पूण्य को कैसे बढ़ाएं, निर्ग्रंथ मुनि होके, निर्ग्रंथ मुनि का भक्त होना, पंचम काल का चमत्कार है : आचार्य विशुद्ध सागर

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सबसे पहले खाना सीखता है इंसान फिर कमाना ,जो खाना मिला है वह पूर्व पूण्य से मिला है
वे जीव विशिष्ट पुण्यात्मा है, जो पुण्य भूमि में आने के उपरांत भी पुण्य परिणाम से युक्त हो
ऐसे लोग भी है, सम्मेद शिखर में रहकर भी पाँच इंद्रिय के भोग में लिप्त हो | और ऐसे जीव है, जो पर्वत की चोटी की तलहटी पे आके ये भावना-भा रहे है, हे प्रभु!! अनंतानत चौबीसियाँ हो गयी हो, अनंतानन्त केवली मुनि भगवंत हो चुके हो, ऐसे पुण्य और पवित्र परिणाम से युक्त भूमि में बैठ करके, एक श्वास मैं खींच लूँ इस बात की, कि मुझे और कुछ नही चाहिए है
“जिनशासन के प्रति आस्था मेरी समाप्त ना हो जाए” ।।
निर्ग्रंथ मुनि होके, निर्ग्रंथ मुनि का भक्त होना, पंचम काल का चमत्कार है।
एक निर्ग्रंथ श्रमण की भक्ति श्रावक बनके करना ये सरल है। मुनिराज बनके मुनि की भक्ति करना, ये भविष्य के अरिहंत और सिद्ध बनाने का-प्रमाण पत्र है।।
:- आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज