कर्म के विपरीत चलो, तुम पुण्य और पाप से ऊपर उठो, अच्छे कर्म आ जाए, बुरे कर्म टल जाए, कीचड़ में रहकर, साफ रहकर दिखाओ: मुनिपुंगव श्री सुधासागर

0
1024

देशनोदय चवलेश्वर – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव महातपोमार्तंड 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
कर्म ने हमें मिथ्यादृष्टि बनाया, हमे सम्यक्दृष्टि बनकर दिखाना, कर्म से विपरीत चल के दिखाओ

1.सम्यकदृष्टि कभी ठगा नहीं-सम्यकदर्शन के बाद ,जो चारित्र लेगा, वो कभी ठगा नहीं जाएगा, गुंगा को कहा कि णमोकार बोलो ,तो गूंगा पन दूर हो जाएगा,विकलांग को कहा हॉस्पिटल में जाना पक्षाघात है, ऊपर पहाड़ी पर जाना है, आप ठीक हो जाओगे ,पहला दर्शन अंधे को होता है।

2.बडा कौन-रास्ते में अंधा जा रहा था, 4 व्यक्ति मे से पहला व्यक्ति ने कड़क शब्दों में कहा, अंधे हो रास्ते मे क्यों आ रहे हो,दूसरा व्यक्ति आया, साइड में चला करो, अंधे हो,तीसरे व्यक्ति आया साइड में चलो,नहीं तो ठोकर लगा देगा भाई,चोथा व्यक्ति ने पकड़ कर कहा सूरदास जी साइड मे चलो, नहीं तो कोई ठोकर मार देगा अंधे व्यक्ति ने कहा आप राजा हो और जो आपके पहले वो मंत्री,तीसरा हवालदार,पहला कडक पुलिस वाला था।

3.साधु को अच्छा चौका पहचाना-साधु को नए स्थान पर किसी को नहीं जानते, वहां पर साधु को एक ही दृष्टि में आहार को जानो है, जिस कुल में आहार के लिए जाता है, वह कुल अच्छा है ,ये पहचाना यदि कोई साधु नहीं पहचाना ,साधु को बहुत कुछ भुगतना पड़ता है, साधु में वह कला होती है ,
पहचान लेते हैं किस चौकी में जाना है, इस चौके में नहीं जाना।

4.अज्ञान मे सच्चे को देखना-कर्म के विपरीत चलो, तुम पुण्य और पाप से ऊपर उठो, अच्छे कर्म आ जाए, बुरे कर्म टल जाए, ये सोचते हैं कीचड़ में रहकर, साफ रहकर दिखाओ, मिथ्यादृष्टी रहकर, सच्चे गुरु भगवान उनको पहचान,मिथ्यात्व कर्म का उदय और सच्चे देव गुरु को पहचानना है, अज्ञान भरा पड़ा है और गुरु को पहचानना, अज्ञानी मिथ्यादृष्टि हु।

5.सम्यग्दर्शन होगा सो देव शास्त्र गुरु पर श्रद्धान होगा ऐसा नही, देव शास्त्र गुरु पर श्रद्धान होगा सो सम्यग्दर्शन होगा।

6.जहाँ स्त्री का प्रसंग आ जाए और साधु की आँख जुक जाए तो समझना की ये वीतरागी साधु है।
प्रवचन से शिक्षा-अज्ञानता मे सच्चे देव गुरु को पहचाना है
सकंलन ब्र महावीर ब्र गौरव उमाठे