जैन साधु-साध्वी भगवन्तों की स्वास्थ्य सुरक्षा सर्वोपरि है, श्रावकों को माता-पिता की तरह अपना कर्तव्य निभाना चाहिए

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कोरोना के चक्रवात से जिस तरह से जन-हानि हुई है और होती जा रही है यह सर्वत्र ही चिंता का विषय है। पर कोरोनाकाल ने जैन समाज के लिये तो और भी गहन वेदना पंहुचाई है क्योंकि सैकड़ों श्रावकों के साथ- साथ, पिछले एक साल में हमारे समस्त जैन संप्रदायों के लगभग २०० साधु-साध्वी भगवंत, ब्रह्मचारी भैया एवं विद्वान कोरोना के शिकार होकर असमय ही काल कवलित हो गये हैं।

अभी जो कोरोना-2 की लहर चली है, वह तो और भी बड़ी ही घातक सिद्ध हुई है। पिछले 50 दिनों में लगभग 50 साधु-भगवंत तो स्थानक- श्वेतांबर समाज के ही काल कवलित हो गये हैं। दिगंबर समाज को भी मुनि श्री निकलंकसागर जी, आचार्य अनुभवनंदी, गणिनी आर्यिका विद्याश्री, क्षुल्लक संभव सागर ब्र.राजेश भैयाजी, ब्र. त्रिलोक भैया जी, ब्र. अतुल, पं. अजित शास्त्री , पं. रिषभ, . पं.जयकुमार, पं. प्रवीण इत्यादि विभूतियों का वियोग सहना करना पड़ा है। जो अपूर्णीय क्षति जिनशासन की हुई है, उसको शब्दों में व्यक्त कर पाना संभव नहीं है।

…जैन साधुओं की जैसी चर्या है, साधना है, तप संयम है, उसके चलते वे सब उपसर्गों को समता पूर्वक सहन कर रहे हैं। पर उन पर आ रहे उपसर्गों की स्थिति में श्रावक क्यों असहाय से बैठे हैं, यह बेहद चिंतनीय है। शास्त्रों के अनुसार श्रावकों की भूमिका तो साधु भगवन्तों के माता- पिता की तरह है। माता-पिता जितनी लगन और प्रयत्नों से अपनी संतानों की सेवा करते हैं, वैसी ही सेवा-सुश्रुषा, घर से निवृत्ति लेकर साधना- संयम पथ पर अग्रसित, इन जीवन्त तीर्थों- साधु-साध्वी भगवन्तों- की करने का विधान है।

जिस तरह मंदिर में जिनबिंब विराजमान करने के लिये वेदी भी उतनी भव्य होना जरूरी है, उसी तरह आत्मा जैसे भव्यबिंब को विराजमान करने वाले इस शरीर रूपी वेदी की देखभाल भी अत्यंत आवश्यक है। इस संदर्भ में कौन जैन ऐसा है कि जिसे नहीं पता है कि हस्तिनापुर में विशाल मुनि संघ पर उपसर्ग होने पर आकाश मार्ग से मुनि विष्णु कुमार ने आकर उस उपसर्ग का कैसे निवारण किया था?

तो क्या उनके मुनि पद में कोई बट्टा लगा या सदा के लिये उनका नाम अमर होकर अनुकरणीय बन गया? श्रावकों के आचार और कर्तव्य के लिये जैन गीता बने रत्नकरंड श्रावकाचार ग्रंथ के रचयिता आचार्य समंतभद्र स्वामी जैसे महान जैन संत को स्वयं भी अपने असाध्य भस्मक रोग का शमन करने के लिये क्या करना पड़ा था, यह सबको ज्ञात है। इतिहास में और भी कई उदाहरण हैं।

अतः आज किसी भी तरह की ऊहा-पोह और दुविधा छोड़कर श्रावकों को चाहिए कि माता-पिता का कर्तव्य निवाहते हुये शीघ्र ही सभी जैन संप्रदायों के समस्त साधु-साध्वियों को, ब्रह्मचारी भैयाजी एवं दीदियों के स्वास्थ्य की चिंता कर उन सबको कोरोना से बचाव हेतु शीघ्र ही वैक्सीन लगवाने की व्यवस्था करें।अब तो सरकार ने भी जैन साधुओं के लिये आधार कार्ड होने की अनिवार्यता भी समाप्त कर दी है।

साधुओं को वैक्सीन पुरुष स्टाफ/डाक्टर द्वारा दी जावे एवं साध्वियों एवम् दीदियों के लिये महिला स्टाफ द्वारा दी जावे। जैन संगठनों द्वारा आक्सीजन कंसंट्रेटर की व्यवस्था जनहितार्थ किये जाने के समाचार आ रहे हैं। अतः जहां-जहां पर जैन साधु- साध्वी विराज रहे हैं, वहां पर रिजर्व में एक एक आक्सीजन कंसंट्रेटर भी अवश्य हो ताकि कोई इमरजैंसी होने पर साधू भगवन्तों की प्राण रक्षा की जा सके।..

इंटरनेशनल जैन फैडरेशन के संस्थापक, जिन शासन सेवक एवं प्रबुद्ध साधक पूज्य भाईश्री जी ने इस संबंध में श्रावकों से जो मार्मिक अपील की है, वह भी साथ में दी गई है। हमारी सबसे विनम्र प्रार्थना है कि जैन संगठन एवं संघपति इस दिशा में तुरंत कार्यवाही करें। इस संबंध में किसी तरह की शंका के निवारण के लिये आदरणीय भाईश्री जी का मार्गदर्शन भी ले सकते हैं।

जिन शासन जयवन्त वर्ते।

नीलमकान्त जीवमित्र*-मिशन-जैनमित्र