नियम व क़ानून इन्सानों के लिये होते हैं फ़रिश्तों के लिये नहीं । जैन संत एक फ़रिश्ता है और उन पर इन्सानों के लिये बनाये गये कानून लागू नहीं होते- हैदराबाद निज़ाम

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प्रसिद्ध जैन मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज द्वारा हैदराबाद रियासत के तत्कालीन निज़ाम के संबंध में एक क़िस्सा बताया गया था

जैन परम्परा में आचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज का नाम उनकी साधना, तपस्या, ज्ञान और मानव कल्याण के लिये जाना जाता है। आचार्य श्री की जन्म सन 1873 में हुआ था और देवलोक गमन वर्ष 1955 में हुआ था । आचार्य श्री मूल रूप से कर्नाटक से संबंध रखते थे। उनकी विद्ववता और ज्ञान की ख्याति पूरे देश में फैली हुई थी। आचार्य श्री के जीवन और ज्ञान के बारे में लिखना तो संभव नहीं है पर उनके बारे में श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज द्वारा बताया गया क़िस्सा मैं लिख रहा हूँ ।

आज़ादी से बहुत पहले कि बात है , जब आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज दक्षिण भारत से उत्तर भारत आ रहे थे। जैन संत पैदल ही विहार करते हैं और दिगम्बर अवस्था में रहते है। आचार्य श्री के रास्ते में हैदराबाद रियासत पड़ती थी , जहॉ के निज़ाम /शासक मुस्लिम थे। निज़ाम के राज्य में दिगंबर अवस्था में रहना या विचरण करना एक अपराध माना जाता था। आचार्य श्री को उनके साथ चल रहे श्रावकों ने यह बात उन्हें बताई और कोई बवाल न हो,इसलिये *वैकल्पिक मार्ग से जाने का सुझाव दिया जो अपेक्षाकृत काफ़ी लंबा था । आचार्य श्री ने कहा कि वह हैदराबाद के रास्ते से ही जायेगे और जो होना होगा वह ठीक ही होगा। उधर निज़ाम को भी यह सूचना मिली कि एक जैन संत दिगंबर वेश में उनकी सल्तनत में आ रहे है । *निज़ाम ने उनके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की और जब आचार्य श्री उनकी रियासत की सीमा पर पहुँचे तो निज़ाम साहब अपनी बेगमों सहित उनकी अगवानी के लिये वहॉ उपस्थित थे। आचार्य श्री को पूरे सम्मान सहित रियासत में लाया गया और निज़ाम ने घोषणा करवाई कि जब तक जैन संत रियासत में है कोई मांसाहारी खाद्य पदार्थ न ही बनेगा और न ही बिकेगा। जैन संत के साथ कोई भी असम्मान जनक हरकत रियासत के प्रति बग़ावत मानी जायेगी । आचार्य श्री दो तीन दिन ही हैदराबाद की सीमा में रहे।

आचार्य श्री के जाने के बाद निज़ाम साहब से उनके दरबारियों ने पूछा कि आपने जैन संत के लिये अपने बनाये नियम को क्यों तोड़ा तो निज़ाम का जवाब था कि ‘नियम व क़ानून इन्सानों के लिये होते हैं फ़रिश्तों के लिये नहीं । जैन संत एक फ़रिश्ता है और उन पर इन्सानों के लिये बनाये गये कानून लागू नहीं होते।

युवा पीढ़ी को अवश्य बताये,ऐसी रही है हमारी भारतीय संस्कृति