जी हाँ हम बात कर रहे है जामनेर ग्राम की जहां के जिन बिम्ब के जो दर्शन कर ले तो वहीं का हो जाता है
जामनेर मालवा प्रान्त के शाजापुर जिले में प्राचीनतम जैन तीर्थ है,इस गांव का नाम प्राचीन काल में जम्बू दीप्प था,जो इसके जैन-धर्म से जूड़ा होने का अकाट्य प्रमाण है। यहां के प्राचीनतम जिनालय को पवन मंदिर भी कहते हैं किंवदंती है कि एक समय यहां विराजित प्रतिमाएं उड़कर आई थी। यहां विराजमान नौवीं-दसवीं शताब्दी की तीर्थंकर ऋषभदेव स्वामी,पार्श्वनाथ स्वामी आदि की प्रतिमाएं त्रिभुवनमोहिनी है,ऐसी प्रतिमा अन्यत्र भारतवर्ष में दुर्लभ है,प्रशांत ध्यानमग्न मुद्रा से झरता वीतरागी अमृत बरबस ही जनमानस को सम्मोहित करता है।
जब सिद्धक्षेत्र नेमावर से मुनिश्री सौम्यसागर जी ससंघ का विहार हुआ था तब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने मुनि संघ को इंगित किया कि “आपको जामनेर जरुर जाना है, वहां जैसे परमात्मा अन्यत्र दुर्लभ है।”
परमार राजाओं के समय यहां रहने वाले सभी जाति के लोग जैन-धर्म मानते थे,गांव के पास ही एक नदी है जिससे समय-समय पर जैन प्रतिमाएं निकलती रहती है। एक समय अग्रवाल जैनों की बस्ती के कारण इस गांव का नाम आगरा भी प्रचलित हो गया था।
सम्मेदशिखर स्तवन में मालवा तीर्थों की स्तुति आती है जिसमें इसका क्रम पहला है
जामनेर आदिश्वर बंदो,सारंगपुर महावीराजी।
अमझेरा पारसप्रभु बंदो, चिंतामणी उज्जयनी जी।
जामनेर की दूरी आष्टा से लगभग 50 किली एवं जिला मुख्यालय शुजालपुर मंडी से लगभग 9 किमी है
ऐतिहासिकता : यह क्षेत्र पवन मन्दिर, जामनेर के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान आदिनाथ की प्रतिमा अतिशययुक्त है। पिछले 25 वर्षों से हर साल गुड़ीपड़वा को वार्षिक मेला भरता है। कई विकास योजनाएँ प्रगति पर है। कुछ वर्षों पूर्व ही प्राचीन अत्यन्त जीर्ण मन्दिर का जीर्णोद्धार कर प्रतिमाजी को सुरक्षित वेदीजी में विराजमान किया गया है। मंदिर में 29 प्रतिमाएँ हैं।
वार्षिक मेला : चैत्रसुदी एकम-गुड़ीपड़वा
समीपवर्ती तीर्थक्षेत्र – मक्सीजी-90 कि.मी., चाँदखेड़ी-200 कि.मी., पुष्पगिरि – 100 कि.मी.,गोम्मटगिरि (इन्दौर)-175 कि.मी.,समसगढ़-70 कि.मी.,भोजपुर-110 कि.मी