इन्द्र ने कौन से देश-प्रदेश की रचना की, और वर्तमान में क्या हैं उनके नाम- जैन संस्कृति की अनमोल विरासत

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 04 अप्रैल 2021
जब तक हम इतिहास को नहीं जानेंगे, तब तक जैन संस्कृति की अनमोल विरासत को तथ्यों से नहीं जान पाएंगे। आज भी भारत देश के अनेक प्रांत ऐसे हैं, जो असंख्यात वर्ष पहले भी इसी नाम से जाने जाते थे, और अनेकों के नाम बदल गये और कई तो बाद में सामने आये।
यहां पर कुछ ऐसे देशों-प्रदेशों के नाम के साथ उनका संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं, जिनकी स्थापना मनुष्यों द्वारा नहीं हुई, बल्कि स्वर्ग से आकर इन्द्र ने रचना कराई।
यह तब की बात है जब भोग भूमि समाप्त हो रही थी, चौथा काल अभी शुरू नहीं हुआ था। तब राजकुमार ऋषभदेव ने जैसे ही इन्द्र का स्मरण किया वह दलबल के साथ इस धरा पर आया और उसने निम्न देश – प्रदेश की रचना की, इसका उल्लेख आचार्य श्री जिनसेन जी ने श्री आदिपुराण की 16वें पर्व की गाथा 148 से 156 तक किया है।
आइये, आज उनके बारे में जानते हैं, तथा वे प्रदेश-देश आज कि नाम से जाने जाते हैं –
1. सुकोसल – या कहें महाकोसल, आजकल मध्यप्रदेश कहते हैं।
2. अवन्ती – वर्तमान की उज्जैन नगरी के पार्श्ववत्ती प्रदेश को तब अवन्ती कहते थे और अवन्ती नगरी उसकी राजधानी थी।
3. पुण्डू- इसे गौड़ देश भी कहते थे, वर्तमान में पं. बंगाल का उत्तर भाग तब पुण्डू था।
4. कुरु – यह सरस्वती के बायीं ओर अनेक कोस फैला मैदान था, और इस देश की राजधानी काशी यानि वर्तमान वाराणसी थी।
5. कलिंग – वर्तमान के चैन्नई का उत्तर भाग और ओडिशा राज्य के नाचे का, यानि दक्षिण भाग कलिंग देश था, जिसकी राजधानी राजमहेन्द्री थी और यहीं महेन्द्रमाली नामक गिरि है।
6. अंग – वर्तमान के मगध क्षेत्र का पूर्व भाग अंग कहलाता था, और उसकी राजधानी चम्पा थी, जो वर्तमान में भागलपुर के पास का क्षेत्र है।
7. सुह्य – यह एक देश था, जिसमें कपिशा (कोसिया) नदी बहती थी और ताम्रलिप्ति (तामलूक) इसकी राजधानी थी।
8. काश्मीर – तब से अब तक इसका नाम काश्मीर है, भारत के उत्तर में, मस्तक, इसकी राजधानी तब से अब तक श्रीनगर है।
9. आर्नत – वर्तमान गुजरात, जिसे पहले गुर्जर कहते थे, उसके 3 भाग थे – 1 आर्नत, 2. सुराष्ट्र (कठियावाड़) और 3. लाट। आर्नत गुजरात का उत्तर भाग था। द्वारावती (सारिका) इसकी प्रधान नगरी थी।
10. वत्स – प्रयाग के उत्तर भाग का मैदान वत्स देश कहलाता था और इसकी राजधानी थी कोसम यानि कौशाम्बी।
11. पंचनद – यानि पांच नदियों वाला देश, यहां वितस्ता आदि पांच नदियां बहती थीं, वर्तमान पंजाब उसी का हिस्सा है और तब लवपुर यानि लाहौर, कुशपुर यानि कुशावर, तक्षाशिला यानि टेक्सिला और मूल स्थान जो बिगड़कर नाम मुल्तान हो गया, सब इसी के प्रधान नगर थे।
12. मालव – वर्तमान का मालवा क्षेत्र, पहले अवन्ती इसी के अंतर्गत दूसरे नाम से जाना जाता था, जो अब मालवा का ही हिस्सा है। उज्जैन, दशपुर (वर्तमान में मंदसौर), धारानगरी (वर्तमान में धार), इन्द्रपुर (वर्तमान में इन्दौर) आदि इसी के लोकप्रिय नगर थे।
13. पंचाल – कुरुक्षेत्र के पूर्व में था यह क्षेत्र। इसके दो भाग थे – उत्तर पंचाल और दक्षिण पंचाल। यह चर्मण्ती नदी तक फैला था। कान्यकुब्ज, वर्तमान कन्नौज, इसी में है। उत्तर पंचाल की अहिच्छत्र व दक्षिण पंचाल की काम्पिल्य राजधानी थी।
14. दशार्ण – मालवा क्षेत्र का यह पूर्व भाग था, जिससे वेत्रवती (बेतबा) नदी बहती है। कुछ जगह दशार्ण(धसान) नदी का उल्लेख है, जो आगे चलकर वेत्रवती नदी से मिल जाती है। भेलसा, वर्तमान की विदिशा, इसकी राजधानी थी।
15. कच्छ – पश्चिमी घाट का क्षेत्र कच्छ कहलाता था, जो अब कठियावाड़ के नाम से जाना जाता है।
16. मगध – वर्तमान के बिहार प्रांत का गंगा का दक्षिण भाग मगध कहलाता था और इसकी राजधानी थी पाटलीपुत्र यानि वर्तमान की पटना। गया और बुद्ध गया (उरूविल्व) इसी प्रांत में थे।
17. विदर्भ – वर्तमान का बरार, प्राचीन राजधानी बांदर यानि कुंडिनपुर थी।
18. महाराष्ट्र – कृष्णा नदी से नर्मदा तक का विस्तृत मैदान महाराष्ट्र कहलाता था तब।
19. सुराष्ट्र – मालवा का पश्चिम प्रदेश सौराष्ट्र (सुराष्ट्र) कहलाता था। यह कठियावाड़ अब सौराष्ट्र कहलाता है, और इसी का भाग या रैवतक यानि वर्तमान का गिरनार (जूनागढ़), जो द्वारिका है, उसे आनर्त कहते थे।
20. कोंकण – पश्चिमी समुद्रतट का यह प्रदेश सूर्य पत्तन, अब सूरत कहलाता है, जो रत्नागिरि तक विस्तृत है, महाम्बासुर, वर्तमान का मुम्बई और कल्याण इसी कोंकण देश का हिस्सा थे।
21. वनवास – वर्तमान के कर्नाटक का एक हिस्सा वनवास कहलाता था, फिर इसका नाम बनौसी पड़ा। इसकी राजधानी वंकपुर थी, जो अब धारवाड़ जिले में है।
22. आन्ध्र – गोदावरी व कृष्णा नदी के बीच का भाग, जिसे त्रैलिंग (तेलंग) देश भी कहते हैं, इसकी राजधानी आन्ध्र नगर (बेंगी) थी और इसका अधिकांश भाग वर्तमान के हैदराबाद (भाग्यपुर) राज्य में अन्तर्मूत है।
23. कर्णाट – यह आन्ध्र प्रदेश के दक्षिण व पश्चिम भाग, इसी के अंतर्गत वनवास, महिषग (महीशूर), मैसूर इसी के अंतर्गत थे, इसकी राजधानियां महिषपुर व श्री रंगपत्तन थी।
24. कोसल – यह उत्तर – दक्षिण से विभक्त था। अयोध्या, शरावती (वर्तमान श्रावस्ती), लक्ष्मणपुरी (वर्तमान लखनऊ) आदि इसी के प्रसिद्ध नगर थे। यहां गोमती, तमसा व सरयू नदी बहती है। दक्षिण कोसल में कुशावती का समीपवर्ती प्रदेश तथा उत्तर कोसल में अयोध्या, लखनऊ आदि के समीपवर्ती प्रदेश शामिल थे।
25. चोल – कर्णाटक का दक्षिण पूर्व भाग अर्थात् मद्रास जिसे अब चैन्नई कहते हैं, उसके उत्तर के कुछ प्रदेश और मैसूर रियासत का कुछ भाग तक चोल नाम से विख्यात था।
26. केरल – कृष्ण व तुंगभद्रा के दक्षिण में विद्यमान भूभाग, जो वर्तमान में चैन्नई के अंतर्गत आता है, पाण्डय, केरल व सतीपुत्र के नाम से प्रसिद्ध था।
27. शूरसेन – वर्तमान मथुरा का समीपवर्ती प्रदेश शूरसेन कहलाता था। गोकुल, वृंदावन, अग्रवण (वर्तमान में आगरा) इसी प्रदेश में थे।
28. विदेह – द्वारवंग (वर्तमान में दरभंगा) के समीपवर्ती प्रदेश विदेह नाम से जाना जाता था। मिथिला (जनकपुरी) इसी में थी।
29. सिंधु – यह आज भी सिंध के नाम से प्रसिद्ध है और कराची इसकी राजधानी है।
30. गान्धार (कंदहार) – वर्तमान में इसका नाम अफगानिस्तान है। यह सिंधु नदी और कश्मीर के पश्चिम में है। यहां की प्राचीन राजधानी पुरुषपुर (वर्तमान में पेशावर और पुष्करावर्त (हस्तनगर) थी।
31. भवन – यह यूनान (वर्तमान में ग्रीस) से जाना जाता है।
32. चेदी – मालवा की आधुनिक नगरी चन्देरी नगरी का समीपवर्ती प्रदेश चेदी देश कहलाता था, वर्तमान में यह ग्वालियर में है।
33. पल्लव – दक्षिण में कांची के समीपवर्ती प्रदेश को पल्लव देश कहते थे, यह इतिहास प्रसिद्ध पल्लववंशी राजाओं का राज्य रहा है।
34. काम्बोज – वर्तमान में बलोचिस्तान कहते हैं।
35. उत्तरट्ट – पंजाब में एक प्रदेश आरट्ट कहलाता था।
36. तुरुष्क – वर्तमान में तुर्किस्तान के नाम से जाना जाता है।
37. शक – वर्तमान में बेक्ट्रिया कहते हैं।
38. सौवीर – सिंध देश का एक भाग सौवीर देश कहलाता था।
39. कैकय – पंजाब प्रांत की वितस्ता (वर्तमान में झेलम) और चन्द्रभागा (वर्तमान में चेनाब) नदियों का अंतरालवर्ती प्रदेश तब केकय के नाम से प्रसिद्ध था। गिरिव्रज (वर्तमान में जलालपुर) इसकी राजधानी थी।
उपरोक्त देश, प्रदेश, नगरों का आदिपुरा में उल्लेख है, इनकी वर्तमान में भौगोलिक स्थिति समझकर तीर्थंकर आदिनाथ काल की स्थिति व जैन संस्कृति – विरासत को जानना सुगम व श्रेयस्कर होगा। वर्तमान नक्शे पर इन नामों को लिखकर जानने से हम तब के क्षेत्र, शासन को भली प्रकार समझ पायेंगे।
– संकलन : शरद जैन