आहार देने वाले अष्ट मूलगुणधारी, सप्त व्यसन त्यागी , देव दर्शन करने वाले हों तो सोने पर सुहागा

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क्योंकि आहार देने वाला व्यक्ति साधारण नही होता। हर कोई व्यक्ति पिच्छीधारी को आहार नही दे सकता। Special व्यक्ति के लिए special पात्रता होना आवश्यक है।

सोचिए….
भारत में 135 करोड़ लोगों में से कुछ ही गिनती के लोग है जिनके पास पात्रता होती है साधु को आहार दान देने की..। जब वह इतना महत्त्वपूर्ण है तो उसके लिए प्रोटोकाल तो जरूरी है न।

बस इसी बात को यहां कह रहे है आहार देने वाले के अंदर यह गुण होना चाहिए।
और फिर यह भी महत्त्वपूर्ण है कि देने वाले के आचरण का प्रभाव लेने वालों पर भी पड़ सकता है अब कोई अष्टमूलगुण से रहित है और वह साधु को आहार देता है तो उसके आचार-विचार उस भोजन को प्रभावित कर सकते है जिस भोजन को साधु करते है।

इसलिए 8 वर्ष की उम्र में ही अष्टमूलगुण धारण कर लेना चाहिए, व्यसनों का त्याग कर लेना चाहिए जिससे आपके जीवन की गाड़ी सही पटरी पर चले… साधु-सेवा अच्छे से हो सके।

आज बच्चे-बच्चियां साधु-संघों के पास आने से कतराते है कि कहीं कोई नियम न दे दें।
यदि माता-पिता अपने सही कर्त्तव्यों का पालन करते हुए बच्चों को 8 वर्ष में ही नियम करवा देते तो आज बच्चे धर्म से दूर नही होते…..