आज तो धन के नाम पर दूध , दहेज के नाम पर पूत बिक रहे है, जब तक लिफाफा नहीं दिखाओ, तब तक विद्वान प्रवचन नहीं कर रहे

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सबके दिन एक से नहीं होते, अतः समता और संयम धारण करो -मुनि श्री विलोक सागर जी

भो ज्ञानी !! अन्न ही सबको जीवन देता है।। कभी भी अन्न के दाने पर कभी पैर नहीं रखना।।
भो ज्ञानी !! भारत देश में कभी भी दूध की और पूत की बिक्री नहीं होती थी लेकिन आज तो धन के नाम पर दूध भी बिक रहा है, और दहेज के नाम पर पूत भी बिक रहे है।।
आज के समय में पानी ही नहीं जिनवाणी भी बिकने लगी है जब तक लिफाफा नहीं दिखाओ तब तक विद्वान प्रवचन नहीं कर रहे है।।

जहां कल खंडहर थे वहां आज महल है, जहां कल महल थे आज वहां खंडहर हैं ज्ञानी सब के दिन एक से नहीं होते l कल जो पापी था आज वह धर्मात्मा है, परंतु ऐसे जीवो के दुर्भाग्य की महिमा क्या कहें कि जो कल धर्मात्मा थे आज पापी हैंl

चाहे राम की शादी हुई हो, चाहे श्याम की शादी हुई हो, चाहे भरत चक्रवर्ती की शादी हुई हो किसी ने दहेज नहीं मांगा था उनके माता पिता ने उन्हें भेंट दिया था।।
हे युवाओं!!एक तो तुम्हें कोई अपनी कन्या दे रही है घर चलाने के लेकिन तुम रूठे बैठे हो एक साइकिल के लिये, सब आज नियम ले लें कि हम दहेज नहीं मांगेंगे।।
भो ज्ञानी !! जैन दर्शन कहता है कि वस्तु का नाश नहीं हुआ है परिणमन हुआ जैसे मिट्टी मिटी तब ही घट बनी लेकिन मिट्टी ही हैं मिट्टी की पर्याय ही बदली है तब ही घड़ा है ऐसे ही आत्मा का नाश नहीं होता है आत्मा दूसरे पर्याय में जाती है पुनरभव को कहने वाला जैन दर्शन है।।

…..जो है सो है…..
स्वभाव का स्वाध्याय(ध्यान)ही आत्मार्थी की खुराक है।
पर में अपनापन अर्थात जहर का सेवन।
सेवा का मूल्य,सेवा से ही चुकाया जा सकता हैl
समर्पण,बहाने नहीं खोजता है।
शिष्य,गुरु की सुनी अनसुनी नहीं करता हैl
साथी वो ही है जो अहित से बचायेl
धुन,कार्य को सरल कर देती है।
विनय,व्यक्ति का मूल्य बढ़ा देती है
मिथ्यात्व समान कोई दूसरा रोग नही है।
समय काटने वाले,समय समय पर अनंत बार कटते हैं l
पर्युषण ‘ पर्व का शाब्दिक अर्थ है- आत्मा में अवस्थित होना ।

तो जरूरी है प्रमाद रूपी नींद को हटाकर इन 10दिनों के लिए विशेष तप, जप, स्वाध्याय की आराधना करते हुए, अपने आपको सुवासित करते हुए, अंतरात्मा में लीन हो जाएं जिससे हमारा जीवन सार्थक व सफल हो पाएगा l

याद रहे पर्युषण मे मात्र भूल से हुए पाप ही धुलते हैं,
योजनाबद्ध तरीके से किए हुए पाप सिर्फ प्रकृति की लाठी से ही धुलते हैं जी l
आत्मनो मुखदोषेण, बद्यन्ते शुकसारिका ।बकः तत्र न बद्यन्ते, मौन सर्वार्थसाधनं ।।

अपने ही मुख के दोष के कारण तोता और मैना पिंजरे में बंद रहते है । बगुले को कोई पिंजरे में बंद नहीं करता ।
वास्तव में मौन रहने से ही सब कार्यों की सिद्धि हो जाती है l
ll आत्मा स्वभावं परभाव भिन्नम्, परभाव भिन्नम् आत्मा स्वभावं ll