई क्रान्ति आई और हमें परस्परोग्रहो जीवानाम् का जैन चिह्न मिला जिसे पूरा जैन समाज मानता है।

उसी प्रकार 1974 में हमें जैन ध्वज मिला और हमें श्रमण सूत्र मिलें। ये तीन उपलब्धियां वर्ष 1974 में प्राप्त हुई। किसने ये एकता बनाई? उस समय चारों समाज के आचार्यों प्रमुख संत एक साथ बैठे, एकसाथ मिले और ये खुले मंच से इस बात की घोषणा करता हूं कि जो जैन समाज है वह धर्म संघ है। चतुर्विध संघ का नायक वो है, जो भगवान महावीर के पाट पर विराजमान हैं, आचार्य हैं वो धर्म संघ के नायक हैं। श्रावक वर्ग का कोई व्यक्तिविशेष चाहे वह श्रेणिक, चन्द्रगुप्त जितना महान हो, वह देश का राजा तो बन सकता है लेकिन वह धर्म संघ का नायक नहीं बन सकता। लेकिन 1974 के बाद कोई प्रयास ऐसा नहीं हुआ कि ये सारे संत एकसाथ बैठे, और देश को नेतृत्व प्रदान करें।

जो संस्था बनी हमारी भगवान महावीर मैमोरियल, उस संस्था में जो लोग जुड़े, उस संस्था से सभी साधु अलग हो गये और संस्था में परिवारवाद और व्यक्तिवाद का पोषण हो गया। धीरे-धीरे उस संस्था से समाज का जो केन्द्रीय नेतृत्व, जो केन्द्रीय संस्थायें हैं, उनका उससे जुड़ाव नहीं रहा, तो वह संस्था कुछ व्यक्तियों की संस्था रह गई। हम उपेक्षा करते थे कि वह संस्था उठेगी और जैन समाज को एकत्रित करेगी। पिछले पांच-छह वर्षों में हमने इस बात का प्रयास किया। बहुत ही पीड़ा से मैं इस बात को कह रहा हूं कि हमारी इस पीड़ा को सुना श्रीमती इंदु जैन जो आप हमारे बीच नहीं है। हम समाज के लोग उनके पास गये और कहा कि आप देश के ऐसे परिवार से सम्बंध रखती हैं, जिन्होंने सन् 1971 में जब जैन एकता बनी, तब आचार्य सुशील मुनि ने बीड़ा उठाया सब संतों को इकट्ठा करने का और पूरे समाज को एकत्र करने का बीड़ा उठाया साहू शांतिप्रसाद जी के परिवार ने। आपके परिवार ने इतनी बड़ी जैन एकता बनाई है, तो ये संस्था जो लुप्त हो गई है, आप दोबारा स्टैंड लीजिए, जैन समाज को एक कीजिए, भगवान महावीर के इस स्मारक का जो धौलाकुआं में एक जगह है, उसका निर्माण कीजिए, देश को नेतृत्व प्रदान करिये और जैन एकता का मंच बनाइये।

आदरणीय दिवंगत श्रीमती इंदु जैन ने एक महिला होते हुए बहुत सशक्त स्टैंड लिया। उन्होंने बजट बनाया कि ढाई सौ करोड़ लगाकर हम दिल्ली में निर्माण करेंगे, साथ में जैन एकता का बिगुल बजाया और अकेली खड़ी हुई कि जैन एकता होनी चाहिए। अब यह संस्था किसी एक की रहेगी। उन्होंने बिगुल बजाया कि यह जो भ. महावीर मैमोरियल समिति है, यह समाज को समर्पित होनी चाहिए, इस संस्था में परिवारवाद और व्यक्तिवाद का अंत होना चाहिए, देश की केन्द्रीय संस्था को जोड़ा जाना चाहिए। ऐसी उन्होंने एक कठोर स्टैंड लिया और उसके बाद वह संस्था कुछ विवादों में चली और विवादों में ही समाधान है। यह बात समझनी होगी कि जब तक हम एक पक्ष को नहीं सुनेंगे, समझेंगे तब तक हम सुधार के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ेंगे। जब हमें लगा कि इस संस्था को विवाद से समाधान तक का रास्ता तय करने में बहुत लंबा समय लगेगा और मामला जब कोर्ट – कचेहरी में चला गया है, वहां समय की कोई पाबंदी नहीं है। जिन लोगों से विचार-विमर्श करना जा रहे हैं, उस विचार-विमर्श में शायद कोई कमी है, तो ऐसी कुछ बाध्यता हमारे सामने खड़ी हुई, तो सोचा कि हम इस जैन एकता के प्रयास के लिये किसी से क्यों कहें, हमें समाज की आवश्यकता है।

