ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी – 09 जून :12वें कामदेव का जन्म, पांचवें चक्रवर्ती का तप व 16वें तीर्थंकर का मोक्ष कल्याणक

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आज बात कर रहें उस धरा की, जो शाश्वत निधन मोक्षस्थली श्री सम्मेदशिखरजी और गर्भ-जन्म स्थली अयोध्या के बाद सबसे ज्यादा कल्याणकों की भूमि है, और यह है हस्तिनापुर।
॰ जहां पर कौरव-पाण्डवों के महाभारत के युद्ध और उससे पहले यही पर कौरवों के राजमहल में महारानी द्रौपदी का चीर हरण भी इसी धरा पर हुआ था।

॰ उससे करोड़ों वर्ष पूर्व राजकुमार श्रेयांस ने प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी को महामुनिराज के रूप में प्रथम आहार इक्षुरस के रूप में दिया था, और तब से वह दिन अक्षय तृतीया कहलाया और इसी कारण पश्चिमी यूपी के क्षेत्र में आज तक गन्ने का उत्पादन बहुतायत मात्रा में होता है।

॰ इसी धरा पर बलि ने चंद दिन का राज मांगने के बाद अपना बदला लेने के लिये अकम्पनाचार्य आदि 700 मुनिराजों को यज्ञ के बहाने बलि देने का कुत्सित षड्यंत्र रचा था, और फिर विष्णु कुमार ऋद्धिधारी मुनि ने उनकी रक्षा की, और रक्षा सूत्र का पर्व शुरू हुआ।

॰ इसी धरा पर 12वें कामदेव ने जन्म लिया। इतने सुंदर कि शब्दों का गगन छोटा पड़ जाये। देवांगनायें भी धरा पर उन्हें देखने उतर आर्इं। सर्वार्थ सिद्धि विमान में आयु पूर्ण कर, यही के राजा विश्वसेन जी की महारानी ऐरा देवी जी के गर्भ से ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को आपका जन्म हुआ। और आपके जन्म से 15 माह पूर्व से ही सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से, कुबेर इनके महल पर 15 माह, दिन के तीनों पहर सुबह-दोपहर-शाम-साढ़े तीन करोड़ रत्न लगातार बरसाता रहा। अयोध्या की तरह इसकी रचना भी देवों ने ही स्वर्ग से आकर की थी।
॰ आपकी आयु एक लाख वर्ष की थी और कद था 40 धनुष का यानी 240 फुट ऊंचा। आपका शरीर, तपे हुये सोने के समान दमकता था।

॰ इसी हस्तिनापुर में चौथे चक्रवर्ती सनत कुमार का जन्म हुआ और इसके बाद 5-6-7-8वें चक्रवर्ती का भी, ऐसी कोई और जगह नहीं जहां लगातार 5 चक्रवर्ती का जन्म हुआ हो। आप भरत क्षेत्र छह खण्ड का राज्य जीतकर 5वें चक्रवर्ती बने, 50 हजार वर्ष तक आपने राज किया, आपकी 96 हजार रानियां थीं, अतुल सम्पदा, इतनी की पूरी धरा की सम्पदा भी उनके सामने फीकी पड़ जाये। इतना सब, फिर एक दिन अलंकार धारण करते, दर्पण में अपनी छवि देखी, दो प्रतिबिम्ब, बस पूर्व जन्म की बातें स्मृति पटल पर उभर आई। चक्रवर्ती ने तत्काल सुबकुछ त्यागने का संकल्प कर लिया, उसी क्षण। पुत्र नारायण को राजपाट सौंप इसी हस्तिनापुर के आम्रवन में सर्वार्थ सिद्धि पालकी से पहुंचे और पंचमुष्टि केशलोंच कर नंद्यावर्त वृक्ष के नीचे तीन दीक्षा उपवास के साथ कायोत्सर्ग मुद्रा धारण कर ली। क्षण पूर्व क्या थे, क्षण में क्या हो गये, तभी तो कहते हैं जिस क्षण अच्छे भाव बने, वो कार्य तत्काल कर डालो। इस तरह पांचवें चक्रवर्ती ने इसी ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को तप को धारण किया।

॰ यहां आपको बता दें कि 12वें कामदेव, 5वें चक्रवर्ती ही 16वें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ जी हैं। और हां, मंदिर में जो रोज हम अभिषेक के बाद शांतिधारा करते हैं, उनमें शान्तिनाथ जी का ही नाम क्यों लेते हैं, चाहे वो किसी भी तीर्थंकर की प्रतिमा पर कर रहे हों, न आदिनाथ भगवान, जिन्होंने इस काल में धर्म की पुन: जानकारी दी, या जिनका जिनशासन है, या क्षमा के अग्रदूत पारस बाबा, कभी सोचा है आपने? आज आपको बता दें कि 15वें तीर्थंकर तक बीच-बीच में धर्म का विच्छेदन होता रहा। धर्म शून्य हो गया था। पर 16वें तीर्थंकर से यह धर्म की लहर निर्बाध बहती जा रही है।

॰ तो 16 वर्ष तप के बाद केवलज्ञान की प्राप्ति और 24,984 वर्ष केवलीकाल के बाद पहुंच गये इसी शाश्वत निधन तीर्थ श्री सम्मेदशिखरजी पर, जहां जन्म-तप वाले दिन ही, यानि ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को प्रदोष काल में 900 महामुनिराजों के साथ कुंदप्रभ कूट से एक समय में सिद्धालय पहुंच गये। आपका तीर्थ प्रवर्तन काल आधा पल्य और 1250 वर्ष रहा है, और तब से धर्म का विच्छेदन नहीं हुआ, जो इस पंचम काल के खत्म होने से 3 वर्ष साढ़े आठ माह पूर्व तक चलता रहेगा।

इसी कुंदप्रभ कूट से 1 कोड़ा कोड़ी 9 लाख 9 हजार 999 मुनिराज सिद्धालय गये हैं। इस कूट की भाव सहित वंदना करने से 1 करोड़ उपवास का फल मिलता है।