मुनि श्री प्रमाणसागर का जन्म 27 जून 1967 को झारखंड के हजारीबाग में श्री सुरेंद्र कुमार जैन और श्रीमती सोहनी देवी जैन के घर नवीन कुमार जैन के रूप में हुआ था। उन्होंने 4 मार्च 1984 को वैराग्य प्राप्त किया और 31 मार्च 1988 को सोनागिरी में आचार्य विद्यासागर जी द्वारा मुनि दीक्षा दी गई।
‘यथा नाम तथा गुणः’ की उक्ति का जीवन्त रूप दिखाने वाले, बहमुखी प्रतिभा के धनी मुनिश्री १०८ प्रमाणसागर जी महाराज युगसाधक सन्त शिरोमणि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य हैं। उनका गहन-गम्भीर ज्ञान, निर्दोष-निस्पृह चर्या और सहज-सरल वृत्ति स्वरूप व्यक्तित्व व्यक्ति को स्वत: ही अपनी ओर खींच लेता है। धर्म और दर्शन जैसे गूढ़ और नीरस विषयों की सरल और सरस प्रस्तुति उनका अनुपम वैशिष्ट्य है। वे विद्या के तत्व को ग्रहण करके, तत्वविद्या के रूप में उपस्थापित करते हैं। उन्होंने धर्म को पारम्परिक जटिलताओं से मुक्त करते हुए, जीवन-व्यवहार उपयोगी रूप में प्रस्तुत किया है।
यही कारण है कि एक बार उनकी चर्चा और चर्या की परिधि में आने वाला, उनसे अभिभूत होकर उनका ही हो जाता है। मुनिश्री की वाणी में ओज और आकर्षण है। वे अपनी बात को बड़ी सहजता और सरलता से कह देते हैं। उनकी वाणी तन को स्वस्थ, मन को शीतल करके, श्रोताओं के हृदय में उतर जाती है। हर व्यक्ति मुनिश्री का नाम सुनते ही उनकी वाणी के रसास्वादन के लिए लालायित हो जाता है।
मुनिश्री प्रमाणसागर जी आज कुशल लेखक, ओजस्वी वक्ता, प्रखर चिन्तक और प्रामाणिक सन्त के रूप में जाने जाते हैं। मुनिश्री द्वारा प्रवर्तित कार्यक्रम ‘शंका समाधान‘ ने उन्हें एक नई पहचान दी है। वे जीवन की जटिलतम गुत्थियों को पल में ही खोल देते हैं। वे एक ऐसे जैन सन्त हैं, जिन्हें प्रतिदिन विभिन्न संचार माध्यमों से विश्व के सौ से अधिक देशों में सर्वाधिक सुना/देखा जाता है। मुनिश्री ने पुरातन की आधुनिक व्याख्या करके युवा पीढ़ी और भौतिक मानसिकता को धर्मोन्मुखी बनाया है।