पशुओं का शक्तिदायक व स्वास्थ्यवर्धक दूध पीकर उन्हीं का खून करके उनका खून बेचना ‘मातृदेवो भव‘ वाक्य का घोर अपमान : #आचार्यश्री_विद्यासागरजी

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भारत खेत खलिहानों का देश है, कत्लखानों का नहीं, ग्वालों किसानों का देश है, वधिकों का नहीं।केवल क्रूरतम अपराधी को मुत्युदण्ड मिलता है। बूचड़खानों को निरपराध प्राणियों को मूत्युदण्ड देने का अधिकार क्यों मिल रहा है?

पश-ुधन हमारी प्राकृतिक धरोहर हैं, इसके विनाश से न तो हरियाली बचेगी, न ही, खुशहाली।विदेशी मुद्रा के लिये दुधारू पशुओं का कत्ल कराके माँस-निर्यात करना और विदेशों से भारत में दूध-पाउडर और गोबर का आयात करना अर्थनीति है, अनर्थनीति है।स्वतन्त्रता दिवस मनाना तभी सार्थक होगा, जब भारत के पशु-पक्षियों को भी जीने की स्वतन्त्रता मिले। क्या हमारा देश केवल मनुष्यों का देश है?

पशुओं का शक्तिदायक व स्वास्थ्यवर्धक दूध पीकर उन्हीं का खून करके उनका खून बेचना ‘मातृदेवो भव‘ वाक्य का घोर अपमान है, मातृ-हत्या तुल्य भीषण अपराध है देश की उन्नति माँस निर्यात करने से असंभव है क्योंकि हिंसा से कमाया गया धन, मन को त्रस्त और तन को अस्वस्थ करता है, ऐसा धन नित नये पनपने वाले रोगों के उपचार पर खर्च हो जाता है, देशोन्नति के लिये नहीं बचता।

भारतीय संस्कृति आंतकवाद की पोषक नहीं, अहिंसावाद की पोषक रही है इसलिये माँस-उद्योग लोकतन्त्र का नहीं, लोभतन्त्र का विभाग है। “एक ओर पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण को बढ़ावा देना और दूसरी ओर कत्लखानों में जानवर कटवा कर प्रदूषण फैलाना” ये नीति नहीं, अनीति है।

‘अनुपयोगी’ कहकर प्राणियों का नाश देश का विनाश है, क्योंकि कोई प्राणी कभी भी अनुपयोगी नहीं होता ।कत्लखानों को दुग्ध-उत्पादन केन्द्रों में परिवर्तित करने ओैर कसाइयों को ग्वालों मे रूपान्तरित करने से भारत में पुनः दूध-घी की नदियाँ बहेंगी।हमारे राष्ट्रध्वज के तीन वर्ण शान्ति, प्रेम और अंहिसा के प्रतीक है, मांस-निर्यात को बंद करके तिरंगे को कलंकित होने से बचाएँ।