यदि कोई और संस्था, जिस संस्था के ऊपर जिम्मेदारी है, वह नहीं उठाती तो हम एक आवाज तो लगाकर देखें कि देश के मानस क्या है, देश की चिंता क्या है? देश के संत क्या सोचते हैं? ये सोचकर हमने आवाज लगाई, भगवान महावीर देशना फाउंडेशन का गठन किया और जो जबर्दस्त रिस्पोंस पिछले वर्ष हमें मिला, उसे देखते हुए इस वर्ष 05 अगस्त 2021 को हमने इस मंच को व्यवस्थित स्वरूप प्रदान कर दिया। हमें पता चल गया कि पूरा देश एकता चाहता है। पूरे देश का हर विद्वान, हर मुनि एकता चाहता है, जो आज की हमारी जनरेशन जो देश के बाहर पढ़ रही है, जिनका व्यवहार जैनियों तक सीमित नहीं है, आज के बच्चे का कार्यक्षेत्र विश्व पटल पर कार्य करता है। उसे किसी कमरे की चार दीवारी में नहीं बांध सकते और बांधोगे तो वह प्रश्न करेगा कि आप ये क्या कर रहे हो? अंतत: वह आप से टूट जाएगा। आने वाले 40-50 साल में अगर हम जैन एकता को बनाने में कामयाब नहीं हुए, निश्चित तौर पर हमारे बच्चे और जैन धर्म जो कहते हैं 50 लाख है, वह आने वाले समय में क्षीण हो जाएगा।

डॉ. राजमलजी जैन कोठारी : मैं दो बातों से प्रभावित हुआ कि इस एकता के पीछे उद्देश्य सुनकर और हिमानी माताजी ने कहा युवाओं को हमें साथ में लेना चाहिए। मैं स्वयं एक प्रयोगशाला हूं, इस धरती पर 100 देशों की यात्रायें कर चुका हूं और आचार्य कनंकनंदी जी के उपदेशों को कई देशों में ले जाता हूं। मेरा एक अनुभव यह रहा है कि जब तक इस युवा पीढ़ी को उसकी अपनी भाषा, अपने ज्ञान के हिसाब से जैन धर्म की बात नहीं कही जाए तो उनका जो मोह है, वो भंग नहीं होगा और वे आधुनिकता के रंग में जो रंग गए हैं, वो वापस जैन धर्म के प्रभाव में नहीं आएंगे।

दो दिन पहले पूना में जो बहुत बड़ा दिगंबर जैन समाज है, उसमें एक प्रवचन रखा था जिसका नाम दिया अहिंसा का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण। उसमें आईटी सेक्टर के इंजीनियर्स, उनके पूरे परिवार न केवल भारत में, उस समय रात के समय में अमेरिका, यूरोप में कई सारे लोग थे, उन्होंने बात सुनी। जब अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत की बात की बात जो है, वह भ. महावीर से पहले ही प्रारंभ हो गई थी। यह कहना गलत होगा कि जैन धर्म की स्थापना भगवान महावीर ने की।

