निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
पर पदार्थों का आनंद अनंत भवो से ले रहा है एक बार अपनी आत्मा का नाम ले लो
1.मेरे से भी मैं पने की अनुभूति कितने को आती हैं,मेरे तो पर है पर तो काम आएगा ही नहीं मेरे भी धोखा दे सकते हैं जिस वस्तु को देखकर ये भाव आये यह पर है पर की अनुभूति आये उसमे सुख का अनुभव आनंद नहीं आता हैं
2.ना मैं कल था ना कल रहुँगा जो वर्तमान में रहते है वह भौतिकवादी होते हैं जीव है लेकिन जीवत्व की अनुभूति नहीं होती हैं।भारतीय है लेकिन भारतीयता का अनुभव नहीं हैं। जिनको भारत देश की गरीबी अच्छी नहीं लगती हैं उनको विदेश की अमीरी अच्छी लगती हैं।
3.मैं तो सही हूं,मैं हूं,मै पने का आनंद ले पा रहे,मैं हूं सोंहं तो,मैं जो अपनेपन का अनुभव होता है,मै पने का आनंद ही अलग आता हैं।
4.बहुत कम लोग होते हैं जो स्वाभिमानी होते हैं कि अपने ही वस्तु मे संतुष्ट होते हैं जो दूसरों के वैभववस्तु जमीन को लेने का भाव ही नहीं करते जो मेरी है मेरे भाग्य में नहीं उससे दुनिया में कोई अच्छी वस्तु नहीं है।
5.पंचम काल में किसी भी धर्म के भगवान का जन्म,अवतार नहीं हो रहा है क्योंकि भारत में सही आर्य ही नही रहे,जहां आर्य लोग होते हैं वही भगवान का जन्म और अवतार होता हैं हमें आज भारत में रहते हुए आर्यपने का अनुभव नहीं आ रहा हैं।
6.पंचम काल की भी कीमत कर ली पंचम वालों को अच्छा कह दें जो मेरी किस्मत में काल मिला इस काल से अच्छा कोई काल नहीं अपना काल सबसे अच्छा है।
7.इस मनुष्य पर्याय मे यदि हम ऊब गए,मरने का भाव आ गया आत्महत्या का भाव आ गया तो उन्हें अनन्त अनन्त भव तक मनुष्य पर्याय नहीं मिलेगी।
शिक्षा-मैं कौन हूं उस पर गर्व करो,भारत से दुनिया में कोई अच्छा नहीं है भारत में कुछ नहीं है फिर भी मैं हूं ना इस भारत में इसलिए भारत महान हैं।
संकलन ब्र महावीर