#दसलक्षण_पर्व के दस धर्म -मनाने के लिए नहीं, अपनाने यानि अंगीकार करने के लिए

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1)उत्तम क्षमा :
‘उत्तम क्षमा जहां मन होई, अंतर बाहर शत्रु न कोई।’-
अर्थात् उत्तम क्षमा को धारण करने से जीवन की समस्त कुटिलताएं समाप्त हो जाती हैं तथा मानव का समस्त प्राणी जगत से एक अनन्य मैत्रीभाव जागृत हो जाता है।

2)उत्तम मार्दव :
‘उत्तम मार्दव विनय प्रकाशे, नाना भेद ज्ञान सब भासै।’-
अर्थात् उत्तम मार्दव धर्म अपनाने से मान व अहंकार का मर्दन हो जाता है और व्यक्ति सच्ची विनयशीलता को प्राप्त करता है।

3)उत्तम आर्जव :
उत्तम आर्जव कपट मिटावे, दुर्गति त्यागि सुगति उपजावें।’-
अर्थात् उत्तम आर्जव धर्म अपनाने से मन एकदम निष्कपट तथा राग-द्वेष से रहित हो जाता है। सरल हृदय व्यक्तियों के घर में लक्ष्मी का भी स्थायी वास रहता है।

4)उत्तम सत्य :
‘उत्तम सत्य वचन मुख बोले, सो प्राणी संसार न डोले।’-
अर्थात् जिसकी वाणी व जीवन में सत्य धर्म अवतरित हो जाता है, उसकी संसार सागर से मुक्ति एकदम निश्चित है।

5)उत्तम शौच :
‘उत्तम शौच लोभ परिहारी, संतोषी गुण रतन भंडारी।’-
अर्थात् जिस व्यक्ति ने अपने मन को निर्लोभी बना लिया है, संतोष धारण कर लिया है, उसका जीवन परम शांति को उपलब्ध हो जाता है।

6)उत्तम संयम :
‘उत्तम संयम पाले ज्ञाता, नरभव सफल करे ले साता।’-अर्थात् जिस मनुष्य ने अपने जीवन में संयम धारण कर लिया है, उसका मनुष्य जीवन सार्थक है तथा सफल है। बगैर संयम के मुक्तिवधू कोसों दूर है एवं ‘आकाशकुसुम’ के समान है।

7)उत्तम तप :
‘उत्तम तप निरवांछित पाले, सो नर कर्मशत्रु को टाले।’-
अर्थात् शास्त्रों में वर्णित बारह प्रकार के तप से जो मानव अपने तन मन जीवन को परिमार्जिन या शुद्ध करता है, उसके समस्त जन्मों जन्मों के कर्म नष्ट हो जाते हैं।

8)उत्तम त्यागः
‘उत्तम त्याग करे जो कोई, भोगभूमि सुर शिवसुख होई।’-
अर्थात् उत्तम त्याग करने वाले व्यक्ति को मुक्ति सुंदरी स्वयंमेव वरण करती है तथा देवता भी उसे नमस्कार करते हैं।उत्तम

9)अंकिचन :
‘उत्तम अंकिचन वृत धारे, परम समाधि दशा विस्तारे।’-
अर्थात् जिस व्यक्ति ने अंतर बाहर 24 प्रकार के परिग्रहों का त्याग कर दिया है, वो ही परम समाधि अर्थात् मोक्ष सुख पाने का हकदार है। उत्तम आकिंचन्य अर्थात आत्मा सिवा किंचित भी,कुछ भी,अच्छा न लगना आकिंचन्य धर्म है।
2-निर्ग्रंथता का नाम,आकिंचन्य धर्म है।
3-परिग्रह के न होने का नाम, आकिंचन्य धर्म है।
4-अपने को मिथ्यादृष्टि देखना, सबसे बड़ा परिग्रह है।
5-परि अर्थात चारों ओर से,अपने को आत्मा रूप ग्रहण करना परिग्रह है।
6-मूर्छा को परिग्रह कहते हैं और जाग्रत रहने को आकिंचन्य धर्म।
7-परिग्रह पाप है और पाप रहित दशा आकिंचन्य धर्म।
8-कषाय परिग्रह है और कषाय रहित दशा,आकिंचन्य धर्म।
9-जहाँ 24 परिग्रह नहीं होते हैं,वहाँ
आकिंचन्य धर्म होता हैं।
10-आत्मा को छोड़ कुछ भी ग्रहण करना,परिग्रह रूप पाप है।
11-अपने को स्त्री-पुरुष रूप देखना,परिग्रह है।
12-भोगों मे सुखबुद्धि,परिग्रह रूप पाप है और आत्मा मे सुखबुद्धि,आकिंचन्य धर्म।

10)ब्रह्मचर्यः
‘उत्तम ब्रह्मचर्य मन लावे, नरसुर सहित मुक्ति फल पावें’।-
अर्थात् उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के पालने वाले को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति अवश्य ही होती है।पर्युषण पर्व के महान अवसर पर जो मनुष्य उपरोक्त दस धर्मों को अपना कर, उनका पालन करके अपने जीवन का उद्धार करता है तथा अपने आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करके अजर अमर पद निर्वाण की प्राप्ति कर सकता है। ये पर्युषण पर्व इन्हीं दस धर्मों को जीवन में अंगीकार करे ।

संकलनकर्ता नन्दन जैन
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