मुनि श्री विशाल सागरजी- ज्ञान, ध्यान, तप, व्रत, उपवास साधना में बीता अधिकांश समय

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 08 अप्रैल 2021
परम पूज्य गणाचार्य श्री विराग सागरजी के सुयोग्य शिष्य आचार्य श्री विशद सागरजी महाराज ने अपने उपयोग को जिनवाणी की आराधना में लगाते हुए अब तक के सर्वाधिक 250 प्रकार के संस्कृत एवं हिंदी के लघु एवं वृहद पूजन विधान की रचना कर भक्तों को अधिक समय तक प्रभु भक्ति से जुड़कर पुण्यार्जन करने का श्रेष्ठ आलम्बन प्रदान किया है।
आचार्य श्री के शिष्य मुनि श्री विशाल सागरजी महाराज ने व्रत उपवास की लगातार दीर्घ साधना का अनोखा कीर्तिमान स्थापित किया। उन्होंने हरिद्वार वर्षायोग 2019 से कंपिल जी वर्षायोग 2020 के मध्य आषाढ़, कार्तिक, फागुण, आषाढ़, कार्तिक की पांचों अष्टाह्निका के 8७5= 40 व्रत, भादौ, माघ, चैत्र, भादौ के सोलहकारण के 32७4 = 128 व्रत, सिंह निष्क्रीडित व्रत के 80 व्रत, चौसठ ऋद्धि के 64 व्रत, अष्ट विंशति मूलगुण के 28 व्रत किये इस प्रकार कुल 40+128+80+64+ 30+ 20+ 28 = 390 दिनों तक क्रम-क्रम से लगातार व्रत उपवासों की साधना चली। मुनि श्री ने 18 महीनों में से 13 महीने तो व्रत उपवासों की साधना में ही निकाल दिए।
यह सभी 390 दिनों के व्रत उपवास अन्न जल त्याग पूर्वक एवं अन्न त्याग पूर्वक किये। परिस्थिति वश मट्ठा, पानी या एकाध फल रस आदि की छूट रखी। कोरोना के इस भीषण काल में जहां डॉक्टर व अन्य जन मानस खाने-पीने पर विशेष सतर्कता बरतने को कह रहे हैं भूखे पेट रहने को मना कर रहे हैं, वहीं हमारे दिगंबर संत 24 घंटे में एक बार मिलने वाले 56 भोग जैसे स्वादिष्ट आहार को भी स्वेच्छा से कम करते जा रहे हैं, छोड़ते जा रहे हैं। स्वेच्छा से व्रत उपवास की साधना में संलग्न हैं। धन्य हैं दिगंबर मुद्रा दिगंबर चर्या, संतों की साधना को शत्-शत् नमन।
मुनि श्री विशाल सागरजी – जीवन दर्शन
पूर्व नाम : सुधीर जैन (बंटी भैया)
पिता : स्व. श्री माणकचन्द जैन
माता : स्व. श्रीमती पद्मा देवी जैन
गोत्र : पाण्डयां (खण्डेलवाल-सरावगी)
जन्म तिथि : 10.06.1973
जन्म स्थान : जयपुर (राजस्थान)
दीक्षा पूर्व निवास : सिद्धार्थ नगर, जयपुर
ब्रह्मचर्य व्रत : 18.10.1999 (विजयदशमी)
सप्तम प्रतिमा व्रत : 22.08.2004 (मोक्ष सप्तमी)
मुनि दीक्षा : 13.02.2005 (बसंत पंचमी)
दीक्षा गुरु : आचार्य श्री विशद सागरजी
दीक्षा स्थान : मालपुरा (टोंक, राज.)
दीक्षा पश्चात नाम : मुनि विशाल सागर
चातुर्मास सन् 2005 से 2020 : निवाई, अलवर, अजमेर, मालपुरा, भीलवाड़ा श्री चंवलेश्वर पार्श्वनाथजी, रेवाड़ी, शास्त्री नगर दिल्ली, शकरपुर दिल्ली, तिजारा, वरुणपथ – मानसरोवर – जयपुर, टोंक, गुड़गांव, न्यू उस्मानपुर दिल्ली, हरिद्वार, तीर्थक्षेत्र कंपिलजी (उ.प्र.)।
प.पू. आचार्य गुरुवर श्री विशद सागरजी के मंगल आशीर्वाद से संघस्थ मुनि श्री विशाल सागरजी ने मुनि श्री ने 13 फरवरी 2005 को मुनि दीक्षा लेते ही 6 महीने का मौन व्रत का नियम लिया। सन् 2006 से 2020 के मध्य अपनी साधना को वृद्धिगत करते हुए लगातार कई-कई घंटों तक मौन पूर्वक खड्गासन अवस्था में एवं पद्मासन अवस्था में भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी आदि सहन करते हुए निद्रा पर विजय प्राप्त करते हुए तप त्याग भरी कठोर काय क्लेश तप ध्यान साधनाएं की।
खड्गासन अवस्था में साधना
1. तेरहपंथी नसिया – रेलवे स्टेशन रोड जयपुर में – 108 घंटे।
2. जैन भवन टोड़ा – रायसिंह में 28 घंटे।
3. महावीर भवन – महावीर नगर जयपुर में 36 घंटे।
4. चंद्र प्रभु जिनालय – राधेपुरी दिल्ली में 45 घंटे।
5. श्री चंवलेश्वर पार्श्वनाथ जी में 116 घंटे।
6. श्री शांतिनाथ जिनालय – नारनौल – हरियाणा में 50 घंटे।
7. श्री बाहुबली जिनालय रेवाड़ी, हरियाणा में 28 घंटे।
8. श्री पार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर 36 घंटे।
9. श्री शांतिनाथ जिनालय शास्त्री नगर दिल्ली में 28 घंटे।
10. श्री पार्श्वनाथ जिनालय बारादरी गुड़गांव में 10 घंटे।
पद्मासन अवस्था में साधना
1. श्री शांतिनाथ जिनालय नारनौल, हरियाणा : 120 घंटे।
2. श्री आदिनाथ जिनालय, शकरपुर दिल्ली : 118 घंटे।
3. श्री पुष्पदंत जिनालय, रेडियो मार्किट, जयपुर : 24 घंटे।
4. श्री शांतिनाथ जिनालय, न्यू उस्मानपुर, दिल्ली : 24 घंटे।
5. जैन भवन, चोमू : 10 घंटे
6. जैन भवन, अलवर : 12 घंटे
7. श्री आदिनाथ जिनालय, हरिद्वार : 10 घंटे।
8. तिजारा श्री चंद्रप्रभु जिनालय : 8 घंटे।
9. श्री विमलनाथ जिनालय : 96 घंटे।
10. जैन मंदिर पाटनीयान, सांगानेर : 12 घंटे।

नोट : यह पद्मासन एवं खड्गासन अवस्था में की गई तप ध्यान साधना कठोर काय क्लेश तप जाप आदि निर्जल उपवास पूर्वक लगातार खुले स्थान पर किए गए। भक्तों ने साधना के इन अद्भुत क्षणों को निहारा। पंचम काल में हीन संहनन होने पर भी कठोर काय क्लेश तप जाप ध्यान साधना से लम्बी-लम्बी अवधि के उपवास आदि करने से भक्तों के मन में संतों के प्रति विशेष श्रद्धा जागृत हुई।
सन् 1999 से 2020 के मध्य 22 वर्षों में 50 प्रकार के जिन धर्म से संबंधी व्रतों को धारण किया। इन व्रतों को अन्न जल त्यागपूर्वक एवं अन्न त्याग पूर्वक उत्तम एवं मध्यम विधि से किया गया।
1. भक्तामर व्रत = 48 व्रत पूर्ण।
2. 24 तीर्थंकर व्रत = 24 व्रत पूर्ण।
3. णमोकार व्रत = 35 व्रत पूर्ण।
4. श्री सम्मेद शिखर व्रत = 25 व्रत पूर्ण।
5. सिंह निष्कीडित व्रत = 80 व्रत – अन्न
एवं सामान्य जल त्याग पूर्वक पूर्ण।
6. सहस्रनाम व्रत = 1008 व्रत चल रहे हैं।
7. दशलक्षण व्रत = 20 वर्ष पूर्ण।
8. सोलहकारण व्रत = 16 वर्ष पूर्ण।
9. रत्नत्रय व्रत = 20 वर्ष पूर्ण।
10. मेघमाला व्रत = 5 वर्ष पूर्ण।
11. अष्टाह्निका व्रत = 15 वर्ष पूर्ण।
12. पुष्पांजलि व्रत = 5 वर्ष पूर्ण।
13. श्रुत स्कंध व्रत = 1 वर्ष पूर्ण।
14. सम्यक्त्व पच्चीसी व्रत = 25 व्रत पूर्ण।
15. ज्ञान पच्चीसी व्रत = 25 व्रत क्रम से
चल रहे हैं।
16. चौंसठ ऋद्धि व्रत = 64 व्रत पूर्ण।
17. नव देवता व्रत = 9 वर्ष पूर्ण।
18. नवग्रह शांति व्रत = 9 वर्ष पूर्ण।
19. तत्वार्थ सूत्र व्रत = 10 व्रत पूर्ण।
20. सर्वदोष प्रायश्चित व्रत = 33 व्रत पूर्ण।
21. कवलचंद्रायण व्रत = 30 व्रत पूर्ण।
22. अक्षय निधि व्रत = 3 व्रत पूर्ण।
23. पुरंदर व्रत = 8 व्रत पूर्ण।
24. लब्धि विधान व्रत = 9 व्रत पूर्ण।
25. कल्याण मंदिर व्रत = 44 व्रत पूर्ण।
26. त्रैलोक्य जिनालय व्रत = 48 व्रत पूर्ण।
27. तीर्थंकर पंचकल्याणक तीर्थ व्रत = 24 व्रत पूर्ण।
28. अट्ठाई समूल गुण व्रत = 28 व्रत पूर्ण।
29. विद्यमान बीस तीर्थंकर व्रत = 20 व्रत पूर्ण।
30. तेरह द्वीप जिनालय व्रत = 13 व्रत पूर्ण।
31. गणधर वलय व्रत = 48 व्रत पूर्ण।
32. नवलब्धि व्रत = 9 व्रत पूर्ण।
33. नवनिधि व्रत = 9 व्रत पूर्ण।
34. शांति भक्ति व्रत = 16 व्रत पूर्ण।
35. एकीभाव स्तोत्र व्रत = 26 व्रत पूर्ण।
36. सप्त ऋषि व्रत = 7 व्रत पूर्ण।
37. सप्त परम स्थान व्रत = 7 व्रत पूर्ण।
38. सर्वार्थ सिद्धि व्रत = 8 व्रत पूर्ण।
39. पुण्यास्त्रव व्रत = 108 व्रत पूर्ण।
40. अनंत चौदस व्रत = 14 व्रत पूर्ण।
41. तीस चौबीसी व्रत = 720 व्रत चल रहे हैं।
42. वृहद समवशरण व्रत = 170 व्रत चल रहे हैं।
43. चारित्र शुद्धि व्रत = 1234 व्रच चल रहे हैं।
44. जिनगुण संपत्ति व्रत = 63 व्रत चल रहे हैं।
45. कर्मदहन व्रत = 148 व्रच चल रहे हैं।
46. वृहद पल्य व्रत = 66 व्रत चल रहे हैं।
47. जिनमुखावलोकन व्रत = 31 व्रत पूर्ण।
48. तपोंजलि व्रत = 24 व्रत चल रहे हैं।
49. अष्टमी व्रत = 196 व्रत चल रहे हैं।
50. चतुर्दशी व्रत = 344 व्रत हो चुके हैं।

उल्लेखनीय है कि आचार्य गुरुवर श्री विशद सागरजी महाराज के संघस्थ परम शिष्य मुनि श्री विशाल सागरजी महाराज 16 वर्ष से अनवरत रूप से गुरुवर की छत्रछाया में साधना रत हैं। 16 वर्ष में एक दिन भी गुरुवर से अलग नहीं हुए। गुरुवर के हर कार्य में तन-मन से सक्रिय हैं। आचार्य श्री ने अब तक 80 के आसपास वृहद एवं लघु पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएं सम्पन्न कराई। पंचकल्याणक की सभी क्रियाओं में मुनि श्री ने भरपूर सहयोग प्रदान किया। आचार्य श्री ने 250 प्रकार के लघु एवं वृहद पूजन विधानों की रचना की जिसमें मुनि श्री ने भारत के विभिन्न जैन मंदिरों में 1008 बार मंत्रोच्चार पूर्वक विधान सम्पन्न कराएं। आचार्य श्री द्वारा रचित 400 प्रकार की पुस्तकों के प्रकाशन, संपादन में मुनि श्री ने सहयोग प्रदान किया।
मुनि श्री ने हरिद्वार वर्षायोग में सिंह निष्क्रीडित व्रत के 80 उपवास लगातार मात्र एक वस्तु नारियल पानी की छूट रखते हुए किये। सोलहकारण, अष्टाह्निका, दशलक्षण के उपवासों में दुनियाभर की सारी खाने पीने योग्य वस्तुओं का त्यागकर मात्र नारियल पानी की छूट रखी। 01 से 03 सितंबर 2019 तक कुल 126 दिन तक 64 ऋद्धि, कवल चंद्रायण, सोलहकारण व्रत एवं 15 अक्टूबर से 01 दिसंबर 2019 तक 48 दिन लगातार विद्यमान विंशति व्रत एवं अष्ट विंशति मूलगुण व्रत किए। लगातार 26 दिन 80 दिन एवं 48 दिन तक चलने वाले व्रतों को क्रम-क्रम पूर्ण किया। मुनि श्री की व्रत-उपवास की साधना एवं तप त्याग भरी खड्गासन एवं पदमासन अवस्थाओं में की गई जाप ध्यान साधनाएं अद्भुत रहीं। 120 घंटे तक लगातार एक ही स्थान पर बैठकर एवं 116 घंटे तक लगातार खड़े रहकर निर्जल उपवास पूर्वक कठोर काय क्लेश तप साधनाएं आश्चर्य प्रकट करने वाली हैं। मुनि श्री की यह साधना आगे भी अनवरत चलती रहे एवं वह कालांतर में सर्व पर्यायों से छूट कर मोक्ष पद की प्राप्ति करें, इसी भावना के साथ शत् – शत् नमन।
– ब्र.आरती दीदी (संघस्थ)