कमजोरी हमारी वही हो रही है, सच्चे गुरु और भगवान और शास्त्र कौन से हैं ,उनको देखना है : मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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15 मई 2021-देशनोदय चवलेश्वर- निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धारक108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
दुश्मन से द्वेष करते हैं हमारे प्रतिकूल तो हम अशांत नहीं होंगे ,यदि वो ही हमारे अनुकूल है, हम अशांत हो जाते है

1.राग से शांति भंग-हम दुश्मन से द्वेष करते हैं, हमारे प्रतिकूल तो हम अशांत नहीं होंगे ,यदि वो ही हमारे अनुकूल है, हमारे से राग करता है, यदि उसको कोई तकलीफ होती है, हम अशांत हो उठते हैं कि अनुकूल व्यक्ति से राग है, तब किसी दूसरे से द्वेष होगा इसलिए हमें जिससे द्वेष होगा, उससे हमारा वैराग्य बढ़ेगा, जब हमें कोई धोखा दे देवें था, तब हमारा वैराग्य चरम पर होता है,

गुरुदेव समझाते हैं, तब हमें वैराग्य नहीं होता, जब हमे परिवार घर वाले ठकते हैं, तब हमें वैराग्य होता है, पर पदार्थ हमारे अनुकूल होता जाएगा, हमे सोचना अपने प्रति समर्पित होने वाले का ध्यान रखना है, आचार्य अपने प्रति समर्पित शिष्यों की सोचता है ,उनकी चिंता करना, हमको आज्ञा देनी पड़ेगी, ये द्वंद आचार्य को 24 घंटे चलता रहता है, आचार्य की शांति भंग हो जाती है।

2.नो कर्म से हम बंधे,-हमारे जिंदगी में नो कर्म तो बाधा नहीं कर रहा है, नो कर्म हमारे से नहीं बंधा है, हम नो कर्म से बंधे हैं। ग्वाला और गाय का उदाहरण दिया, हम गाय से बंधे हैं ,गाय हमारे से नहीं बंधी है और सिगरेट का उदाहरण दिया, सिगरेट को हम पीते हैं , सिगरेट हमारे को नहीं पीती है।

3.लक्ष्य अच्छा मार्ग गलत-ये अशुद्ध हो गया तो, यह चिंता करो कि शुद्ध होने का मार्ग क्या है ,सबके लक्ष्य अच्छे हैं, दुर्भाग्य है कि हम अनंत काल तक यह सोच रहे हैं ,लेकिन लक्ष्य सही है, भुल कहां हो रही है, सबकी भुल कहां हो रही है, हमे शिखरजी तो जाना है, लेकिन स्टेशन नहीं जाना चाहते वहां से ट्रेन नहीं पकड़ना चाह रहे हैं, कमजोरी हमारी वही हो रही है, सच्चे गुरु और भगवान और शास्त्र कौन से हैं ,उनको देखना है।

4.पर वस्तु से आकर्षित नहीं,-जब-जब पर वस्तु हमारे पास आएगी, तब तब हम हम अशांत होते जाएंगे ,हमारे पास आएगी, हम अशांत होते जाते हैं ,यदी संसार की सभी वस्तुएं हमारे प्रति समर्पित हो जाए, हमारी शांति भंग हो जाएगी, हम अशांत हो जाएंगे, हम शांति के लिए तरस जाएंगे, इसलिए पर वस्तु के प्रति इतने आकर्षित मत होना।

प्रवचन से शिक्षा-बहुतायत पुद्गल जीव के आधीन नहीं ,इसका स्वभाव विभाव स्वयं होता रहता है, अज्ञानी जीव पुदग्ल के आधीन हैं।

सकंलन ब्र महावीर