बिखराव तब आता है जब झूठा अंहकार, झूठी परिपाटियां समाविष्ट हो जाती है। जब हम झूठ का आसरा लेते हैं, तो हम भगवान महावीर के सिद्धांतों से दूर होते चले जाते हैं : आचार्य श्री देवनंदी जी

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भगवान महावीर देशना फाउण्डेशन
18 दिवसीय पर्यूषण पर्व 2021 का 12वां दिवस
उत्तम सत्य धर्म
सान्ध्य महालक्ष्मी की EXCLUSIVE प्रस्तुति

सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 15 सितंबर 2021

करता जन-जन का कल्याण
जिसके कण-कण में अतिशय
बोलो जैन धर्म की जय, बोलो जैन धर्म की जय
सिंह – गाय को एक घाट पर जब जलपान कराया
सब जीवों को जीने का अधिकार ह्में समझाया
जीवन की छट जाए धूप, पाओ तुम जैसा ही रूप
हो जाए कर्मों का क्षय, बोलो जैन धर्म की जय।।
नहीं दिगंबर, न श्वेतांबर, न पंथी स्थानक हो
सभी बराबर दिखते जिसमें पहना वो ऐनक हो
बनकर वीरा की संतान होकर जैन धर्म की शान
हम हैं एक करो निश्चय, बोलो जैन धर्म की जय।।

संयोजक श्री अमित राय जैन : भगवान महावीर देशना फाउंडेशन के तत्वावधान में जैन समाज और जैन धर्म की उन्नति, आपसी भाईचारा, सौहार्द, समन्वयता के प्रसार हेतु 18 दिवसीय पर्वों की श्रृंखला का आयोजन पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी किया जा रहा है। आज 12वां दिवस है। आज का विषय उत्तम सत्य धर्म है।
भगवान महावीर देशना फाउंडेशन ने पिछले दिनों में तीन सूत्रीय कार्यक्रम अपने अंतर्गत लिया है।
पहला – पूरे देश भर के अंदर इस एकता समन्वय दिखलाई पड़े, तो श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के पर्यूषण 18 दिनों के ही मनाए जाएं, और जितने भी हमारे वरिष्ठ साधु-साध्वियां और जैन समाज के बुद्धिजीवी हैं उनसे निवेदन करते हैं कि वो 18 दिन के पर्यूषण की आराधना आगामी वर्षों से प्रारंभ हो जाए।
दूसरा – पूरे देश भर के साधु-साध्वियां, या ऐसा त्यागी व्रती जो जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में अग्रणी है, वो सभी उनके बीच समन्वय स्थापित करने के लिये उनके प्रतिनिधियों का एक समन्वय समिति का गठन करके उस काम को क्रियान्वित करने की योजना भगवान देशना फाउंडेशन की है।
तीसरा सूत्र – यूएनओ की तर्ज पर, जिस तरह वह सभी देशों को एक मंच पर इकट्ठा रखता है और उनकी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करता है। उस तर्ज पर जैन समाज की कोफैडरेशन की एक योजना भगवान महावीर देशना फाउंडेशन की है।

श्रीमती नीलम सिंघवी
: जैन एकता के भावों के लेकर एक गीत मंगलाचरण के रूप में प्रस्तुत किया :-
मेरी प्रार्थना प्रभु चरणों में, सुनकर कृपा करना प्रभु
जैन एकता जागृति जगा, आपस के भेद मिटा प्रभु
सब भेदभाव मिटा प्रभु, मेरी प्रार्थना प्रभु चरणों में
आपस में मैत्री का भाव हो, समता सरलता का भाव हो
सब पर्व मिलजुल कर मिले, अंतर में भक्ति का भाव हो
आत्म कल्याण ही लक्ष्य हो, ऐसी कृपा करना प्रभु
मेरी प्रार्थना प्रभु चरणों में,
विश्व के सब जैनी एक हो, पर्यूषण पर्व भी एक हो
सभी संप्रदायों की मूर्ति भी अब माला का ही स्वरूप हो
आओ प्रण करें सब एक हो, एकता का बिगुल बजाये हम
नीलम के सबसे ही प्रार्थना, एकता का बिगलु बजाये हम
मेरी प्रार्थना प्रभु चरणों में, सुनकर कृपा करना प्रभु…।

