कल 23 जुलाई, दिन शुक्रवार को आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी तिथि अर्थात चतुर्दशी पर्व तथा कल से चातुर्मास प्रारंभ है-
चातुर्मास में हम श्रावकों को अपने गाँव/शहर में विराजमान साधुओं की वैयावृत्ति का सौभाग्य मिलता ही है साथ ही हम श्रावकों को चातुर्मास अपना धर्म-ध्यान बड़ाने के लिए एक अनुकूल समय होता है।
चातुर्मास काल में सभी मुनिराज, माताजी अथवा व्रतीजन सर्वत्र जीवराशी बढ़ जाने के कारण एक स्थान पर ही रुककर धर्म साधना करते हैं। उन साधु परमेष्ठी की उपासना करने वाले हम श्रावकों को भी चातुर्मास काल लिए यथासंभव नियम ग्रहण करना चाहिए।
चातुर्मास काल के लिए अनेक श्रावक जो रात्रि भोजन करते हैं वह रात्रि भोजन का त्याग करते हैं, जो आलू-प्याज आदि जमीकंद खाते हैं वह चातुर्मास काल के इसका त्याग करते हैं।
अष्टमी/चतुर्दशी आदि पर्व के दिनों में विशेष संयम का पालन करना चाहिए क्योंकि पर्व के दिनों का यह संयम विशेष फलदायी होता है तथा अशुभ से बचाता है ऐसा साधु परमेष्ठी बताते हैं।
आलू-प्याज आदि सभी जमीकंदो का सेवन असंख्यात त्रस जीवों के घात के कारण अत्यंत पाप का कार्य है। जो श्रावक इनका सेवन करते हैं उनको पर्व के इन दिनों के लिए इनका त्याग करना चाहिए।
रात्रि में भोजन बहुत हिंसा का कारण है अतः हम श्रावकों रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए। जो श्रावक रात्रि में भोजन करते हैं उनको पर्व के इन दिनों में रात्रि में भोजन का त्याग रखना चाहिए।
पर्व के इन दिनों में रागादि भावों को त्याग पर ब्रह्मचर्य के साथ रहना चाहिए।