वर्तमान की विडंबना है कि जहाँ भी देखें धार्मिक क्रियाओं का तो बहुत बोलबाला है परन्तु उनके पीछे आत्मकल्याण के कितने भाव जागृत हैं, वह गणना गौण है- आचार्य अतिवीर मुनि

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उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री के पावन सान्निध्य में जैन दर्शन के 23वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान का निर्वाण कल्याण महोत्सव दिनांक 15 अगस्त 2021 को भक्तिमय वातावरण में आयोजित किया जा रहा है|

परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का तीन वर्ष पश्चात पुनः एक बार राजधानी दिल्ली में मंगल चातुर्मास धर्मप्रभावनापूर्वक संपन्न हो रहा है| श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, रानी बाग में चातुर्मास के अनन्तर पूज्य आचार्य श्री के पावन सान्निध्य में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम हर्षोल्लास व भक्तिमय वातावरण में आयोजित किये जा रहे हैं|

प्रतिदिन सारगर्भित मंगल प्रवचन श्रृंखला में भक्तों को सम्बोधित करते हुए पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि प्रभु की भक्ति-अर्चना करने के लिए किसी शुभ मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। जब ईश्वर की भक्ति में मन लग जाये, जीवन का वही पल शुभ होता है। प्रभु के गुणों का गुणगान करते हुए स्वयं के दोषों पर भी सदैव दृष्टि बनाये रखनी चाहिए। निस्वार्थ भक्ति ही कल्याणकारी होती है तथा जीवन में परम आनंद की अनुभूति करवाती है। बिना ज्ञान के तथा बिना सोचे-समझे कोई क्रिया लाभदायक नहीं होती। परम्पराओं का निर्वाह करते हुए दर्शन, जाप, पूजन, अभिषेक, विधान आदि कर लेना मोक्ष मार्ग में सहायक नहीं होते।

आचार्य श्री ने आगे कहा कि यदि हमने भगवान की भक्ति को मात्र पुण्यार्जन का ही साधन बना लिया तो निश्चित रूप से संसार तो बढ़ेगा ही परन्तु कहीं-न-कहीं पापाश्रव भी होगा| पुण्य की कामना से यदि पुण्य के कार्य भी करेंगे तो वांछित पुण्य भी क्षीण हो जायेगा| वर्तमान की विडंबना है कि जहाँ भी देखें धार्मिक क्रियाओं का तो बहुत बोलबाला है परन्तु उनके पीछे आत्मकल्याण के कितने भाव जागृत हैं, वह गणना गौण है|