तीर्थंकरों की मूर्तियों को महज पत्थर या धातु के खिलौने नहीं समझना चाहिए । यह शो पीस भी नहीं होते, नाही अपने को ऊंचा दिखाने के लिए उनका तिरस्कार किया जा सकता है ।
पहले आपको बताया था कि कैसे अन्य धर्म संप्रदाय में एक मंदिर की दीवार में तीर्थंकर मूर्ति को ईट गारा समझकर लगा दिया है। आज जो, अब इस मंदिर की सीढ़ियों से चढ़ते बता रहे हैं, तो पैरों तले जमीन खिसक जाएगी तेलंगाना के निदी गोंडा के मंदिर में सीढ़ियां, जिस पर लोग जूते, चप्पल, पैरों से चढ़ते हैं और उन सीढ़ियों पर पैर रखते हैं।
वहीं पर सीढ़ियों को तीर्थंकर मूर्ति लगी हुई है, यानी मूर्ति की सीढ़ियां बना दी गई है, जिस पर लोग जूते चप्पल पैर रखकर चढ़ते हैं। यह क्या हो रहा है हमारी पूजनीय मूर्तियों के साथ। संभव है यहां पहले जैन मंदिर रहा होगा ,जिस को नष्ट किया गया लगता है। आज हम इतने कमजोर, अपाहिज हो गए हैं कि अपनी विरासत को सुरक्षित रखने के लिए भी काबिल नहीं है।
माफ करना भगवान, कितना बदल गया इंसान।