23 वे तीर्थंकर श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान को केवलज्ञान कल्याणक: तिथि चैत्र कृष्ण चतुर्थी, गुरुवार,दि.1अप्रैल,2021

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तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथजी का परिचय

जन्मकाल: तीर्थंकर श्रीमहावीर भ. के करीब 250 वर्ष पूर्व और श्री नेमिनाथ के बाद 83750 वर्ष बीत जाने पर.

जन्मस्थान: काशी देश की आध्यात्मिक नगरी बनारस
पिता: उग्रवंशी काश्यपगोत्री राजा अश्वसेन,माता:वामा रानी,
अच्युत(सोलहवे) स्वर्गके प्राणतविमानसे इंद्रका गर्भावतरण
गर्भतिथि:वैशाख कृ. 2

जन्मतिथि:पौष कृष्ण एकादशी जन्म नक्षत्र:विशाखा,

वराग्यकारण:जातिस्मरण,दीक्षातिथि:पौष कृ.11,विशाखा नक्षत्र, दीक्षासमय:पूर्वान्ह,दीक्षावन:अश्वत्थ,
दीक्षानक्षत्र:विशाखा,दीक्षावृक्ष:देवदारू,दीक्षास्थान:बनारस,
‎दीक्षा पालकी:विमला, ‎सहदीक्षित मुनि:300,दिक्षोपवास 3,
‎प्रथम आहार:गुल्मखेट नगर के धन्यसेन राजा,
‎छद्मस्थ काल:4 मास,

तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी का केवलज्ञान कल्याणक महोत्सव

छद्मस्थ अवस्था के चार माह व्यतीत हो जानेपर अश्ववन दीक्षावन में पहुंचकर देवदारू वृक्ष के नीचे महाप्रभु श्री पार्श्वनाथ जिनराज प्रखर से प्रखरतर मौन साधना और अपूर्व आत्मशुध्दि के साथ परम शुक्लध्यान में लीन हो गये।

पार्श्वनाथ जी के 10 वे गुणस्थान के अंतमे ध्यान के प्रभाव से मोहनीयकर्म का पूर्ण क्षय हुआ।इसलिए बैरी कमठ
का महागर्जना,महावृष्टि,भयंकर वायु आदि सात दिन तक किया महाउपसर्ग दूर हो गया। अवधिज्ञान से वह उपसर्ग जानकर धरणेन्द्र और पद्मावती पृथ्वीतल से बाहर निकले।
धरणेंद्र ने भगवान पार्श्वनाथ को सब ओर से घेरकर अपने फणाओं के ऊपर उठा लिया और भार्या पद्मावती वज्रमय छत्र तानकर खड़ी हो गई।

पार्श्वनाथ जी के 12 वे गुणस्थान के अंतिम समय में उनके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय कर्म का क्षय हुआ और उन्हें लोकालोकप्रकाशी केवलज्ञान प्राप्त हुआ,जिससे जगत के समस्त चराचर द्रव्यों को और उनकी अनंत पर्यायों को तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ युगपत जानने लगे।

परकट चिन्हों से, सौधर्म इंद्र का आसन कंपायमान होनेसे श्री पार्श्वनाथ जी को केवलज्ञान की प्राप्ति की सूचना मिलनेपर इन्द्रादि देवोंने सात कदम आगे बढ़कर तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथजी को नमन किया।

सौधर्म इंद्र ने सभी देवों के साथ मिलकर तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी का दर्शन, पूजन किया और कुबेर को समवसरण की रचना करनेकी आज्ञा दी।

समवसरण में विराजमान तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ महाप्रभु का इंद्र, देव,मनुष्य,तिर्यंच सभी ने दर्शन-पूजन किया और श्री पार्श्वनाथ महाप्रभु का धर्मोपदेश सुना।उपसर्ग करनेवाला कमठ का जीव शंबर ज्योतिषी देव ने शांत होकर सम्यग्दर्शन प्राप्त किया।वन में अन्य सात सौ तपस्वियों ने मिथ्यादर्शन छोडा,संयम धारण कर वे सभी शुध्द सम्यग्दृष्टि हो गये।

कवलज्ञानतिथि:चैत्र कृ.4,चिन्ह:सर्प, आयु: 100 वर्ष, ऊंचाई: नौ हाथ, हरित वर्ण कांति, यक्ष:मातड्.ग, यक्षिणी: पद्मावती,
“अहिच्छत्र धरापर जी भर कर की क्रूर कमठ ने मनमानी
तब कृष्ण चैत्र चतुर्थी को पद प्राप्त किया केवलज्ञानी।
यह वंदनीय हो गई धरा, दश भव का बैरी पछताया।
देवों ने जय जयकारों से सारा भूमंडल गुंजाया।।

ॐ ह्रीं चैत्र कृष्ण चतुर्थी दिवसे श्री अहिच्छत्रा तीर्थे ज्ञान साम्राज्य प्राप्ताय श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमः अर्घ्यं नि. स्वाहा”

निर्वाण तिथि: श्रावण शुक्ला 7,निर्वाण नक्षत्र:विशाखा, निर्वाणकाल: प्रातःकाल,मोक्षस्थान: श्रीसम्मेद शिखरजी, सहमुक्त मुनि: 36.
सभी धर्मप्रेमियों को हार्दिक बधाइया और मंगल शुभकामनाये
संकलक:आनंद जैन कासलीवाल