जिन दिन सत्य धर्म आचरण में आ गया, जीवन में होगा आनंद ही आनंद

आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण माताजी : सत्य शब्द से सारी दुनिया परिचित है, देश और विदेश के लोग भी सत्य को जानते हैं। सत्य का पालन करने का प्रयास भी करते हैं, लेकिन जैन धर्म में जो सत्य की गहराई बताई है, वहां तक पहुंचना सामान्य मानव का विषय नहीं है। एक शब्द है मोह। यह संसारी प्राणी का जीवन है। मोह का काम है जो मेरा नहीं है, उसको मेरा कहलवाना। मकान मेरा नहीं है, मैं मकान नहीं हूं, फिर भी मेरा मकान, मेरी दुकान, मेरा परिवार, मेरे वस्त्र, मेरी ज्वैलरी, मेरा धन यानि की जो मेरा होगा, वह मृत्यु के बाद भी मेरे साथ जाएगा। जो मेरा नहीं है, फिर भी मेरा कहता आ रहा है, उसका नाम है मोह। तो मोह ही सबसे बड़ा झूठ है, जो लगता तो सत्य है, पर होता झूठ है। जब तक यह मोह है, तब तक 24 घंटे झूठ में जी रहे हैं। इस मोह को छोड़ने के लिये जैन धर्म को सबको छोड़कर साधना की जाती है, साधना में जब ध्यान में उतरते हैं, जब ध्यान की गहराई में जाते हैं, आत्मध्यान में लीन होते हैं, वह अवस्था होती है उत्तम सत्य धर्म की। बाकि सत्य वचन, सत्य अणुव्रत, सत्य महाव्रत, भाषा समिति ये सब सत्य धर्म की प्राप्ति में साधन हैं। जिस दिन सत्य धर्म उपलब्ध हो जाएगा, उस दिन तो जीवन का आनंद ही आनंद होगा।

हितकारी, मंगलकारी भाषा को सत्य कहा जाता है

महासाध्वी श्री मधु स्मिता जी महाराज : आचार्य कुंद कुंद स्वामी ने शास्त्र के अंदर सत्य की परिभाषा दी, उस समय कहा था कि सत्य ऐसा हो, जो दूसरे को कष्ट न पहुंचाने वाला हो और हितकारी, मंगलकारी भाषा का जब प्रयोग होता है, तो उसे सत्य कहा जाता है। जब हम कहते हैं मन वचन काया से किसी के भी हिंसा न हो, उसमें सत्य आ ही जाता है। अप्रिय सत्य भी नहीं बोलना चाहिए। भाषा समिति का पालन कर भाषा बोलनी चाहिए। हमारे भगवंतों ने कहा कि आप इसी भाषा का उच्चारण करेंगे अगर आप व्रती हैं। व्यापार में थोड़ा झूठ बोलना पड़ता है, लेकिन वो झूठ आटे में नमक डालने जितना। लेकिन आज नमक में आटा डाला जा रहा है। हमारा जो अस्तित्व है वह सत्य है, सत्य वचन से सम्बंधित है।
कम बोलो, सच बोलो, झूठ कभी भी मत बोलो
कहते हैं ये जिनवाणी, पहले तोलो, फिर बोलो
कम बोलो, सच बोलो, झूठ कहीं भी मत बोलो।
पहले तोलकर फिर बोलो,
कम बोलो सच बोलो।
बोली में ही अमृत है,
बोली में ही जहर भरा
ऐसी वाणी तुम बोलो,
मन का मैल सभी धो लो
कम बोलो, सच बोलो,
झूठ कभी भी मत बोलो।
कहती है ये जिनवाणी,