भगवान ऋषभदेव ने जो लाखों वर्ष पहले इस धर्म को उनके करुणामयी संवेदना से जब प्रारंभ किया था, तो उन्होंने ये बात कही थी। उन्होंने जो धर्म प्रारंभ किया वह प्रकृति का धर्म था। वो बात धीरे-धीरे करुणा की बात थी, वह भ. महावीर तक आते-आते अहिंसा में हो गई। भ. महावीर ने जरूर जैन धर्म की बहुत सारी अच्छी व्याख्यायें दी, सिद्धांत दिये लेकिन हम इनको वापिस विश्व के पटल करके सही ढंग से पेश कर पा रहे हैं, ये सबसे बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है और इसका जवाब देने के लिये एक ही दिगंबर लड़े, एक अकेला श्वेतांबर लड़े तो संभव नहीं होगा, हम सबको इसका प्रयास करना पड़ेगा।

सन् 1998-99 में हल्दी घाटी में आचार्य कनकनंदी जी के नेतृत्व में हमने जैन एकता का बिगुल बजाया था। वहां चारों सम्प्रदाय के पांच हजार लोगों को इकट्ठा किया था। मशाल वहां से प्रारंभ की थी, लेकिन बात ये अलग है कि बाद में सही परिणाम उसके नहीं आए, लेकिन आचार्य श्री ने उसे चालू रखा। चाहे वह विद्वता के परिप्रेक्ष्य में हो, कुछ एक्सपेरिमेंट के तौर पर हो, प्रवचनों-ग्रंथों के माध्यम से हो उन्होंने प्रारंभ रखा। मैं इस बात का बहुत ही आभारी हूं, प्रसन्नचित्त हूं, कि भ. महावीर देशना फाउंडेशन की बात से, मैं तो स्वयं ही चाहता हूं कि हमारे चारों सम्प्रदाय एक हो जाएं, सारा जैन धर्म एक हो जाएं।

आचार्य श्री कनकनंदी जी महाराज : आप लोगों के उद्देश्यों से मुझे अत्यंत प्रसन्नता है। 2008 में जैन एकता के प्रयास हेतु अमेरिका जैना के अध्यक्ष आये थे, 2013 में हल्दी घाट में केवल श्वेतांबर भक्त ने चातुर्मास कराया था। ये बस कार्य जो आप लोग कर रहे हो, यह जो मेरा उद्देश्य लक्ष्य, भावना, कार्यप्रणाली है, उसमें आपने एक स्वर्णिम कड़ी जोड़ी है।

मूल सिद्धांतों के बिना एकता संभव नहीं है। मैंने सभी संप्रदायों के श्रेष्ठ आचार्यों के साथ रहा हूं, स्वाध्याय किया है। जैन शासन का मूल सिद्धांत है – जिनशासन का प्राण हृदय है अनेकांतवाद – १८ ङ्मा फीं’ ३५्र३८ को आइंस्टान ने दिया लेकिन उससे भी अनेक उच्चतम अनेकांतवाद का वर्णन जैन धर्म में है। हमें यह भी जानना चाहिए कि महावीर तीर्थंकर हैं, लेकिन उनसे पहले भी और 23 तीर्थंकर हुए। हम उन 23 तीर्थंकरों के बारे में नहीं बताएंगे तो दुनिया यही मानेगी कि जैन धर्म महावीर ने शुरू किया।

जिनशासन वह है जिससे राग, मोह, आसक्ति, तृष्णा से विरक्ति हो। यही है परस्परोग्रहो जीवनाम् और यही है अपरिग्रह। जो आत्मा का परम लक्षण है, आत्मा के शोध – विज्ञान पर काम हो रहा है। पूरी पृथ्वी के वैज्ञानिक आत्मा का स्वभाव जानने के इच्छुक हैं। जब तक हम जिनशासन के मूलभूत सिद्धांतों को हम नहीं जानेंगे, तब तक उसका वैश्विक प्रचार-प्रसार वैज्ञानिक और आधुनिक दृष्टि से नहीं कर पाएंगें। मेरे शिष्य भारत ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत वर्षों से जैन एकता और विश्व शांति के लिये काम कर रहे हैं।

