आत्म शुद्धि का महान पर्व दशलक्षण-शाश्वत, सार्वजनिक तथा सार्वभौमिक -सभी पर्वों का सम्राट

0
3390

दुनिया में जितने भी पर्व हैं, उन सभी का किसी न किसी घटना अथवा महापुरुष से संबंध है। लेकिन दसलक्षण पर्व का संबंध किसी घटना अथवा महापुरुष से नही है। देश-काल, क्षेत्र विशेष, जाति-धर्म से भी इसका कोई संबंध नही है। यह पर्व तो शाश्वत है, सार्वजनिक तथा सार्वभौमिक है। क्योंकि यह पर्व आत्मा की शुद्धि का पर्व है, इसलिए इसे महापर्व कहते हैं। यह पर्व तो सभी पर्वों का सम्राट माना जाता है। सभी धर्मों में किसी न किसी रूप में इसका उल्लेख मिलता है। मनुस्मृति तथा गीता में भी इसका उल्लेख है, क्रम थोडा भिन्न हो सकता है।

जैन धर्म में धर्म की परिभाषा बडी व्यापक है, यहां धर्म तो एक ही है, जो धारण किया जाता है, परंतु उसके लक्षण दस बताए गए हैं। चातुर्मास के दिनों में भादो मास में दसलक्षण पर्व की आराधना विशेष रूप से की जाती है। धर्म के दस लक्षणों में क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन तथा ब्रह्मचर्य आते हैं। हां, एक बात और खास है कि इस सभी के साथ उत्तम शब्द जरूर जुडा होता है। यानि ये सब लक्षण उत्तम ही होने चाहिए।

उत्तम क्षमाः- क्रोध प्रत्येक जीव का सबसे बडा शत्रु है, उसे जीतना ही उत्तम क्षमा है।
उत्तम मार्दवः- किसी भी प्रकार के मान यानि अभिमान को समाप्त करने को उत्तम मार्दव धर्म की आराधना कहते हैं।
उत्तम आर्जवः- अपने हृदय को मायाचारी से बचाकर सरल बनाने को ही उत्तम आर्जव धर्म की आराधना कहते हैं।
उत्तम शौचः- लोभ को त्याग कर जीवन में शुचिता यानि पवित्रता को अपनाना ही उत्तम शौच धर्म की आराधना है।
उत्तम सत्यः- सभी के लिए हित, मित व प्रिय वचन बोलना ही उत्तम सत्य धर्म की आराधना है।
उत्तम संयमः- अपनी आत्मा के विकारी भावों को नष्ट करना ही उत्तम संयम धर्म की आराधना है।
उत्तम तपः- इच्छाओं का निषेध कर रागादि भावों को जीतकर अपने आत्मस्वरूप में लीन होना ही उत्तम तप धर्म की आराधना है।
उत्तम त्यागः- पर द्रव्यों से मोह छोडकर उनका त्याग करना ही इस धर्म की आराधना है।
उत्तम आकिंचनः- मेरी आत्मा के सिवाय किंचित मात्र भी पर पदार्थ मेरा नही है, ऐसा चिंतन करना ही उत्तम आकिंचन धर्म की आराधना है।
उत्तम ब्रह्मचर्यः- अपनी आत्मा में रमण करना ही उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना है।

दश लक्षण पर्व के दस दिनों में उपरोक्त दस धर्मों की आराधना कर आत्मा परम-पवित्र बन जाती है तो फिर उत्तम क्षमा धर्म की आराधना की जाती है। जिसे क्षमावाणी पर्व कहते हैं। क्षमा एक ईश्वरीय गुण है। संसार के सभी प्राणियों के प्रति क्षमाभाव धारण करना ही उत्तम क्षमा धर्म की आराधना और साधना है।

प्रस्तुतिः रमेश जैन एडवोकेट