14 जून : 15वें तीर्थंकर श्री #धर्मनाथ जी का #मोक्षकल्याणक : ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी

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14वें तीर्थंकर श्री अनंतनाथ जी के चार सागर, 7,50,000 वर्ष में आधा पल्य कम वर्ष के बाद रत्नपुरी में महारानी सुव्रताजी के गर्भ में 15वें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी का जन्म हुआ।

दस लाख वर्ष की आयु और 270 फुट ऊंचा कद, एक वर्ष तप के बाद 24,999 वर्ष का केवलीकाल और आयु कर्म का एक माह शेष रह गया, तब आप शाश्वत मोक्ष धरा श्री सम्मेदशिखरजी आ गये।

जब हम इस पावन पर्वत की वंदना शुरू करते हैं, तो गौतम गणधर कूट है। बायीं ओर से वंदना शुरू करके, अभिनंदन भगवान की टोंक से जलमंदिर होते हुये वापस नहीं पहुंचते हैं और तब गौतम गणधर टोंक के बायी तरफ आती है सुदत्तवर कूट, जहां से 15वें तीर्थंकर, ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी (14 जून) को 801 महामुनिराजों के साथ एक समय में सिद्धालय में विराजमान हो गये। इस कूट से एक अरब, 84 करोड़, 14 लाख, 781 मुनिराज मोक्ष गये हैं। और इस कूट की भाव सहित वंदना करने से 9 करोड़ 32 लाख उपवास का फल मिलता है।

और हां, इस अवसर्पिणी काल में आखिरी बार धर्म विच्छेद एक पल्य वर्ष का आपके जिनशासन में ही रहा, उसके बाद से यह जिन धर्म निर्बाध चल रहा है, जो पंचमकाल की समाप्ति के तीन वर्ष साढ़े आठ माह पूर्व तक चलेगा।

बोलिए, 15वें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी के मोक्षकल्याणक पर्व की जय, जय, जय।