परंपराओं के विपरीत आज श्रावण शुक्ल सप्तमी के पावन अवसर पर, वही दिन जिस दिन, हमारे 23वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी को मोक्ष प्राप्त हुआ, उन्हीं की पावन धरा, स्वर्ण भद्र कूट पर, आज महिलाओं ने प्रतिमा पर अभिषेक व शांति धारा की ,
पर पहली बार प्रतिमा को बीसपंथी कोठी से स्वर्ण भद्र कूट पर ले जाकर अभिषेक करने का साहस और फिर वह अभिषेक पूजा करने की परंपरा को शुरू करने वाले श्रावक श्री श्री किशोर जैन तो आज हमारे बीच में नहीं है, पर उन से शुरू हुई यह परंपरा वर्तमान में आज तक इसके अंदर महिलाओं का अभिषेक कभी नहीं कराया गया
यही नहीं , नीचे से प्रतिमा को लाकर हमेशा चरणों के आगे सिंहासन पर विराजमान कर अभिषेक आदि क्रियाएं की जाती रही है। पहली बार आज, उनको चरणों पर रखकर अभिषेक व शांति धारा की क्रियाएं की गई ।ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया
परंतु आज यहां पर उस परंपरा के विपरीत महिलाओं को अभिषेक व शांति धारा की शुरुआत की गई इसे आप लोग क्या कह सकते हैं परंपरा के विरुद्ध , एक नई परंपरा की शुरुआत या फिर आपस में पंथवाद को बढ़ावा देकर एक दूसरे के प्रति आपसे सौहार्द के विपरीत, एक अन्य परंपरा का उद्घोष करना यह समझ से बाहर है कि जिस टोंक पर और जहां की परंपरा हमेशा अभिषेक के लिए महिलाओं को अनुमति जहां नहीं दी गई , वहां आज इस पावन पर्व पर महिलाओं को अभिषेक -शांतिधारा की परंपरा शुरू करने में किन-किन लोगों ने विशेष भूमिका रही, कि एक नई परंपरा को, वहां की परंपरा को तोड़ते हुए शुरू किया जाए ,यह जरूर चिंतन का विषय है
अगर जैन समाज को हमें एकजुट रखना है , तो उसे पंथवाद से ऊपर उठाना होगा और जहां पर जो परंपरा चल रही है, उसी का निर्वहन करना होगा । अगर एक – दूसरे में, दूसरी परंपरा को जोड़ने की या तोड़ने की कोशिश करी ,तो यह जैन समाज के लिए सही नहीं होगा। चैनल महालक्ष्मी हमेशा परंपरा को तोड़ने और बदलने का सख्त विरोध करता रहा है और करता रहेगा , क्योंकि जैनों की एकजुटता में यह वह कील है , जो कभी भी उनको एक होने नहीं देगी।