7 अगस्त 2021 पूर्णायु परिसर, दयोदय तीर्थ गौशाला जबलपुर
आचार्य गुरुवर श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ने हथकरघा दिवस के अवसर पर कहा की खादी का कोई एक दिन नहीं होता हमें प्रतिदिन खादी – हथकरघा का उपयोग करना चाहिए । विश्व में पौराणिक काल में हथकरघा का ही उपयोग किया जाता था । आज के आधुनिक युग में अनेक वस्त्रों को पॉलिश के लिए अहिंसक पदार्थों का उपयोग किया जाता है जो वस्तुतः अहिंसक लोगो को वस्त्रों को पहनने के अयोग्य बना देते हैं ।
विश्व में सभी लोग किसी ना किसी तरह का पहनावा पहनते है अपने को सुरक्षित रखने के लिए । वह शाकाहारी हो या मांसाहारी , दोनों ही तरह के लोगों में वस्त्रो का प्रचलन है। भारत ने हमेशा इस तथ्य को नजर में रखकर शाकाहार का प्रचार किया है शाकाहारी वस्तु या वस्त्र यानी हथकरघा से निर्मित स्वदेशी वस्त्र हमें निरंतर अहिंसा का पाठ पढ़ाते हैं ।
इसी तरह भोजन में शाकाहारी या मांसाहारी दो तरह के लोग होते हैं, विश्व में मांसाहार करने वालों की संख्या सर्वाधिक है अनेक मांसाहारी यह कहते हैं कि जो पौष्टिकता मांसाहार में है वह शाकाहार में नहीं है लेकिन जीव विज्ञानी इस बात को साबित कर चुके हैं कि जितनी पौष्टिकता मांसाहार में है उससे कहीं अधिक पौष्टिकता शाकाहार में भी है ।
शाकाहार में यदि पौष्टिकता की कमी होती तो शाकाहारीयो का जीवन ही मुश्किल हो जाता , वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि शाकाहारी की बुद्धि तेज होती है। शाकाहार भी खाद्य और अखाद्य दोनों होते हैं, तामसिक भोजन बुद्धि पर प्रभाव डालता है उस से परहेज किया जाना चाहिए, बल्कि हम कह सकते हैं कि बचपन से कोई भी तामसिक पदार्थ का सेवन नहीं करता।
*शेर, चीता जैसे भयंकर हिंसक जानवर के बच्चे भी बचपन