निमियाघाट-पारसनाथ , अहिंसा संस्कार पदयात्रा के प्रणेता साधना महोदधि भारत गौरव उभय मासोपासी आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज निमियाघाट के सहस्त्र वर्ष पुरानी भगवान पारसनाथ की वरदानी छांव तले विश्व हितांकर विघ्न हरण चिंतामणि पारसनाथ जिनेंद्र महाअर्चना महोत्सव पर भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए अंतर्मना प्रसन्नसागरजी* ने कहा:- तीर्थंकर और अवतार की दो अलग-अलग मान्यताएं हैं जैन धर्म में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसके अनुसार पाप अधिक बढ़ जाने पर ईश्वर को अवतार लेना पड़े जैन दर्शन की धारणा अवतार कि नहीं तीर्थंकर की है अवतार का अर्थ* ऊपर से नीचे की ओर आना। और तीर्थकर का अर्थ नीचे से ऊपर की ओर जाना। राम,कृष्ण अवतारी पुरुष है जबकि ऋषभदेव,महावीर तीर्थंकर पुरुष है हम मान्यताओं पर नहीं जाएं कथा के तथ्य को समझें श्री कृष्ण कहते हैं अब मैं बहुत थक चुका हूं अब आगे में अवतार नहीं लूंगा
उद्धरेदात्मनात्मानम्”
अब मनुष्य उद्धार खुद को ही करना होगा
अप्पदीपोभव: अपना दिया खुद बनना होगा दूसरों की रोशनी काम नहीं आएगी खुद में रोशनी पैदा करनी होगी।
अन्तरमना आचार्य श्री ने कहा
– रावण आया तो उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने राम आ गए।
कंस* आया तो उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने कृष्ण आ गए।
– अंगूलीमल* और अर्जुन माली आया तो उसका उद्धार करने बुद्ध आ गए।
लेकिन अब जब दुनिया मैं हजारों लाखों अत्याचारी हैं और उनके अत्याचारों से पृथ्वी का दिल दहल उठा है तो इससे मुक्ति दिलाने के लिए अब ना तो राम,कृष्ण आएंगे और ना ही बुद्ध,महावीर आएंगे। अब तो तुम्हें ही आगे आना होगा और सिर पर मंडराते संकट,विपदा,हिंसा भ्रष्टाचार,आतंक की काली घटाओ को हटाना होगा।इसी प्रकार आज हमारा देश कोरोना के तांडव नृत्य से जूझ रहा है इस कोरोना के तांडव नृत्य से ना प्रधानमंत्री बचाएंगे ना प्रांतीय मुख्यमंत्री बचाएंगे ना डॉक्टर बचाएंगे।
और ना ही कोई दैवीय शक्ति रक्षा करेगी अब तो तुम्हें ही आना होगा स्वयं बचो एवं अपने परिवार को बचाओ इस करोना मैं स्वाद खुशबू ही नहीं जा रही है बल्कि आदमी खुद पूरा जा रहा है अब तुम्हें ही अपना राम कृष्ण बन के आगे आना होगा ऋषभदेव महावीर बन के दिखाना होगा स्वयं को अपना डॉक्टर बनना होगा।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगजमडी