हमारे साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारी स्मृति बहुत कमजोर हो गई है । अभी अप्रैल मई के महीने में कोरोना महामारी का जो जलजला हमने साक्षात अनुभूत किया उसे भूल कर और कोरोना महामारी की तीसरी लहर की चेतावनी को नजर अंदाज कर पुनः धार्मिक स्थलों पर वैसा ही माहौल बनाने लगे हैं जो खतरनाक हो सकती है ।
ऐसा लगता है कि
अभी हमें धर्म स्थल खोलने की अनुमति मिली है तो हम पूरी कोशिश में हैं कि देव दर्शन भी बंद हो जाएं ।
हम ऐसा न करें कि चातुर्मास के दिनों में हमें देव दर्शन भी न मिलें । भारत में चेतावनी है कि अगले तीन महीने बहुत खतरनाक हैं । तीसरी लहर का नया वैरिएंट पहले से भी ज्यादा खतरनाक रहेगा ।
इसके बावजूद भी बड़े बड़े सामूहिक विधान हो रहे हैं , बड़े स्तर पर चातुर्मास स्थापनाएं हो रहीं हैं । चार महीने के बड़े बड़े कार्यक्रम बन गए हैं । सामूहिक अभिषेक हो रहे हैं ।जुलूस भी निकल रहे हैं ।
बीते दिनों हमने कितने ही साधु संतों को खोया, कितने सगे ,परिचितों को खोया ,कितनों ने संक्रमित होकर इलाज में अपना सब कुछ गंवाया । यह सब कुछ सभी का प्रत्यक्ष भुगता हुआ है फिर भी चेते नहीं तो कोई क्या करे ?
अच्छा तो यह हो कि इस बार का चातुर्मास वास्तव में सादगी पूर्ण हो , बाह्य क्रियाओं की अपेक्षा आध्यात्मिक ज्यादा हो । आगे सब कुछ ठीक रहा तो बहुत कुछ करेंगे और करते भी आये हैं । थोड़ा सा विवेक जागृत करें और ऐसा माहौल रखें कि थोड़ा बहुत सब कुछ चलता रहे , न कि पिछले वर्ष की तरह एकदम से सबकुछ बंद हो जाये ।
– डॉ अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली