कोरोना पीड़ित संतों को आक्सीजन दो, समाधि नहीं, मुनि श्री प्रमाण सागर जी ने क्या कहा?

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 07 मई 2021
नई दिल्ली। आंकड़े बता रहे हैं कि आज कोरोना की प्रहारक क्षमता हमारे फेफड़ों को निशाना बना रही है। हम वातावरण से सांस के रूप में आॅटोमेटिक आॅक्सीजन लेते हैं। साधारणत: इंसान के शरीर में आक्सीजन लेवल 95 से 100 फीसदी रहता है और जिसके फेफड़ों में संक्रमण या इंफेक्शन होता है उसका लेवल गिरता चला जाता है और 85 का लेवल खतरे का सूचक है। इस लेवल तक आॅक्सीजन गिरने पर उसे तत्काल कृत्रिम तरीके से आक्सीजन मुहैया करानी पड़ती है।

आज हमारे कई संत भी इस कोरोना से पीड़ित हैं, कुछ का अस्पताल में, तो कुछ का उनके स्थान पर इलाज चल रहा है, पर कुछ त्यागी व्रती व हमारे संत ऐसे भी है जो समाधि के द्वार तक पहुंच जाते हैं, वे अमूल्य जान बचाने के लिये आर्टिफिशयल रूप से आॅक्सीजन न लेते हैं, न उनके गुरु आज्ञा देते हैं और ना ही समाज दबाव डाल कर देने का प्रयास करते हैं – यह कड़वा सच है। अगर आज एक संत की भी असमय इस कारण समाधि होती है, तो उसके दोषी, हम लोग हैं। बुरा ना मानिये, ऐसा हो भी चुका है, जब आपने उनकी जांच तो कराई नहीं, तो आपको क्या पता, उनकी असमय देवलोकगमन हो गया।

आज पूरे देश में कोरोना मरीजों के आक्सीजन के लिये मारा-मारी है, समय पर मिल जाये तो 100 में से 98-99 की जान बच जाती है। तो क्या यह असाध्य रोग है, जो समाधि / कालधर्म ही लेना एकमात्र विकल्प रहा गया? बिल्कुल नहीं।

इस समय भी हमारे कुछ संत कोरोना से पीड़ित हैं और उनमें कुछ को आॅक्सीजन की भी जरूरत है, उनको तुरंत आॅक्सीजन मुहैया कराई जानी चाहिए, उनके गुरुओं का ऐसा आदेश होना चाहिये, वहां के स्थानीय समाज का परम कर्तव्य होना चाहिए।

इस बारे में हमारी टिप्पणी आपको बुरी भी लग सकती है, क्योंकि आप कह सकते हैं हम संत की चर्या में दोष लगाने के लिए प्रेरित कर रहे है, परन्तु सर्वप्रिय जैन संत तथा आगम अनुकूल श्रेष्ठ चर्या का पालन करने वाले मुनि श्री प्रमाण सागरजी ने इस पर स्पष्ट राय ‘जिज्ञासा समाधान ’ कार्यक्रम के अंतर्गत देते हुए कहा कि वातावरण में 21 फीसदी आक्सीजन होती है, जिसे हम 24 घंटे वायुमंडल से ग्रहण करते हैं।

जब यह नासिका से लगातार लेते हैं, और यह तब तक संभव हो पाता है, जब तक हमारे फेफड़े सही तरह से काम कर रहे हो, यानि तब तक हम सांस लेने और छोड़ने में समर्थ रहते हैं। आॅक्सीजन को कृत्रिम रूप से लेने की जरूरत क्यों पड़ती है? सिर्फ तभी जब हमारा शारीरिक सिस्टम, विशेष कर फेफड़े पूरी तरह काम नहीं कर पाते, तब वातावरण से लेने में स्वयं समर्थ नहीं होते।

उन्होंने स्पष्ट राय देते हुये कहा कि सिलेण्डर में क्या भरा है, सिर्फ आॅक्सीजन ही तो भरी है। बस वातावरण में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और 21 प्रतिशत आक्सीजन है। अब सिलेंडर में उसी वातावरण से आक्सीजन को फिल्टर करके भर लिया। वह शुद्ध आक्सीजन होती है, और जब उस सिलेंडर से प्राणवायु ही लेते हैं, चाहे तरीका भिन्न है, कृत्रिम है।

पर इसमें साधु के व्रतों में कोई दोष नहीं लगता। यह प्राण रक्षा की बात है। वर्तमान की कोरोना महामारी असाध्य रोग नहीं है, कि असाध्य रोग हो गया कि समाधि ले लो। यह साध्य रोग है। 100 में से 98-99 फीसदी ठीक होते हैं, ऐसे में किसी मुनि या आर्यिका या त्यागी के अस्वस्थ होने पर इस तरह की निर्बद्ध चिकित्सा होती है तो मैं इसे गलत नहीं मानता।
(शरद जैन)