भव्य जैनेश्वरी दीक्षा समारोह -कोथली (कर्नाटक) शुक्रवार 13 अगस्त 2021को आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ सानिध्य में

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भव्य जैनेश्वरी दीक्षा समारोह कोथली (कर्नाटक) शुक्रवार 13 अगस्त 2021
॥ वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज की जय ॥ आचार्य श्री देशभूषण जी गुरुदेव की जन्मभूमि कोथली में 13 अगस्त को होगी तीन भव्य जैनेश्वरी दीक्षाएं

प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परंपरा के पंचम पट्टा धीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी अपना 53 वा वर्षा योग कोथली कर्नाटक में कर रहे हैं

कोथली का पुण्य प्रबल है या दीक्षाथियो का कहे 13 अगस्त 2021 को 3 मुनि दीक्षाएं आचार्य श्री संघ सानिध्य में होगी

धरियावद राजस्थान निवासी 66 वर्षीय 7 प्रतिमा धारी श्री इन्द्र मल जी की तथा ग्राम अलास जिला कोल्हापुर निवासी 3 प्रतिमा धारी 85 वर्षीय श्री अप्पा साहब अलासे की मुनि दीक्षा वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी के सिद्ध हस्त करकमलों से 13 अगस्त को होगी

कोथली में चातुर्मासरत पूज्य मुनि श्री महिमा सागर जी के संघस्थ 84 वर्षीय पूज्य क्षुल्लक श्री निर्मोह सागर जी की मुनि दीक्षा भी होगी

दीक्षा कार्यक्रम

12 – 8 – 2021 को 11 बजे कर पात्र त्यागविधि,11 – 30 को प्रत्याख्यान विधि, 2 बजे गणधर वलय विधान
4 बजे गोद भरना बिनोरी

13 – 8 – 2021 को 9 बजे से दीक्षार्थियी द्वारा केशलोचन 10 से दीक्षा विधि प्रारम्भ
श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, आश्रम कोथली – कुप्पानवाडित – चिक्कोडि जिला – बेलगांव कर्णाटक
भारत वसुन्धरा के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित बेलगांव जिला, जिसे वर्तमान काल के बीसवीं सदी और इकीसवीं सदी के अनेकानेक महान दिगंबर आचार्यों और मुनियों को जन्म देने का गौरव प्राप्त हुवा है, ऐसे बेलगांव जिले को वर्ष २०२१ का आचार्य १०८ श्री शान्ति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के पंचम पट्टाधीश आचार्य १०८ श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज ससंघ के ५३ वें वर्षायोग सम्पन्न कराने का गौरव प्राप्त हो रहा है। 

कर्नाटक के बेलगांव की इसी पावन भूमि पर बेलगांव एयरपोर्ट से 80 किमी और कोल्हापुर एयरपोर्ट से 40 किमी दूर, महाराष्ट्र की सिमा पर स्थित है अति मनोहारी क्षेत्र कोथली, जिसे बीसवीं सदी के महान आचार्यरत्न भारत गौरव १०८ श्री देशभूषण जी महाराज की जन्म स्थली, तपस्थली और समाधी स्थली होने का गौरव प्राप्त है। एक तरफ जहाँ आचार्य रत्न देशभूषण जी महाराज की संयम और तपस्या के प्रभाव से इस धरती का कण कण आध्यात्मिक ऊर्जा को प्राप्त है वहीँ दूसरी तरफ इसके चारों तरफ अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य मानो सचमुच में ये धरती सम्पूर्ण भारत देश का भूषण कहलाने लायक है। इसके प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर लगता है मानों देवताओं ने स्वयं इसे अपने हाथों से अपने निवास के लिए ही बसाया हो और जैसे सचमुच में ये स्थली प्राकृतिक सौंदर्य की एक कोथली (पोटली) ही हो, जिसकी सुरम्यता और रमणीयता देखते ही बनती है। छोटे छोटे टीले, पहाड़ और उनपर चारों तरफ घनी हरियाली , मंद मंद ठंडी हवा के साथ बादलों का घुमड़ घुमड़ कर आना और फिर हल्की हल्की धुप के बिच रिमझिम फुहारें और उन पर बनता इंद्रधनुष मानो संकेत दे रहा हो की स्वर्ग से इंद्र स्वयं यहाँ आये है। और इन सबके बिच कोयल की मीठी राग के साथ छम छम नाचता मोर भारत देश के इस भूषण को गौरव प्रदान करता है।

एक तरफ पहाड़ी पर आकाश को छूती भगवान शांतिनाथ(21 फुट) , चन्द्रप्रभु और महावीर भगवान (19फुट) की भव्य खड्गासन प्रतिमाएं तो दूसरी तरफ व्यवस्थित वर्णो की नवग्रह अरिष्ट निवारक तीर्थंकरों की भव्य पद्मासन प्रतिमाएं और ॐ, नव देवता, पंच परमेष्ठी के साथ विदेह क्षेत्र में विध्यमान बीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएं। इन्हीं के मध्य भव्य काले पाषाण की विघ्नहरण भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा जिसके दर्शन मात्र से भक्तों के हर विघ्न दूर हो जाते है और उनके जीवन की कालिमा दूर हो जाती है। पहाड़ी पर ही स्थित रत्नमई प्रतिमाओ से युक्त भव्य जिनालय जिसमे लगभग 91 रत्नमई अद्भुत प्रतिमाएं। आदिनाथ भगवान्, भरत और बाहुबली स्वामी की भव्य खड्गासन प्रतिमाएं और इनके साथ भगवान् पार्श्वनाथ की खड्गासन प्रतिमा और भव्य नंदीश्वर द्वीप और समवशरण  जिनालय।  पहाड़ की तलहटी पर आचार्य रत्न देशभूषण जी महाराज की समाधि स्थली। कहते है की इस समाधी स्थली के दर्शन से भक्तों की हर मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

और आचार्य श्री वरदत्त सागर जी महाराज की समाधि स्थली। इसी के साथ क्षेत्र पर विराजमान 108 श्री महिमा सागर जी और 105 आर्यिका श्री सरस्वती माताजी सहित कुल 38 मुनि आर्यिकाओं के विशाल संघ सहित आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी, मानो संपूर्ण दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तीर्थंकर प्रभु का साक्षात् समवशरण ही आया हो।
ऐसे मनोहारी क्षेत्र को अपनी पद रज से पवित्र करने वाले पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि 108 आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का कोथली प्रांत में प्रथम वर्षायोग सम्पन्न कराने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।