परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, अशोक विहार फेज-2, दिल्ली में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि धर्म की प्रथम सीढ़ी सम्यग्दर्शन है। देव-दर्शन की सम्यक विधि बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कि श्री जिनेंद्र प्रभु किसी भी कार्य में कर्ता नहीं है, वह तो अष्ट कर्मों से मुक्त हो चुके हैं और उन्होंने अपनी आत्मा में स्थित अनंत गुणों को प्रकट कर लिया है। हमें जिन-प्रतिमा का आवलंबन लेकर स्वयं के आत्मगुणों को प्रकट करना चाहिए।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि हम आज जिंदगी भर माया को जोड़ने में लगे रहते हैं लेकिन उसकी तृष्णा को पूरा नहीं कर पाते| दिन-प्रतिदिन वह तृष्णा बढ़ती जाती है और अंत में वह सब माया छोड़नी ही पड़ती है। जीवन पर्यन्त व्यक्ति ने मंदिर के ना जाने कितने चक्कर लगा लिए परन्तु फिर भी वह वीतरागी प्रभु के आनंद को समझ नहीं पाया| सच्चा आनंद जोड़ने में नहीं छोड़ने में है| आज हम सभी भगवान जिनेंद्र को मानते हैं लेकिन उनकी नहीं मानते अर्थात उनके बताए हुए मार्ग पर नहीं चल पाते हैं जिसके कारण हमें चारों गतियों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं|
आचार्य श्री ने कहा कि मन्दिर स्वयं से स्वयं का नाता जोड़ने के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण माध्यम है| जब तक हम स्वयं से स्वयं का नाता नहीं जोड़ेंगे तब तक हम चारों गतियों में दौड़ लगाते रहेंगे और कभी भी सच्चे आनंद को प्राप्त नहीं कर पाएंगे| अतः हमें भगवान वीतराग के बताए हुए मार्ग पर चलकर सच्चे सुख को प्राप्त करना चाहिए| मूर्ति के अंदर मूर्तिमान को निहारना चाहिए और स्वयं को आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा में अग्रसर करना चाहिए| उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री के पावन सान्निध्य में यहाँ प्रतिदिन स्वाध्याय चल रहा है तथा श्री अध्यात्म अमृत कलश ग्रंथराज पर वाचना की जा रही है|