नवनिर्मित त्रिकाल चौबीसी की पहली खडगासन प्रतिमा को 04 जून को प्रात: साढ़े छह बजे चौबीसी पर विराजमान करना था। प्रतिष्ठाचार्य ब्र. विनय भैया के सामने सागर कमेटी के आनंद अजित जैन नीटू स्टील और राकेश जैन ने संयुक्त रूप से बोली ली। बड़ी क्रेन बुलाई गई, 9 क्विंटल वजनी मूर्ति को वेदी तक पहुंचा दिया गया। अब मूर्ति को सरकाना था। तब इन दो के अलावा देवेन्द्र, मुकेश, प्रिएश, रेशू और गौरव मौजूद थे, सातों ने हिलाने का प्रयास किया, पर क्या मजाल मूर्ति एक इंच भी हिल जाए।
आचार्य श्री वहीं थे, सभी ने विनय भैया जी के साथ समस्या आचार्य श्री के सामने रखीं, कि यह तो हिल ही नहीं रही, क्या करें? आचार्य श्री ने ऊपर मूर्ति की तरफ देखा, थोड़ा मुस्कुराये, दोनों हाथ उठा कर सबको आशीर्वाद दिया। उन सातों को कुछ समझ नहीं आया। पर कोशिश तो करनी थी, अब फिर हाथ लगाया, तो चमत्कार हो गया! 900 किलो की मूर्ति मानो चंद किलो की महसूस हो रही थी, फूल की टोकड़ी की तरह वह आसानी से सरक गई और उसे शीशम की लकड़ी से बनी वेदी में विराजित कर दिया। सब हैरान थे, कभी मूर्ति को देखते, कभी आचार्य श्री को, पर यह तो सब जानते हैं, आचार्य श्री के जहां चरण पड़े, जहां दृष्टि उठे, वहां चमत्कार हो ही जाते हैं।
कहीं नजर नहीं टिकती, कहीं नजर नहीं हटती
ताम्र धातु – तांबे की सवा पांच फुट की 72 प्रतिमायें त्रिकाल चौबीसी में होंगी, साथ ही अन्य प्रतिमायें 1008 सहस्त्र कूट जिनालय में, पांच बालयति मंदिर में, इसके अलावा पूना, भीलवाड़ा, विदिशा, इन्दौर, जबलपुर आदि अनेक जगहों से अनेक प्रतिमाएं और आ रही हैं। तांबे की प्रतिमाएं ऐसी हैं कि एक बार नजर उठी, कि वहीं अटक जाती है, इतनी मनोहारी प्रतिमायें हैं।
पूरे विश्व में तांबे की इस आकार की इतनी प्रतिमायें और कहीं नहीं हैं, चौबीसी में 72, पंचबालयति में पांच तथा सहस्त्रकूट में 16 प्रतिमायें ताम्र धातु की हैं।
अभी तो शुरूआत है, गुरुवर के चरणों की, नजरों की शक्ति से चमत्कार तो अपने आप होते रहते हैं, घर बैठे देखते रहिए। कुछ आनोखे नजारे फिर लेकर आएंगे, आपके पास।
नेमावर में आगामी मंगलवार 15 जून को ऐतिहासिक पंचकल्याणक होने वाला है, जो वर्तमान के सर्वमान्य श्रेष्ठ, सभी के वंदनीय, पूजनीय संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महामुनिराज और उनके सुयोग्य 39 शिष्य मुनिराजों के सान्निध्य में 21 जून तक चलेगा।
पहली बार न पब्लिक, न पब्लिसिटी, न प्रदर्शन
हमारे सबके वंदनीय, सबसे लोकप्रिय संत के सान्निध्य में यह पंचकल्याणक, जिनके आगे पीछे हर वक्त हजारों भक्तों की भीड़ लगी रहती हो और पंचकल्याणक के समय तो गिनती लाख को पार कर जाती है, उन्हीं के परम सान्निध्य में पहली बार कोई पब्लिक नहीं, कोई पब्लिसिटी नहीं, कोई प्रदर्शन नहीं, आज तक ऐसा नहीं हुआ। यानि केवल मुख्य पात्र, वंदनीय संत और भगवान बनने वाली प्रतिमायें। यह जानकारी देते हुए संघस्थ ब्र. सुनील भैयाजी ने सान्ध्य महालक्ष्मी को बताया कि बाहर से कोई भी यात्री यहां ना आये, सरकारी दिशा-निर्देशों के अंतर्गत यह पंचकल्याणक हो रहा है। कमेटी जिनको आमंत्रण दे, केवल वही आये, बाकि सबको बाहर ताला ही मिलेगा। जो सहस्त्रकूट की 1008 प्रतिमाओं के पुण्यार्जक हैं,वे भी ना आये, अभी सब प्रतिमाओं के पंचकल्याणक हो रहे हैं, बाद में उन सब पुण्यार्जकों को अलग-अलग बुलाकर प्रतिष्ठा कराई जाएगी, इसलिये अभी वे भी न जाएं। बाहर पुलिस की कड़ी व्यवस्था है, इसलिये जाने की कोशिश न करें।
नेमावर वीरान जंगल से बना विशाल तीर्थ
इन्दौर से महज 135 किमी की दूरी पर नर्मदा के किनारे नेमावर में आचार्य श्री विद्यासागरजी कुछ माह से विराजमान हैं, इस समय उनके साथ 39 मुनिराज यहां विराजमान हैं।
सन् 1995 में आचार्य श्री जब यहां पहली बार आये थे, तब यहां दूर-दूर तक वीरान जंगल ही दिखाई देता था, पर जहां गुरुवर के चरण पड़ जाते हैं, वहां वो धरा तीर्थ बनने में देर नहीं लगती।
इतिहास साक्षी है कि यह नेमावर ही ऐसा तीर्थक्षेत्र है, जहां चातुर्मास सम्पन्न होने के बाद तीसरी बार आचार्य श्री का सान्निध्य मिला है। सन् 1999 में गोम्मटगिरि से 2014 में विदिशा शीतलाधाम से तथा 2020 में रेवतीरेंज, इंदौर से यहां पहुंचे। संभव है कि उस दौरान दीक्षायें भी हों, पहले भी यहां चार बार दीक्षायें प्रदान कर चुके हैं। सन् 1997 को 29 आर्यिका दीक्षायें व 14 अगस्त 1997 को 14 आर्यिका दीक्षायें हुर्इं।
यहां 28 एकड़ भूमि पर लाल पाषाण से निर्मित 135 फीट ऊंचा पंचबालयति मंदिर 63-64 फीट ऊंचाई के त्रिकाल चौबीसी जिनालय (भूत, भविष्य, वर्तमान की चौबीसी(, 126 फीट ऊंचा सहस्त्रकूट जिनालय, संत भवन, व्रति आश्रम, दयोदय गौशाला यात्री निवास भी है।
अभी निर्मित जो जिनालयों में जैसलमेरी पीले स्टोन, पिंक स्टोन, बंदीपुर के रेड स्टोन का उपयोग किया है।
यह भी बता दें कि नेमावर तीर्थ के नर्मदा तट पर तीन चतुर्थकालीन प्रतिमायें प्राप्त हुई जिनपर कोई प्रशस्ति नहीं है। इन्हें नेमावर के साथ, हरदा और खाते गांव में विराजित किया गया था। अब सबको इंतजार है इस भव्य पंचकल्याणक का।