अनूठा मंत्र अनादिकाल से रक्षा करता हुआ – भक्तामर स्तोत्र

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भक्तामर स्रोत के नियमित पढने से कैंसर से मुक्ति मिल सकती है खसतौर पर पद 45 के पढ़ने से।में प्रयोग कर रहा हूँ कि क्या शुगर का संतुलन ठीक हो सकता है।इसके उत्साहजनक परिणाम आ रहे है।

भक्तामर स्तोत्र की रचना कब हुई, कैसे हुई और क्यों हुई, कैसे पढ़े, कब पढ़े और किस तरह पढ़े, आदि सब जाने |

भक्तामर स्तोत्र के रचना मानतुंग आचार्य जी ने की थी, इस स्तोत्र का दूसरा नाम आदिनाथ स्रोत्र भी है, यह संस्कृत में लिखा गया है, प्रथम अक्षर भक्तामर होने के कारण ही इस स्तोत्र का नाम भक्तामर स्तोत्र पढ़ गया, ये वसंत-तिलका छंद में लिखा गया है! हम लोग भक्ताम्बर बोलते है जबकि ये भक्तामर है !

भक्तामर स्तोत्र में 48 शलोक है , हर शलोक में मंत्र शक्ति निहित है, इसके 48 के 48 शलोको में “म“ “न“ “त“ “र“ यह चार अक्षर पाए जाते है!

इस स्तोत्र की रचम के सन्दर्भ में प्रमाणित है क़ि आचार्य मानतुंग को जब राजा भोज ने जेल में बंद करवा दिया था, तब उन्होंने भक्तामर स्तोत्र की रचना की तथा 48 शलोको पर 48 ताले टूट गए! मानतुंग आचार्य 7वी शताब्दी में राजा भोज के काल में हुए है ||
इस स्तोत्र में भगवन आदिनाथ की स्तुति की गई है ||

भक्तामर स्तोत्र का अब तक लगभग 130 बार अनुवाद हो चुका है|| बड़े बड़े धार्मिक गुरु चाहे वो हिन्दू धर्मं के हो वो भी भक्तामर स्तोत्र की शक्ति को मानते है तथा मानते है भक्तामर स्तोत्र जैसे कोई स्तोत्र नहीं है!, अपने आप में बहुत शक्तिशाली होने के कारण यह स्तोत्र बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुआ! यह स्तोत्र संसार का इकलोता स्तोत्र है जिसका इतनी बार अनुवाद हुआ जो की इस स्तोत्र की प्रसिद्ध होने को दर्शाता है !

मन्त्र थेरेपी में भी इसका उपयोग विदेशों में होता है, इसके भी प्रमाण हैं ||

भक्तामर स्तोत्र के पढने का कोई एक निश्चित नियम नहीं है, भक्तामर को किसी भी समय प्रातः, दोपहर, सायंकाल या रात में कभी भी पढ़ा जा सकता है, कोई समय सीमा निश्चित नहीं है, क्योकि ये सिर्फ भक्ति प्रधान स्तोत्र है जिसमे भगवन की स्तुति है, धुन तथा समय का प्रभाव अलग अलग होता है!

भक्तामर स्तोत्र का प्रसिद्ध तथा सर्वसिद्धिदायक महामंत्र – — ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्री वृषभनाथतीर्थंकराय् नमः

48 काव्यों के 48 विशेष् मन्त्र भी हैं!!
48 कव्यो की महता
1. सर्वविघ्न विनाशक काव्य
2 शत्रु तथा शिरपीड़ा नाशक काव्य
3 सर्व सिध्दि दायक कवय
4 जल जंतु भय मोचक काव्य
5 नेत्र रोग समहारककाव्य
6 सरस्वती विद्या प्रसारक काव्य
7 सर्व संकट निवारक काव्य
8 सर्वारिष्ट योग निवारक काव्य
9 भय पाप नाशक काव्य
10 कुकर विष निवारक काव्य
11 वांछा पूरक काव्य
12 हस्तिमद निवारक काव्य
13 चोरभय व् एनी भय निवारक काव्य
14 आधी व्याधि नाशक काव्य
15 राज वेभव प्रदायक काव्य
16 सर्व विजय दायक काव्य
17 सर्व रोग निरोघक काव्य
18 शत्रु सैन्य स्तम्भक काव्य
19 पर विद्या छेदक काव्य
20 संतान सम्पति सोभग्य प्रदायक काव्य
21 सर्व वशीकरण काव्य
22 भुत पिशाच बाधा निरोधक काव्य
23 प्रेत बाधा निवारक काव्य
24 शिरो रोग नाशक काव्य
25 दृष्टि दोष निरोधक काव्य
26 आधा शीशी एवं प्रसव पीड़ा विनाशक काव्य
27 शत्रु उन्मूलक काव्य
28 अशोक वृक्ष प्रतिहार्य काव्य
29 सिंहासन प्रतिहार्य काव्य
30 चमर प्रतिहार्य काव्य
31 छत्र प्रतिहार्य काव्य
32 देव दुंदुभी प्रतिहार्य काव्य
33 पुष्प वृष्टि प्रतिहार्य
34 भामंडल प्रतिहार्य
35 दिव्य धवनि प्रतिहार्य
36 लक्ष्मी प्रदायक काव्य
37 दुष्टता प्रतिरोधक काव्य
38 वेभव वर्धक काव्य
39 सिंह शक्ति संहारक काव्य
40 सर्वाग्नि शामक काव्य
41 भुजंग भय भंजक काव्य
42 यूद्ध भय विनाशक काव्य
43 सर्व शांति दायक काव्य
44 भयानक जल विपत्ति विनाशक काव्य
45 सर्व भयानक रोग विनाशक काव्य
46 बंधन विमोच काव्य
47 सर्व भय निवारक काव्य
48 मनोवांछित सिद्धिदायक काव्य

भक्तामर स्तोत्र का प्रतिदिन आराधन कर धर्मध्यान कर जीवन में सुख शांति अनुभव करें