पहले तोलकर फिर बोलो कम बोलो, सच बोलो…….।

धर्म के साथ सामाजिक समस्याओं का भी निराकरण हो

डायेरक्टर श्री राजीव जैन सीए : इस सभा का उद्देश्य मात्र 18 दिनों के विषयों की चर्चा करना नहीं है। इस आयोजन के पीछे मात्र 8 कर्म और 10 धर्मों को आप तक पहुंचाना नहीं है। इसके पीछे एक अलग उद्ेदश्य है, भारत के सम्पूर्ण जैन समाज को एक साजा मंच प्रदान करना। जैन धर्म के अलग-अलग सम्प्रदाय, व्यक्तिगत तौर पर या छोटे-छोटे संगठनों के रूप में भ. महावीर की देशना की प्रभावना की, लेकिन जब जैन समाज की कोई समस्या समाज में पैदा होती है तो अक्सर हमारा कथन होता है कि अरे ये ते स्थानक का विषय है, वे देख लेंगे या ये तो दिगंबर का है, वो देख लेंगे। अभी ताजा अनूप मंडल का प्रकरण जब आया, तो व्यक्तिगत आवाजें जरूर सुनने को मिली लेकिन जैन समाज का कोई ऐसा मंच नहीं है, जहां से पूरे देश के जैन समाज की एक आवाज उठकर उसका प्रतिकार करती।

इस पूरे 18 दिवसीय चर्चा के दौरान धार्मिक विषयों के साथ-साथ हम सामाजिक विषयों पर भी चर्चा कर रहे हैं। लेकिन कहीं न कहीं सभी संस्थाओं में जो जुड़ाव है, वह सम्पूर्ण समाज का न होकर, उनका विकास और प्रभाव उस संस्था के सदस्यों तक सीमित है। लेकिन कोई ऐसी संस्था जिसमें पूरे देश का हर जैन, चाहे वह किसी भी सम्प्रदाय का हो, वह एक संस्था से जुड़ाव रखे, लेकिन ऐसी कोई संस्था खड़ी नहीं हो पाई। उसका मूल कारण है संस्थाओं में सदस्य बनाना, उसमें चुनाव होना जिसमें सम्पूर्ण जैन समाज का प्रतिनिधित्व नहीं होगा।
ऐसा मंच बनाने के लिये हमने तीन सूत्र दिये हैं, जहां महावीर के जितने भी अनुयायी हों, वो सभी साझा एक मंच पर उपस्थित हो और उन सभी को रिपरजेंटिव मिले। हर साधु को, हर केन्द्रीय संस्था को इस मंच पर प्रतिनिधित्व मिले। ये भगवान महावीर देशना फाऊंडेशन का विचार है, जिससे पूरे देश की एक आवाज पैदा हो।
एकजुट होकर समाज के
कल्याण के कार्य करें

डॉ. अजित जैन
: भ. महावीर देशना फाउंडेशन के निदेशक मंडल, जिनकी भावना, एक विचार जिस उद्देश्य से इसकी स्थापना की है, मैं हृदय से चाहूंगा कि वे अपने उद्देश्य में सफल हों। फाउंडेशन ने सभी के कल्याण के लिये यह संस्था बनाई है, यूएनओ की तरह काम करें। कोरोना की दूसरी लहर में समाज की जिस तरह की हालत थी, पहली बार हमने मरीजों को अपने सामने मरते देखा, और हम कुछ नहीं कर पा रहे। हर दिन हजारों की संख्या में एडमीशन के लिये फोन। दिन में 25-30 बाडी कारों में से निकलती थी। ऐसी त्रासदी जिसे धरती पर कभी सोचा नहीं था, वह देखने को मिली। हमारे जैन समाज के पास दिल्ली जैसे शहर में कोई भी एक ऐसा अस्पताल नहीं है जो ऐसी त्रासदी में समाज के लोगों को मदद पहुंचा सके। यह कमी दुख भी देती है और काम करने की प्रेरणा भी कि हम लोग एकजुट होकर टर्शरी सेंटर बनायें। इसके लिये बस एक सोच की जरूरत है, जो फाउंडेशन के लोगों के पास है।

