विगत ०९/०६/२०२१ को आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा ९ क्षुल्लक दीक्षाएं दी गई जिसमें आचार्य श्री ने सभी नव दीक्षित क्षुल्लकों को पिच्छी प्रदान नहीं की लेकिन केवल कमंडल दिया।
क्षुल्लक को पिच्छी न देने के विषय पर जैन ग्रंथों में निम्नलिखित बातें लिखी हैं
क्षुल्लक के लिए मयूरपिच्छका निषेध
सागार धर्मामृत/7/39 स्थानादिषु प्रतिलिखेद्, मृदूपकरणेन स:।39।=वह प्रथम उत्कृष्ट श्रावक प्राणियों को बाधा नहीं पहुँचाने वाले कोमल वस्त्रादिक उपकरण से स्थानादिक में शुद्धि करे।39।
लाटी संहिता/ 7/63 .।. वस्त्रपिच्छकमंडलुम् ।63।=वह क्षुल्लक श्रावक वस्त्र की पिच्छी रखता है। [वस्त्र का छोटा टुकड़ा रखता है उसी से पिच्छी का सब काम लेता है। पिच्छी का नियम ऐलक अवस्था से है इसलिए क्षुल्लक को वस्त्र की ही पिच्छी रखने को कहा है। ( लाटी संहिता/7/63 का भावार्थ)]
यद्यपि उपरोक्त ग्रंथ पंडितों द्वारा लिखे गए हैं तदपि जैन शास्त्रों में उपरोक्त दो प्रमाणों के व्यतिरिक्त अन्य कोई प्रमाण देखने को नहीं मिलता
इस विषय पर मुनि श्री विशुद्ध सागर जी महाराज द्वारा एक प्रवचन में कहा गया कि क्षुल्लकों को पिच्छी रखना अनिवार्य नहीं है।