चित्र मे दिखाई देने वाली यह हवेली दीवान टोडरमल जी की है। जिन्होंने 78,000 मोहरें बिछाकर गुरुगोविंद सिंह जी के साहबजादों और माता गुजरी देवी जी के संस्कार के लिए 4 गज जगह खरीदी थी..
क्रूर मुग़ल बादशाह ने मां गुजरी और बच्चों के संस्कार के लिए जमीन देने से मना कर दिया था। तब टोडरमल जी सामने आए उन्होंने राजा से संस्कार के लिए जमीन देने की मन्नतें कीं। राजा ने जमीन की कीमत मांगी थी सोने की मोहरों से जितनी जमीन नापी जा सके उतनी ले लो। जब मोहरें बिछानी शुरू कीं तब धूर्तता ओर कपट में संलीप्त मुगल बादशाह ने ज्यादा रकम ऐंठने के लिए आड़ी नही खड़ी मुद्रायें बिछाने को कहा !
उस समय टोडरमल ने अंतिम संस्कार के लिए खड़ी सोने की मोहरें बिछाकर संस्कार हो सके इतनी जमीन खरीदकर संस्कार करवाया !
इतने क्रूर अत्याचार करने वाले आक्रांताओं के इतिहास को मेकप करके तो हमें रटाया जाता रहा। लेकिन हमारे देश व धर्म के लिए त्याग और बलिदान करने वाले महापुरुषों के इतिहास को गुमनामी में धकेल दिया गया।
आज स्थिति ये है कि खुद दीवान टोडरमल जी की हवेली को देखने वाला कोई नहीं है ……..