आचार्य श्री देवनंदी जी महाराज : लोग हमारे तक पहुंचे, यह तो मुश्किल लगता है, लेकिन हम लोगों तक पहुंचने का प्रयास करें। जितना जल्दी हो सके, उतना जल्दी हम लोगों के समक्ष पहुंचे, तो हमारे समाज, परिवार की कई समस्याओं का हल हो सकता है और समाज संकटमुक्त हो सकती है। यदि हर व्यक्ति संकल्प ले लें कि भ. महावीर के दस धर्मों का पालन करेगा तो बिखराव नहीं आएगा। बिखराव तब आता है जब झूठा अंहकार, झूठी परिपाटियां समाविष्ट हो जाती है। जब हम झूठ का आसरा लेते हैं, तो हम भगवान महावीर के सिद्धांतों से दूर होते चले जाते हैं। हमें परमात्मा से जुड़ना है, समाज और परिवार में एक रहना तो क्यों ने हम अपनी झूठी मान्याताओं की तिलांजलि दे दें। हमारा पर्यूषण पर्व सृजन का पर्व है। यह पर्व हमारा समाप्त होने वाला पर्व नहीं है। हम 18 दिनों के पश्चात् हम अपने सिद्धांतो को छोड़ दें। ये सिद्धांत हमें आज भी उतने आवश्यक हैं, जितने भ.. महावीर के काल में थे। हम सत्य सिद्धांतों को लेकर चलेंगे, तो परिवार और समाज समृद्ध होंगे। जब बहुत लोग एक विचारधारा से परिवार में रहते हैं तो वह बहुत अच्छा लगता है। इसी तरह से समाज सभ्य लोगों से बनती है। सभ्य लोग संस्कृति और सभ्यता के आधार को लेकर चलते हैं जहां पर हमारा शिष्टाचार, सहयोग, सौहदर्ता एकसाथ होती है, वो समाज ही सभ्य समाज कहलाती है और वो समाज संगठित होकर पूरे देश को भी संभाल सकती है।

सत्य आकाश के समान विशाल है। लोग सत्य को परेशान तो कर सकते हैं, लेकिन पराजित नहीं कर सकते। इसलिये अशोक चक्र के नीचे लिखा है सत्यमेव जयते। यह संदेश देता है कि हमारी भारतीय संस्कृति जो भी यहां टिकी है, वह सत्य के आधार पर टिकी है। जिस समाज ने, जिस सम्प्रदाय ने सत्य को छोड़कर आसरा लिया, वह संस्कृति भारत देश से चली गई या उसका नामोनिशान मिट गया।
जैनाचार्यों का एक वचन है, सत्य ही भगवान है। सत्य से बड़ा कोई ईमान नहीं है, अत: सत्य का आश्रय लेकर, हमें सच्चाई के साथ रहना चाहिए।

श्री अरविंदर जैन यूके : भगवान महावीर ने हमें क्या सिखाया है, उस पर हमें चर्चा करनी चाहिए, इसके उलट हम क्रियाओं के लिये लड़ते रहते हैं। इस मंच पर प्रवक्ता आ रहे हैं, वे सचमुच प्रबुद्ध हैं। आज बच्चे धर्मशालाओं में नहीं रुकते, क्योंकि वहां व्यवस्थायें नहीं होती। हमें युवाओं की समस्याओं को हल करना होगा अगर उन्हें अपने साथ लेकर चलना है। हमारे अच्छे लेवल के स्कूल कालेज होने चाहिए। उन संस्थानों से अच्छे इंसान बने, न कि दिगंबर – श्वेतांबर। हम आपस में झगड़ रहे हैं, समाज के काम नहीं करते।