हल्दीघाटी में चातुर्मास के दौरान प्रकाशित पुस्तक में एक श्वेतांबर आचार्य ने कहा है कि केवल श्वेत वस्त्र पहनने से मुक्ति नहीं, केवल तत्व भाव करने से मुक्ति नहीं, केवल तर्क-वितर्क करने से मुक्ति नहीं, किसी प्रकार के पक्षताप का आग्रह है तो उस आग्रह के कारण आप बंधे हुए है। भेदभाव, पक्षताप, जातिमद, पंथ और यहां तक कि हमारा गौत्र, उनका गौत्र तो आप स्वय विघटित होंगे। पंचम काल में हर कार्य के लिये संगठन चाहिए। जब तक आप कषाय से मुक्त नहीं होंगे, आप आत्मा को मुक्त नहीं कर सकते।

आचार्य श्री देवनंदी जी : उत्तम ब्रह्मचर्य के दिन मैं यही कहूंगा कि हम सब अपने नैतिक जीवन में स्वच्छता लाए, सदाचार से जीवन जीने की कोशिश करें। उत्तम ब्रह्मचर्य तो बहुत गहारई से आत्मा में प्रवेश करने पर ही मिलता है, क्योंकि जब हम तप, त्याग, संयम की पराकाष्ठा को प्राप्त हो जाते हैं तब आकिंचन्यता का धर्म मिलता है और उसके बाद ही ब्रह्मचर्य धर्म होता है जो 18 हजार शीलों से परिपूर्ण होता है। जो इसे कर लेता है वही उत्तम ब्रह्मचर्य है। इस वीतरागता की कसौटी पर हमें अपने आपको कसना होगा, हमें अपनी समस्त वासनाओं को, पंचेन्द्रिय विषय इच्छाओं को दूर करना होगा। बात यह नहीं है कि हम मंदिर कितना जाता है, धर्म कितना करते है, उससे ज्यादा महत्व है तो अपने नैतिक सदाचार और शिष्टाचार का है, उसकी शुरूआत हमारे गृहस्थ जीवन से होती है। ऐसे उत्तम ब्रह्मचर्य को हर छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक को आत्मसार करना चाहिए।

इस धर्म के पालन करने के लिए हमारे समाज में बहुत कमियां हैं, जिसमें सबसे बड़ी है भ्रूण हत्या। यह सबसे जघन्य पाप है। यदि हम संतान नहीं चाहिए तो हमें जैन धर्म के सिद्धांत का पालन करते हुए ब्रह्मचर्य रखना चाहिए, लेकिन संतान पैदा करने के लिये पंचेन्द्रिय जीव की हत्या कर दें, यह हमारे लिये कतई संतोषजनक बात नहीं है। कुछ परिवार वाले कन्या नहीं होना, उसके लिये भी भ्रूण हत्या कर देते हैं, यह भी गलत है। जैन फाउंडेशन इस ओर भी ध्यान देगा। एक तरफ हमारी जैन जनसंख्या कम हो रही है उसका यह भी एक कारण है, जिसे हमें रोकना होगा। भक्ति करने में हम संकोच करते हैं, लेकिन रोड पर किसी शादी-विवाह में हम नाचते हैं, तो संकोच नहीं लगता है, इस पर भी जरा चिंतन करें। इसमें महिलाएं सम्मिलित होती हैं, इन पर रोक लगनी चाहिए।

संयोजक श्री हंसमुख गांधी जी ने सभा के समापन में आज के वक्ताओं द्वारा उनके दिये गये महत्वपूर्ण उद्बोधन और जानकारियां देने के लिये धन्यवाद दिया और कल के 18वें दिवस के कार्यक्रम के लिये सभी को आमंत्रित किया। (Day 17 समाप्त)