णमोकार से अंजन भी हो गया निरंजन, कि विश्व में यह एकमात्र ऐसा मंत्र है जिसमें किसी व्यक्ति को नहीं अपितु व्यक्तित्व को नमन – आचार्य अतिवीर मुनि

0
636

जैन यूथ फॉरम, त्रिनगर (दिल्ली) के तत्वावधान में विश्वशांति व आत्मविशुद्धि हेतु महामंत्र णमोकार के अखण्ड पाठ का आयोजन दिनांक 20 मई 2021 को किया गया| इस अवसर पर प्रशममूर्ति आचार्य श्री 108 शांतिसागर जी महाराज (छाणी) परंपरा के प्रमुख संत परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने वेबिनार के माध्यम से भक्तों को सम्बोधित करते हुए कहा कि णमोकार मंत्र के श्रद्धापूर्वक स्मरण से अनेक विघ्न-बाधाएं स्वतः दूर हो जाती है| महामंत्र की महिमा बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि विश्व में यह एकमात्र ऐसा मंत्र है जिसमें किसी व्यक्ति को नहीं अपितु व्यक्तित्व को नमन किया गया है| शुद्ध अंतःकरण से जाप करने पर निश्चित रूप से पुण्यार्जन होता है |

इस मंत्र को श्वासोच्छ्वास के साथ पढ़ने से पूरे शरीर में चेतना का संचार होता है, सकारात्मक ऊर्जा निर्मित होती तथा नकारात्मक शक्ति शनैः-शनैः शीर्ण होने लगती है| णमोकार महामंत्र पढ़ने का कोई नियमबद्ध क्रम नहीं है – इसे सीधा भी पढ़ सकते हैं, उल्टा भी पढ़ सकते हैं तथा बीच से भी पढ़ सकते है|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि वर्तमान में एक होड़ लगी हुई है कि कौन कम-से-कम समय में कितनी ज्यादा-से-ज्यादा माला फेर सकता है| यह होड़ निरर्थक है तथा इससे कोई भला होने वाला नहीं है| आपका णमोकार पढ़ना तो तब सार्थक होगा जब आप उसे श्रद्धापूर्वक तथा पूर्ण आस्था के साथ शुद्धरूप से उच्चारित करेंगे|

शास्त्रों में कथा मिलती है जिसमें एक अंजन नामक चोर ने शुभ भावों से 108 बार णमोकार महामंत्र का स्मरण किया तो वह भी निरंजन हो गया| इस महामंत्र की महिमा ही अपरम्पार है – इसका प्रत्येक शब्द, प्रत्येक अक्षर तथा प्रत्येक पद अपने आप में एक पूर्ण मंत्र है| मंत्र विज्ञान के अनुसार यह अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है क्योंकि इसके प्रत्येक पद का आरम्भ अनुस्वार (ण) से होता है तथा अंत भी अनुस्वार (णं) से ही होता है|

भौतिकता की चकाचौंध में फसे प्राणियों को सम्बोधन देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि निस्वार्थ भावना से मंत्रजाप ही मोक्ष मार्ग में सहायक बनती है| किसी सांसारिक कामना के वशीभूत होकर यदि जाप करेंगे तो कुछ पुण्य तो मिल सकता है परन्तु जितना लाभ होना चाहिए था, वह नगण्य रह जाता है| इस मंत्र में हम अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु को नमन करते हैं|

यदि हमारे भीतर उनके जैसा बनने का भाव विद्यमान नहीं है तो केवल बाह्य रूप से मंत्र पढ़ लेने मात्र से कुछ होने वाला नहीं है| यह तो अपने आप से अपने को छलने जैसा है| आचार्य श्री ने इस कोरोना काल में सभी को मंत्रजाप का अवसर प्रदान करने लिए जैन यूथ फॉरम के सभी सदस्यों को अपना मंगल आशीर्वाद देते हुए भविष्य में भी इसी प्रकार धार्मिक कार्यक्रमों में सहभागिता रखने के लिए प्रेरित किया|