अपने कार्य दुसरो से करवाना सेठ पना नही, पराधीनता है- मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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देशनोदय चवलेश्वर निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव तर्क वाचस्पति108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
अपने कार्य दुसरो से करवाना सेठ पना नही, पराधीनता है

1.भोजन परीग्रह नहीं-धन के बगैर नहीं चल सकता, धन रुपी परिग्रह जहां है वहां पाप है, पापी समयसार का अध्ययन नहीं कर सकता, भोजन परीग्रह नहीं ,धान्य परीग्रह है, जो भोजन किया जाता हैं ,वह परीग्रह नहीं,धान्य परीग्रह है ,इकट्ठा करते हैं धान्य को रखा जाता है ,भोजन का त्याग नहीं करना, धान्य का त्याग करना, समयसार जी पढने के लिए

2.विपरीत अनुभव-शाश्वत अविनाशी दशा विद्यमान होकर विनाश की अनुभूति हो रहा है, हम शाश्वत है, लेकिन मरने की अनुभूति हो रही है ,हम सुखी हैं, लेकिन दुखीपने की अनुभूति हो रही है, हम शक्तिमान है, लेकिन शक्तिहिन की अनुभूति हो रही है ,मीठा खा रहे हैं, लेकिन कड़वा का स्वाद आ रहा है या तो मुंह में कोई भूत बनकर आ गया है या कड़वे की मुंह में अनुभूति हो रही है, हम सब विपरीत दिख रहा है, हम किसी के सहारे की जरूरत नहीं, लेकिन पग पग पर सहारे की जरूरत पड़ रही है, वह सब कुछ अच्छा है, लेकिन अतीत के काटे आज फल दे रहा हैं।

3.आज हमारी जिंदगी हमारे हाथ मे नहीं ,अंग रक्षक के हाथ में है, दासी दास के हाथ मैं है
प्रवचन से शिक्षा-भोजन औषधि, धान्य परीग्रह
सकंलन ब्र महावी