परम पूज्य आचार्य माँ श्री चंदना जी :
महावीर की अमृत वाणी से जीवन में ज्ञान का दीप जलाओ
श्रद्धा की ज्योति जगी मन में, भक्ति का प्रेम प्रकाश बहाओ।
गौरवमय इस जिनशासन का हम सबको आशीर्वाद मिला
श्रद्धा की ज्योति जगी मन में, भक्ति का प्रेम प्रकास बहाओ।।
जीवन को अब धन्य करें सब, ऐसे सद्कर्म करें कि
जीवन हो जाए सफल।
कई जन्मों के पुण्य पले, तब ऐसा शुभ धर्म मिले
ये जीवन हो जाए अब सफल…।

हजारों वर्ष पुरानी इस परंपरा के हम उत्तराधिकारी हैं। अहिंसा हमारे जीवन के अस्तित्व के साथ जुड़ी हुई है। अनगनित लोगों के अनंत प्रयासों से, हजारों वर्षों से, उस अहिंसा, करुणा, प्रेम, दया, सहानुभूति और सहयोग – ये हमारे रग-रग में बसी है। अगर हमने पिछले कुछ वर्षो, कुछ शताब्दियों में हमने अपने परस्पर में धर्मों के भेदों को जानने के लिये जो प्रयत्न किया, आज एक ऐसा समय आ चुका है कि ऐसे समय में परस्पर में एक कहां हो सकते हैं। हमारी एक तरह की विचारधारा कहां पर है, कौन सी बात से हम अलग-अलग नहीं, एकसाथ मिलकर काम कर सकते हैं। ऐेसे विषयों की चर्चा हम समाज में, प्रत्येक व्यक्ति के साथ-साथ, संतों के साथ करें, तो लगता है कि आज दुनिया की हिंसा, तनाव, राग-द्वेष, इस दुर्दांत समय में इस समाज को एक बहुत सुंदर अवसर है जब हम प्रेम और सत्य का संदेश दे सकते हैं। सत्य केवल भाषा का नहीं, वह एक दृष्टि है। बिना पंथ, बिना सम्प्रदाय पूछे, उसके साथ सद्भावना व्यक्त करनी चाहिए।

आज हमारी संख्या सीमित हो गई है, जरूर कोई भूल हुई है। भ. महावीर स्वामी के समय में हजारों – लाखों साधु हुआ करते थे। हम छोटे-छोटे मतभेदों में न लगकर, सारे विश्व को हम मित्र कैसे बना सकते हैं, इसके लिये प्रयत्न करना चाहिए।

डायेरक्टर श्री सुभाष जैन ओसवाल : सभी संतों के चरणों में नमन करते हुए कहा कि आपकी प्रेरणा से अधिक से अधिक सेवा, जन सेवा का कार्य करेंगे, जिससे जैन जगत में जिनशासन की प्रभावना में महावीर के योगदान की चर्चा पूरे देश में ही नहीं, विदेशों में हो सके।

डायरेक्टर श्री अनिल जैन एफसीए : सभी वक्ताओं ने एक ही बात कही कि हम सबको एक बनकर दिखना चाहिए, सबको एक हो जाना चाहिए। इतनी सी बात करने के लिये ही हमें इस मंच की व्यवस्था करनी पड़ी। हम में से हर किसी की एक होने की चाह है और एक होकर संगठित होकर शक्ति के रूप में आते हैं, तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं। हम सब सार्म्थ्यशाली, समृद्धशाली हैं, ये दोनों ही बातें हमारे व्यक्तित्व, चरित्र में हैं तो हम निश्चित रूप से बड़Þे कार्य, हास्पीटल बनाना, स्कूल बनाने के कार्य प्रारंभ कर पाएंगें और उस मंजिल को हासिल करेंगे, जिन्हें अन्य संगठित सम्प्रदायों ने किया।
(Day 12 समाप्त)