10 धर्म के अलग – अलग 10 मंत्र के जाप, जिसकी करे माला

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उत्तम क्षमा – हम उनसे क्षमा मांगते हैं, जिनके साथ हमने बुरा व्यवहार किया हो और उन्हें क्षमा करते हैं, जिन्होंने हमारे साथ बुरा व्यवहार किया हो॥
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम क्षमा धर्मांगाय नम:।

उत्तम मार्दव- अकसर धन, दौलत, शान और शौकत इन्सान को अहंकारी और अभिमानी बना देता है, ऐसा व्यक्ति दूसरों को छोटा और अपने आप को सर्वोच्च मानता है॥
ये सभी चीजें नाशवान हैं! ये सभी चीजें एक दिन आप को छोड देंगी या फिर आपको एक दिन मजबूरन इन चीजों को छोडना ही पडेगा ॥

नाशवंत चीजों के पीछे भागने से बेहतर है कि अभिमान और परिग्रह (सभी बुरे कर्मों में बढोतरी करते हैं ) को छोडा जाये और सभी से विनम्र भाव से पेश आएँ! सभी जीवों के प्रति मैत्री-भाव रखें, क्योंकि सभी जीवों को अपना जीवन जीने का अधिकार है ॥
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम मार्दव धर्मांगाय नम:।

उत्तम आर्जव – हम सब को सरल स्वभाव रखना चाहिए, बने उतना कपट को त्याग करना चाहिए॥
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम आर्जव धर्मांगाय नम:।

उत्तम शौच – किसी चीज़ की इच्छा होना इस बात का प्रतीक है कि हमारे पास वह चीज नहीं है! तो बेहतर है कि हम अपने पास जो कुछ है, उसके लिए परमात्मा का शुक्रिया अदा करें और संतोषी बनकर उसी में काम चलायें ॥
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम शौच धर्मांगाय नम:।

उत्तम सत्य – आत्मा की प्रकृति जानने के लिए सत्य आवश्यक है और इसके आधार पर ही परम आनंद मोक्ष को प्राप्त करना मुमकिन है ॥ अपने मन आत्मा को सरल और शुद्ध बना लें तो सत्य अपने आप ही आ जाएगा ॥
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम सत्य धर्मांगाय नम:

उत्तम संयम – पसंद नापसंद ग़ुस्से का त्याग करना। इन सब से छुटकारा तब ही मुमकिन है जब अपनी आत्मा को इन सब प्रलोभनों से मुक्त करें और स्थिर मन के साथ संयम रखें ॥ इसी राह पर चलते परम आनंद मोक्ष की प्राप्ति मुमकिन है ॥
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम संयम धर्मांगाय नम:

उत्तम तप- तप का मतलब सिर्फ उपवास में भोजन नहीं करना, सिफॅ इतना ही नहीं, बल्कि तप का असली मतलब है कि इन सभी क्रिया-कलापों के साथ अपनी इच्छाओं और ख्वाहिशों को वश में रखना! ऐसा तप अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करता है ॥
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम तप धर्मांगाय नम:

उत्तम त्याग- ‘त्याग’ शब्द से ही पता लग जाता है कि इसका मतलब छोडना है और जीवन को संतुष्ट बना कर अपनी इच्छाओं को वश में करना है!
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम त्याग धर्मांगाय नम:

उत्तम आकिंचन्य- आँकिंचन हमें मोह को त्याग करना सिखाता है ॥ दस शक्यता है, जिनके हम बाहरी रूप में मालिक हो सकते है; जमीन, घर, चाँदी, सोना, धन, अन्न, महिला नौकर, पुरुष नौकर, कपडे और संसाधन इन सब का मोह न रखकर ना सिफॅ इच्छाओं पर काबू रख सकते हैं बल्कि इससे गुणवान कर्मों मे वृद्धि भी होती है ॥
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम आकिंचन्य धर्मांगाय नम:

उत्तम ब्रह्मचर्य- ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान और शक्ति प्राप्त होगी और ऐसा न करने पर, आप सिर्फ अपनी इच्छाओं और कामनाओं के गुलाम ही रहेंगे॥
जाप- ऊं ह्रीं श्रीं उत्तम ब्रह्मचर्य धर्मांगाय नम: